कानून रिव्यू/नई दिल्ली
आखिर पुलिस को हथकड़ी लगाने का अधिकार कब है? आखिर वे कौन सी परिस्थितियां हैं? जब पुलिस किसी आरोपी को हथकड़ी लगा सकती है? सुप्रीम कोर्ट अपने फैसलों में हथकड़ी लगाने को असंवैधानिक कह चुका है। अक्सर हमने देखा है कि पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करते समय या न्यायालय में पेश करते हुए हथकड़ी लगाती है। किसी न्यायालय का यह आम नज़ारा है कि पुलिस किसी आरोपी को जब अदालत लाती है और उसे वापस थाने या जेल ले जाती है तो उसे हथकड़ी लगा देती है। यह जानना आवश्यक है कि आखिर पुलिस को हथकड़ी लगाने का अधिकार कब है? आखिर वे कौन सी परिस्थितियां है? जब पुलिस किसी आरोपी को हथकड़ी लगा सकती है। व्यक्ति कैसे गिरफ्तार किया जाएगा,इसकी प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 46 में दी गई है। इस धारा में ये चार बातें कही गई हैं। गिरफ्तारी करने में पुलिस अधिकारी या अन्य जो गिरफ्तारी कर रहा है, गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुत छुएगा या परिरुद्ध करेगा, जब तक उसने वचन या कर्म द्वारा खुद को अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया गया हो। परंतु जहां किसी स्त्री को गिरफ्तार किया जाना है, वहां जब तक कि परिस्थितियों से इसके विपरीत उपदर्शित न हो, गिरफ्तारी की मौखिक इत्तेला पर अभिरक्षा में उसके समपर्ण कर देने की उपधारणा की जाएगी और जब तक कि परिस्थितियों में अन्यथा अपेक्षित ना हो जब तक पुलिस अधिकारी महिला न हो, तब तक पुलिस अधिकारी महिला को गिरफ्तार करने के लिए उसके शरीर को नहीं छुएगा। यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किए जाने के प्रयास का बलात प्रतिरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने का प्रयत्न करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक सब साधन को उपयोग में ला सकता है। इस धारा की कोई बात ऐसे व्यक्ति की जिस पर मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का अभियोग नहीं है,मृत्यु कारित करने का अधिकार नहीं देती है। असाधारण परिस्थितियों के सिवाय, कोई स्त्री सूयार्स्त के बाद और सूर्योदय से पहले गिरफ्तार नहीं की जाएगी और जहां ऐसी असाधारण परिस्थितियां विद्यमान हैं वहां स्त्री पुलिस अधिकारी लिखित में रिपोर्ट करके उस प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेड की पूर्व अनुज्ञा अभिप्राप्त करेगी, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर अपराध किया गया है या गिरफ्तारी की जानी है। सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन 1978 के केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि पुलिस किसी व्यक्तिको हथकड़ी नहीं लगा सकती और अगर वह ऐसा करती है तो यह पूरी तरह से अंवैधानिक होगा और यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22 का उल्लंघन होगा। अनुच्छेद 22 किसी व्यक्ति के मनमाने तरीके से गिरफ्तारी के निरोध के संबंध में है। किसी भी व्यक्ति की मनमानी तरीके से गिरफ्तारी नहीं होगी। जबकि अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संबंध में है। किसी व्यक्ति के प्राण और दैहिक स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाई जा सकती। इसके अलावा भी सुप्रीम कोर्ट ने अंजनी कुमार सिन्हा बनाम स्टेट ऑफ बिहार 1992 के केस में कहा है कि पुलिस किसी व्यक्ति को असीमित शक्ति का उपयोग करते हुए हथकड़ी नहीं लगा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर परिस्थितियां ऐसी हैं जिसमें बंदी का आचरण या चरित्र इस प्रकार है, जिसमें उसे हथकड़ी लगाने का युक्तियुक्त कारण है कि वह अभिरक्षा से भाग जाएगा या वह लोक शांति को भंग करेगा या वह हिंसा करेगा तो ऐसे में पुलिस उस व्यक्ति को हथकड़ी लगा सकती है। अगर बिना किसी कारण के किसी व्यक्ति को हथकड़ी लगाई जाती है यह उसके मूल अधिकार का हनन होगा। इसके अलावा भी सुप्रीम कोर्ट ने अन्य केस में कई बार कहा है कि बिना किसी युक्तियुक्त कारण के किसी व्यक्ति को हथकड़ी लगाना असंवैधानिक है और अगर पुलिस किसी को हथकड़ी लगाना चाहती है तो उसे युक्तियुक्त कारण बताते हुए संबंधित न्यायालय से पूर्व अनुमति लेनी होगी।