व्यभिचार पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार को झटका
कानून रिव्यु/नई दिल्ली
———————————–सुप्रीम कोर्ट की फाइल फोटोण्नई दिल्लीरू सुप्रीम कोर्ट ने व्याभिचार धारा 497 से जुड़े कानून को असंवैधानिक बताते हुए खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रावधान असंवैधानिक है, क्योंकि इससे भेदभाव होता है। सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 9 अगस्त को ही व्यभिचार की धारा 497 पर फैसला सुरक्षित रखा था। पीठ के सामने मसला उठा था कि आइपीसी की धारा 497 अंसवैधानिक है या नहीं, क्योंकि इसमें सिर्फ पुरुषों को आरोपी बनाया जाता है, महिलाओं को नहीं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि पति महिला का मालिक नहीं होता है। किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं करार दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि चीन, जापान, ब्राजील में भी ये अपराध नहीं रहा,् इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार कानून को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया।
फैसला केंद्र के लिए झटका
व्यभिचार के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केंद्र सरकार को झटका देने वाला है। दरअसल व्यभिचार एडल्टरी कानून का मौजूदा मोदी सरकार ने समर्थन किया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा था। सरकार ने कहा था कि व्यभिचार विवाह संस्थान के लिए खतरा है और परिवारों पर भी इसका असर पड़ता है। केंद्र सरकार की तरफ से एएसजी पिंकी आंनद ने कहा अपने यहां समाज में हो रहे विकास और बदलाव को लेकर कानून को देखना चाहिए न कि पश्चिमी समाज के नजरिए से। शादी जैसी संस्था पर खतरे की दुहाई देकर केंद्र सरकार ने कानून का समर्थन किया था। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को ठुकरा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि विवाहित महिला अगर किसी विवाहित पुरुष से संबंध बनाती है तो सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों,् जबकि महिला भी अपराध की जिम्मेदार है। सभी पहलुओं पर विचार करते हुए आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को महिलाओं की गरिमा के विपरीत और भेदभाव वाला मानते हुए रद्द कर दिया।