लैगिंक भेदभाव पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा
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- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
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अमूमन रेप के मामले प्रकाश आते ही रहते हैं किंतु क्या पुरुषों का भी रेप हो सकता है। इस बात को लेकर एक नई बहस शुरू हो गई है। कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्या पुरुष का रेप नहीं हो सकता है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की रेप से जुड़ी धाराओं की संवैधानिकता को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने धारा 375 और धारा 376 पर सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने जानना चाहा है कि क्या पुरुष का रेप नहीं हो सकता है। याचिकाकर्ता संजीव कुमार ने अपनी याचिका में कहा है कि दुष्कर्म को लेकर जो धाराएं मौजूदा प्रारूप में हैं, उनमें लैंगिक भेदभाव है। इन धाराओं में पुरुषों को कोई संरक्षण नहीं दिया गया है, जो कि ठीक नहीं है। लैंगिक भेदभाव वाली धाराओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग संजीव कुमार ने याचिका में भारतीय दंड संहिता के तहत बलात्कार और उसकी सजा को लेकर श्लैंगिक भेदभाव वाली धाराओं को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है। याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने सरकार को तीन हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। कोर्ट 23 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई करेगा। लिंग निरपेक्ष नहीं है कानून सामाजिक कार्यकर्ता संजीव कुमार की इस याचिका में कहा गया है कि आईपीसी की धारा 375 और धारा 376 मौजूदा स्वरूप में महिलाओं के हक में है, यह लिंग निरपेक्ष नहीं है और इसके तहत पुरुषों को सुरक्षा नहीं दी गई है। ऐसे में ये संवैधानिक परीक्षण में ठीक नहीं बैठता है। याचिका में कहा गया है कि निजता के अधिकार पर शीर्ष अदालत ने हाल ही में जो फैसला दिया है उसके मुताबिक, पुरुष और महिला दोनों को समान संरक्षण हासिल है। ऐसे में कोई भी विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकता है। कानून याचिका में बताया गया है कि 63 देशों में बलात्कार को लेकर लिंग निरपेक्ष कानून है। ऐसे में अदालत को इस पर विचार करना चाहिए। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और धारा 376 के तहत अपराध के लिए सजा बताई गई है।
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