महिला ने इस फैसले को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि उसने तलाक की मंजूरी नहीं दी थी और वह आदेश के दिन निचली अदालत में मौजूद नहीं थी। इस याचिका प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति की 2008 में मौत हो गई और बाद में उसकी मां भी गुजर गई। इस संबंध में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए अब कहा है कि महिला की अपील पुरुष की मौत के बाद भी उसके कानूनी वारिस के साथ जारी रहेगी।
कानून रिव्यू/ दिल्ली
———————- है न अचंभा! पति की मौत के 10 साल कोर्ट तलाक की सुनवाई के लिए तैयार हो पाई है। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत को दोनो पक्षों की रजामंदी को सुनना था। लेकिन इस मामले में साफ तौर पर ऐसा नहीं किया गया क्योंकि महिला छह अक्टूबर 2007 को अदालत नहीं आई थी। जब तलाक का आदेश दिया गया था दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक को खारिज करने की मांग करने वाली उस महिला की याचिका पर सुनवाई करने की मंजूरी दे दी है जिसके पति की मौत 10 साल पहले हो गई थी। महिला का दावा है कि निचली अदालत के फैसले के दिन वह अदालत में मौजूद नहीं थी और उसने इस फैसले पर अपनी रजामंदी नहीं दी थी। जस्टिस अनु मल्होत्रा ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तभी तलाक को मंजूरी दी जा सकती है। जब फैसले के दिन तक दोनों पक्ष इसके लिए रजामंद हों। हाईकोर्ट ने यह संज्ञान लिया कि मौजूदा मामले में महिला उस दिन निचली अदालत नहीं आई थी जब यह आदेश दिया गया था। इन दोनों की शादी फरवरी- 2001 में हुई थी और चार साल बाद पति ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए 2005 में तलाक लेने की अर्जी दायर कर दी। हालांकि सुनवाई के दौरान वह दोनों एक समझौते पर पहुंचे कि आपसी सहमति से वह तलाक के लिए अर्जी दायर करेंगे और अलग हो जाएंगे। समझौते के अनुसार व्यक्ति को महिला को गुजर.बसर के लिए 15 लाख रुपये देने थे। हाईकोर्ट ने यह भी संज्ञान लिया कि निचली अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार महिला ने बाद में कहा कि वह तब आपसी सहमति से तलाक देगी जब उसे 28 लाख रुपये मिलेंगे। निचली अदालत ने पाया कि पुरुष ने पहले ही महिला को आठ लाख रुपये दे दिए हैं और वह उससे अधिक धन की उगाही करना चाहती है। इसके बाद निचली अदालत ने महिला द्वारा रजामंदी नहीं देने की याचिका खारिज कर दी और आपसी सहमति वाले तलाक का फैसला दे दिया। निचली अदालत ने तब कहा था कि महिला पुरुष द्वारा चार डिमांड ड्राफ्ट से दिए गए आठ लाख रुपये की राशि लेने के लिए आजाद है। वहीं महिला ने इस फैसले को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि उसने तलाक की मंजूरी नहीं दी थी और वह आदेश के दिन निचली अदालत में मौजूद नहीं थी। इस याचिका प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति की 2008 में मौत हो गई और बाद में उसकी मां भी गुजर गई। इस संबंध में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले का हवाला देते हुए अब कहा है कि महिला की अपील पुरुष की मौत के बाद भी उसके कानूनी वारिस के साथ जारी रहेगी।