अकेले ग्वालियर संभाग से ही सैकड़ों कॉल आती हैं। खास बात ये है कि ज्यादा पुरूष अच्छे परिवार और अच्छी नौकरी वाले होते हैं। सेव इंडियन फैमिली संस्था के मुताबिक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 29.86 फीसदी पुरुष पत्नियों से दुखी हैं। तलाक के 90 प्रतिशत मामलों में बच्चे पुरुषों को नहीं बल्कि महिलाओं को सौंप दिए जाते हैं संस्था ने बताया कि दहेज प्रताड़ना से लेकर यौन हिंसा और घरेलू हिंसा के आरोपी होते हैं, जिनमें लगभग 70 प्रतिशत मामले आधारहीन और झूठे होते हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 29.86 फीसदी पुरुष हैं, पत्नियों से दुखी
- कानून रिव्यू नई दिल्ली
————————पत्नी से पीडित पुरूषों की तदाद में अच्छा खासा इजाफा हो रहा है। महिला थाना और महिला आयोग में सिर्फ महिलाओं की सुनवाई होती है। बेचारा पत्नी के जुल्मो सितम से परेशान पति जहां तो कहां जाएं। कानून पहले पत्नी की ही सुनता है पति की बारी तो बाद में आती है। पत्नियों से परेशान पतियों की सुनवाई के लिए अब एक संगठन तैयार हो गया है और कोई भी पत्नी से पीडित पति अपनी व्यथा यहां पर सुना सकता है। पुरुषों की मदद के लिए ग्वालियर की संस्था अब उन पुरुषों को तलाशती है जो किसी न किसी रूप में पत्नियों से प्रताड़ित हैं उसके बाद उनकी कानूनी और आर्थिक मदद करती है। पीड़ित पुरुषों की आवाज को अब ग्वालियर का सेव इंडियन फैमिली संगठन उठा रहा है। सगंठन ने महिला आयोग की ही तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर पुरुष आयोग के गठन की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ रखा है। संस्था के फाउंडर निशि कुमार जैन के मुताबिक बीते कुछ सालों में देखने में आ रहा है कि ग्वालियर चंबल संभाग में सबसे ज्यादा महिला अपराध हो रहे हैं। संस्था ने जब मामलों की पड़ताल की तो इसका दूसरा पहलू भी सामने आया। दहेज उत्पीड़न, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, महिला हित के उद्देश्य से बने इन कानूनों को दुरुपयोग भी जमकर हो रहा है। जिसमें केवल पत्नियां और लड़कियां इसलिए पुरुषों को परेशान कर रही है। उनका इगो पुरूषों ने हर्ट किया है सेव इंडियन फैमिली संस्था के पास हर महीने देशभर से पांच हजार से ज्यादा कॉल आती हैं। जिसमें पत्नियों के द्वारा पुरूष प्रताड़ित किए जाते हैं। अकेले ग्वालियर संभाग से ही सैकड़ों कॉल आती हैं। खास बात ये है कि ज्यादा पुरूष अच्छे परिवार और अच्छी नौकरी वाले होते हैं। सेव इंडियन फैमिली संस्था के मुताबिक मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 29.86 फीसदी पुरुष पत्नियों से दुखी हैं। तलाक के 90 प्रतिशत मामलों में बच्चे पुरुषों को नहीं बल्कि महिलाओं को सौंप दिए जाते हैं संस्था ने बताया कि दहेज प्रताड़ना से लेकर यौन हिंसा और घरेलू हिंसा के आरोपी होते हैं, जिनमें लगभग 70 प्रतिशत मामले आधारहीन और झूठे होते हैं।