-विमल वधावन
एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
आज पंजाब की आर्थिक हालत भी लगातार कमजोर होती जा रही है जो किसी समय देश का एक सुदृढ़ आर्थिक राज्य हुआ करता था। यदि पंजाब के राजनीतिक दलों ने इस समस्या पर गम्भीर विवेकशीलता का परिचय न दिया तो कुछ दशकों में ही पंजाब एक लकवाग्रस्त राज्य बन जायेगा जिसमें 16 से 35 वर्ष की आयु के बहुतायत युवक नशे से बर्बाद हो चुके होंगे। शिक्षित और संस्कारी युवक ऐसे अपराधी वातावरण में कार्य करने के स्थान पर देश और संसार के अन्य भागों में जाकर बसना पसन्द करेंगे।
कभी-कभी कानून की सीमाएँ भी विवश हो जाती हैं जब पीडि़त को समाज में न्याय का सहारा भी नहीं मिल पाता और कुकर्मी व्यक्ति कानूनों की सीमाओं के बाहर खुली मौज में अपना जीवन बिता रहा होता है। लुधियाना की एक सुन्दर और सुशिक्षित युवती का विवाह हुआ। 15 वर्ष के वैवाहिक जीवन में आज उसके तीन बच्चे हैं परन्तु पिछले 4-5 वर्षों से उसका पति शराब की आदतों से बढ़ते-बढ़ते चरस, अफीम जैसे नशीले पदार्थों का आदि हो गया। इन 4-5 वर्षों में उसने पत्नी के गहने बेचे, अधिकतर समय घर से बाहर बिताने लगा, वेश्यावृत्ति की आदतें भी उसे अन्ततः एक ऐसी अवस्था में ले आई जहाँ वह किसी अन्य दुष्चरिता स्त्री के साथ रहने लगा। इस बीच अत्याचारी ससुराल वालों ने बहु को घर से निकाल दिया जिसे अन्ततः अपने बच्चों के साथ पुनः अपने माता-पिता के संरक्षण में जा पहुँची। पति ने अदालत में तलाक का मुकदमा प्रस्तुत किया जिसे जिला अदालत ने अस्वीकार कर दिया। एक मायने में कानूनी जीत तो पत्नी के पक्ष में आई परन्तु इस जीत का कोई लाभ नहीं मिला। पति के विरुद्ध अदालत ने मासिक खर्च का आदेश भी पारित किया जिसका वह कभी भी समय पर पालन नहीं करता। कानून इस स्त्री को अपने ससुराल में रहने का अधिकार देता है परन्तु इन परिस्थितियों में एक स्त्री किस प्रकार अत्याचारी सास-ससुर के बीच जाकर रह सकती है। पति के द्वारा दूसरे विवाह के विरुद्ध यदि पुलिस में शिकायत लेकर यह पत्नी पहुँचती है तो पुलिस दूसरे विवाह का प्रमाण मांगती है। सारा अड़ोस-पड़ोस यह जानता है कि यह युवक किसी अन्य स्त्री के साथ रह रहा है, परन्तु शादी का प्रमाण पत्र कहाँ से प्राप्त किया जाये। कानून दूसरे विवाह को तो अपराध मानता है परन्तु लिव-इन-सम्बन्धों को आधुनिक समाज और अदालतें अपराध नहीं मानतीं। इन सारी परिस्थितियों में पुलिस, कानून और अदालतें सब बेबस नजर आते हैं क्योंकि न्यायिक प्रक्रिया को हर तथ्य का दस्तावेज़ी प्रमाण चाहिए।
एक तरफ कानून की बेबसी तो दूसरी तरफ इस घटना की तह में नशीले संसार का वह बीज छिपा है जो हमें सोचने के लिए मजबूर कर देता है कि नशा करने का अर्थ एक व्यक्ति का रोगी होना नहीं है अपितु एक पूरा परिवार एक व्यक्ति के नशे की आदतों से बर्बाद होता हुआ देखा जाता है। विवाह के बाद तो नशा दो परिवारों की बर्बादी का कारण बन जाता है।
नशा एक प्रकार की महामारी है जो नशा करने वाले व्यक्तियों की संगति में आने वाले व्यक्तियों तक सरलता से पहुँच जाती है। जब कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के मानसिक तनाव, कार्य का बोझ या माता-पिता के नियंत्रण से बाहर किसी कुसंगति में लगातार जीवनयापन करता है तो ऐसे व्यक्ति बहुत जल्दी नशों का दामन थाम लेते हैं। परन्तु प्रश्न यह है कि पंजाब में ही नशों का जाल क्यों फैलता जा रहा है?
