सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों को यह स्मरण रखना चाहिए कि यदि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसारपुलिस स्टेशनों में पड़े वाहनों और अन्य सम्पत्तियों का प्रबन्ध करने की कार्यवाही नहीं की तो भविष्य में कभी भी सर्वोच्च न्यायालय राज्यों के पुलिस प्रमुखों के विरुद्ध अदालत की अवमानना की कार्यवाही कर सकता है।
अपराध में शामिल वस्तुओं और वाहन को पकड़ कर पुलिस स्टेशनों में रखने का कोई लाभ नहीं है। मजिस्ट्रेट अदालतों को यह वाहन उचित शर्तों पर तुरन्त सुपरदारी पर देने की पहल करनी चाहिए। यदि वाहन का कोई दावा न करे तो ऐसे वाहनों की बिक्री करने का भी पुलिस को अधिकार है। यदि वाहन बीमित हों तो बीमा कम्पनियों को सूचना दी जानी चाहिए। यदि बीमा कम्पनी भी उसका कब्जा लेने से इन्कार करे तो अदालत के निर्देशानुसार ऐसे वाहनों की बिक्री कर दी जानी चाहिए। यह सारी व्यवस्था 6 माह के अन्दर की जानी चाहिए। बिक्री से पूर्व वाहनों के पर्याप्त चित्र तथा विस्तृत पंचनामा तैयार किया जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि वाहनों को मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना आवश्यक नहीं होना चाहिए। वाहन पकड़े जाते समय उसकी रिपोर्ट ही मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना ही पर्याप्त होगा।
सर्वोच्च न्यायालय तथा विभिन्न उच्च न्यायालयों के द्वारा अनेकों बार इस प्रकार के निर्णय दिये जाने के बावजूद भी भारत के किसी भी राज्य के पुलिस स्टेशनों में आपको मालखाने के रूप में साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल, कारें और यहाँ तक कि बस और ट्रक खड़े मिल जायेंगे। इन्हीं मालखानों में चोरी में बरामद घरेलू सम्पत्तियाँ जैसे- फ्रिज, टी.वी, सोफे, पलंग, आलमारियाँ आदि भी देखे जा सकते हैं। वैसे मालखाने के नाम पर पुलिस स्टेशन में छोटे या बड़े किसी एक कमरे का निर्धारण किया जाता है, परन्तु मालखाने में जमा सामान इतना अधिक हो जाता है कि उसे पुलिस स्टेशनों के आस-पास खाली स्थान जैसे आंगन, गलियारे और यहाँ तक कि पुलिस स्टेशन की दीवार के बाहर फुटपाथ पर भी रख दिया जाता है। वाहनों की तो इतनी अधिक दुर्गति होती है कि पुलिस द्वारा वाहन जब्त होने के बाद पुलिस स्टेशन के अन्दर या आस-पास खड़े वाहन से टायर तथा अन्य कीमती सामान जैसे रेडिया आदि चोरी होने शुरू हो जाते हैं। कुछ दिन बाद जब वाहन का मालिक सुपरदारी पर अपना वाहन लेने जाता है तो उसे कभी भी पुरानी स्थिति का अपना वाहन नहीं मिलता।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-451 तथा 457 इस सम्बन्ध में विशेष प्रावधान प्रस्तुत करती हैं। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-451 में यह प्रावधान है कि जब भी किसी अपराध की घटना से सम्बन्धित कोई सम्पत्ति दण्ड न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो दण्ड न्यायालय को यह अधिकार है कि मुकदमा समाप्त होने तक उस सम्पत्ति को उसकी उचित रक्षा के लिए आदेश करे। मजिस्ट्रेट अदालत ऐसी सम्पत्तियों के बारे में विशेष गवाही नोट करके उसके विक्रय या किसी अन्य प्रकार से उस सम्पत्ति के प्रबन्धन का आदेश दे सकती है। धारा-457 में यह प्रावधान है कि जब पुलिस किसी सम्पत्ति को जब्त करती है तो मजिस्ट्रेट के आदेश से उस सम्पत्ति को उसके हकदार व्यक्ति को दे सकती है। यदि जब्त की गई सम्पत्ति का कोई हकदार नहीं होता तो पुलिस ऐसी सम्पत्ति के बारे में स्थानीय मजिस्ट्रेट की आज्ञा से एक ऐसी घोषणा करवा सकती है जिससे 6 माह के अन्दर किसी हकदार व्यक्ति को सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया जाये।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री पी. सथाशिवम तथा श्री दीपक वर्मा की खण्डपीठ ने वर्ष 2010 में जनरल इंश्योरेंस परिषद् की याचिका पर एक विशेष निर्णय दिया जिसमें भारत के सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों को यह आदेश दिया गया है कि वे जब्त की गई सम्पत्तियों के सम्बन्ध में आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार कारवाई करते हुए इन सम्पत्तियों को इनके हकदारों को देने या विक्रय आदि का प्रबन्ध करे। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में यह भी कहा है कि यदि इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जाता तो कोई भी व्यक्ति अदालत के संज्ञान में इसे ला सकता है और अदालत इस निर्णय के बाद इस सम्बन्ध में की गई लापरवाहियों को कड़ाई के साथ निपटेगी।
