सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
…………………………………………..भारत जैसे देश में पारिवारिक मामले बढते ही जा रहे हैं और इनमें ज्यादातार स्थिति ऐसी है कि दहेज उत्पीडन को एक तरह से हथियार बना कर हित साधा जाता है। दहेज उत्पीडन की बढती घटनाओं को लेकर संविधान विशेषज्ञ चिंतित तो है मगर सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि दहेज उत्पीडन की धारा का दुरूप्रयोग सबसे ज्यादा हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट भी इस बात से चिंतित है। कानून कादुरुपयोग न हो, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न की धारा 498-ए पर फिर से विचार करने की बात कही है. इस धारा के तहत पीड़िता के पति समेत अन्य परिजनों की तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है।. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि हम इस आदेश से अहसमत हैं कि कोर्ट कानून नहीं बनाता बल्कि उसकी व्याख्या करता है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है।
दहेज प्रताड़ना यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई में आदेश पास कर गाइड लाइन बनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हर जिले में कम से एक परिवार कल्याण समिति का गठन करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि समिति की रिपोर्ट आने तक आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए,. साथ ही इस काम के लिए सिविल सोसाइटी को शामिल करने के लिए कहा गया है। समिति में तीन सदस्य होने चाहिए. समय-समय पर जिला जज द्वारा इस समिति के कार्यों की विवेचना की जानी चाहिए. समिति में कानूनी, स्वयंसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त व्यक्ति, अधिकारियों की पत्नी आदि को शामिल किया जा सकता है. समिति के सदस्यों को गवाह नहीं बनाया जा सकता।
अदालत ने कहा कि धारा 498-ए के तहत पुलिस या मजिस्ट्रेट तक पहुंचने वाली शिकायतों को इस तरह की समिति के पास भेजा जाना चाहिए। एक महीने में समिति की रिपोर्ट देनी होगी, रिपोर्ट आने तक किसी की गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए इसके बाद रिपोर्ट पर जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट को मेरिट के आधार पर विचार करेंगे।