सारा संसार जानता है कि 1980 के दशक में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित उग्रवाद ने पंजाब में त्राहि मचा दी थी। पाकिस्तान का बहुत लम्बा हिस्सा पंजाब की सीमाओं के साथ सटा हुआ है। भाषा और संस्कृति की दृष्टि से सीमा के इस पार और उस पार के लोगों के व्यवहार में कोई विशेष अन्तर नजर नहीं आता था। इसका लाभ उठाकर पाकिस्तान ने पूरी पंजाब सीमा का उग्रवाद में पूरा दुरुपयोग किया। कुछ दूरदर्शी राजनीतिज्ञों और कुछ विवेकशील और साहसी पुलिस अधिकारियों ने पूरी योजना के साथ उग्रवाद की जड़ें उखाड़ने में सफलता प्राप्त की।
आज सीधा उग्रवादी न भेजकर पंजाब की सीमा से नशीले पदार्थों की तस्करी की जा रही है। सीमा पर केन्द्र सरकार और सीमा के अन्दर पंजाब पुलिस का नियंत्रण है। राजनीतिक रूप से केन्द्र सरकार पर आज भाजपा सत्तासीन है और पंजाब में भाजपा-अकाली गठबन्धन सरकार है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सीमा पर तैनात बी.एस.एफ. पूरी तरह से ईमानदार तन्त्र नहीं है। यदि केन्द्र सरकार बी.एस.एफ. के माध्यम से सीमा पर पूरी ईमानदारी के साथ चैकसी करे तो तस्करी को समाप्त किया जा सकता है। अगले कदम पर यदि राज्य सरकार अपनी पुलिस के माध्यम से सीमावर्ती गाँवों में ईमानदारी के साथ सक्रियता दिखाये तो इस कदम पर भी नशीले पदार्थों की खरीद-फरोख्त पर लगाम लग सकती है। जबकि वास्तविकता यह है कि राज्य के अन्दर पुलिस और राजनेताओं का अनैतिक गठजोड़ इस नशे के व्यापार का सूत्रधार है।
राज्य सरकार के उच्चाधिकारियों को उसी प्रकार अपने विवेक का प्रयोग करना चाहिए जैसा उग्रवाद की समाप्ति के लिए कुछ राजनीतिज्ञों ने किया था। नशे की शाखाएँ समाज में एक तरफ तो परिवारों की बर्बादी के रूप में दिखाई देती हैं जिसमें दुःखी माता-पिता, बेसहारा पत्नियाँ और बच्चे, परेशान भाई-बहन और डरा सहमा पड़ोस नजर आता है तो दूसरी तरफ इस नशे के बल पर अनेकों प्रकार के अपराध भी देखे जा सकते हैं। नशे के लगातार सेवन से कई प्रकार की गम्भीर बीमारियाँ जैसे एच.आई.वी., एड्स तथा कैंसर आदि भी सामान्यतः देखने को मिलते हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों ने नशामुक्ति के लिए अनेकों केन्द्र खोल रखे हैं परन्तु असली समस्या नशा करने वालों को उपचार के लिए तैयार करना है। नशामुक्ति का उपचार डाॅक्टरों और औषधियों के अतिरिक्त एक ऐसे व्यक्ति की सहायता मांगता है जिसका नशा करने वाले के ऊपर नैतिक नियंत्रण हो। यह कार्य कोई परिवार का सदस्य या समाज सेवी संगठन कर सकते हैं, क्योंकि इस उपचार में भावनात्मक सहारा अत्यन्त आवश्यक होता है।
पंजाब के राजनेता निर्वाचनों के दौरान वोटों के लालच में शराब और अन्य नशीले पदार्थों का खुला वितरण करवाते हैं। परन्तु इन राजनेताओं को गम्भीरता से यह विचार करना चाहिए कि पंजाब के युवाओं को नशे के गर्त में धकेल कर वे पंजाब का आर्थिक विकास भी किस प्रकार सुनिश्चित कर पायेंगे। आज पंजाब की आर्थिक हालत भी लगातार कमजोर होती जा रही है जो किसी समय देश का एक सुदृढ़ आर्थिक राज्य हुआ करता था। यदि पंजाब के राजनीतिक दलों ने इस समस्या पर गम्भीर विवेकशीलता का परिचय न दिया तो कुछ दशकों में ही पंजाब एक लकवाग्रस्त राज्य बन जायेगा जिसमें 16 से 35 वर्ष की आयु के बहुतायत युवक नशे से बर्बाद हो चुके होंगे। शिक्षित और संस्कारी युवक ऐसे अपराधी वातावरण में कार्य करने के स्थान पर देश और संसार के अन्य भागों में जाकर बसना पसन्द करेंगे। निकट भविष्य में अकाली-भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसी तीन मुख्य धाराएँ पंजाब की सत्ता संभालने के लिए लामबन्द हैं। परन्तु देखना यह है कि कौन सी धारा पंजाब को नशामुक्त पंजाब की एक ईमानदार योजना देने में सक्षम होगी। नशामुक्त पंजाब की योजनाओं पर चर्चा और कार्य करने के लिए यह उचित समय है।
भाजपा शासित केन्द्र सरकार पर तो नशामुक्त पंजाब का दोहरा दायित्व है। केन्द्र सरकार यदि पंजाब को नशामुक्त करने की कोई योजना लागू न करवा पाई तो एक तरफ उसकी यह पाकिस्तानी षड्यन्त्रों के सामने करारी हार मानी जायेगी और दूसरी तरफ यह भी प्रबल सम्भावना है कि पंजाब से निकला नशों का यह दरिया देश के अन्य प्रान्तों में भी अपना प्रभाव फैलाने लगे। इसलिए केन्द्र सरकार को त्वरित इस सारी समस्या के बहुआयामी हल खोलने चाहिए जिनमें मुख्य हैं तस्करी पर रोकथाम के लिए सीमा चैकसी, नशामुक्ति की सामाजिक योजनाएँ लागू करना तथा शिक्षा के माध्यम से बच्चों को नशे के विरुद्ध मजबूत करना। केन्द्र सरकार की गम्भीरता न केवल पंजाब को नशामुक्त बनायेगी अपितु सारे भारत की नशामुक्ति का आधार तैयार होगा। क्योंकि देश के अन्य प्रान्तों में भी नशे की समस्या एक बहुत बड़ी चुनौती है। इसलिए पंजाब के बहाने केन्द्र सरकार को सारे देश के लिए नशामुक्ति योजनाएँ तैयार करनी चाहिए।