मैंने इस निर्णय के बाद भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक विशेष पत्र लिखकर उन्हें आपराधिक प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए प्रेरित किया। लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने मेरे इस पत्र की प्राप्ति से मुझे अवगत तो कराया है परन्तु पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के अतिरिक्त किसी राज्य से भी क्रियान्वयन के सम्बन्ध में कोई विशेष सूचना प्राप्त नहीं हुई। पंजाब सरकार ने इस कार्य के लिए एक विशेष समिति गठित कर दी है जो पुलिस स्टेशनों में पड़ी सम्पत्तियों को उनके हकदारों को देने या बेचने की प्रक्रिया निर्धारित करेगी। हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने तो मुझे स्वयं बताया कि हरियाणा के पुलिस स्टेशनों में लगभग 80 प्रतिशत जब्त वाहनों का प्रबन्ध किया जा चुका है।
चण्डीगढ़ प्रशासन ने तो इस सम्बन्ध में विधिवत कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है। एक परिपत्र के द्वारा प्रशासन ने सभी पुलिस स्टेशनों को इस प्रक्रिया की विधिवत योजना बनाकर भेज दी है जिससे 6 माह के भीतर जब्त की गई सम्पत्ति का प्रबन्ध हो सके। चण्डीगढ़ के गृह सचिव ने मुझे एक पत्र के द्वारा पुलिस स्टेशनों को भेजा गया वह परिपत्र भी भेजा है जिसमें पुलिस स्टेशनों को निर्देश दिया गया है कि दुर्घटनाओं, चोरी या अन्य अपराधों में जब्त किये गये वाहनों का प्रबन्ध किस प्रकार किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम इस सम्बन्ध में जनरल इंश्योरेंस कारपोरेशन से उस वाहन की बीमा कम्पनी का नाम पता किया जाना चाहिए। इस प्रकार बीमा कम्पनी को वह वाहन छुड़ाने के लिए पत्रभेजा जाना चाहिए। बीमा कम्पनी इस सम्बन्ध में स्थानीय मजिस्ट्रेट अदालत से वाहन छुड़ाने का आदेश प्राप्त कर सकती है। पुलिस स्टेशन को प्रत्येक वाहन का विवरण अपने पास रखना चाहिए जिसमें वाहन का प्रकार, कम्पनी, माॅडल, रंग, इंजन नम्बर, चेसी नम्बर तथा रजिस्ट्रेशन नम्बर के अतिरिक्त उस वाहन में लगे उपकरणों का विवरण, वाहन के पंजीकृत मालिक का नाम पता, बीमा कम्पनी का नाम पता आदि दर्ज किया जाना चाहिए। प्रत्येक वाहन के चारो तरफ से चित्र लेकर सुरक्षित रखे जाने चाहिए। चित्र के अतिरिक्त वीडियो भी बनाया जाना चाहिए।
इन चित्रों और वीडियो को सी.डी. के रूप में सम्बन्धित अदालत में चल रहे मुकदमें के रिकाॅर्ड में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिससे इसी विवरण और प्रमाणों को मजिस्ट्रेट अदालत गवाही के रूप में प्रयोग कर सकेगी। इस प्रकार के विवरण और प्रमाण सुरक्षित रखने के बाद वाहन को उसके हकदार मालिक, बीमा कम्पनी को दिया जाना चाहिए। यदि किसी वाहन का कोई हकदार सामने नहीं आता तो पुलिस स्टेशन अधिकारी मजिस्ट्रेट की आज्ञा से वाहन को विक्रय करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकते हैं। प्रत्येक पुलिस स्टेशन को जब्त किये गये सभी वाहनों और हकदारों, बीमा कम्पनियों या विक्रय प्रक्रिया में दिये गये वाहनों का पूर्ण विवरण गृह विभाग को प्रतिमाह भेजना होगा। यदि कोई मजिस्ट्रेट वाहन को विक्रय करने की अनुमति नहीं देता तो पुलिस अधिकारी इसकी सूचना जिला एवं सत्र न्यायाधीश चण्डीगढ़ को दें। चण्डीगढ़ पुलिस इस सम्बन्ध में अपने मुख्यालय में एक विशेष दल का भी गठन करे जो इस सारी प्रक्रियाओं पर निगरानी रखे।
इसके अतिरिक्त पुलिस विभाग को इन लावारिस वाहनों की नीलामी करने से अपार धन भी प्राप्त हो सकता है। तमिलनाडू के गृह विभाग ने मुझे अपने पत्र संख्या-46066/पोल-11/2015/2 दिनांक 23 सितम्बर, 2015 के द्वारा बताया है कि विगत तीन वर्षों में तमिलनाडू ने पुलिस स्टेशनों में पड़े लावारिस वाहनों की नीलामी से लगभग 10 करोड़ रुपया वसूल किया है।
सभी राज्यों के पुलिस प्रमुखों को यह स्मरण रखना चाहिए कि यदि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार पुलिस स्टेशनों में पड़े वाहनों और अन्य सम्पत्तियों का प्रबन्ध करने की कार्यवाही नहीं की तो भविष्य में कभी भी सर्वोच्च न्यायालय राज्यों के पुलिस प्रमुखों के विरुद्ध अदालत की अवमानना की कार्यवाही कर सकता है।
-अविनाश राय खन्ना, संसद सदस्य राज्य सभा