अब यदि पुलिस हिरासत में किसी भी व्यक्ति को टॉर्चर किया गया तो पुलिस अथवा जिम्मेदार अधिकारी की खैर नही है मुकदमा दर्ज होगा और फिर कानून में उम्रकैद और साथ में जुर्माना तक हो सकता है। इस बात की सिफारिश लॉ कमीशन ने कर दी है। द प्रीवेंसशन ऑफ टॉर्चर बिल 2017 के नाम से सौंपे गई अपनी रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा है कि केंद्र सरकार यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन की पुष्टि करती है जिसमें उन्होंने हिरासत में टॉर्चर को लेकर सज़ा की बात कही गई है
लॉ कमीशन की जिम्मेदार अधिकारी या पुलिस ऑफिसर को उम्रकैद की सिफारिश
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
…………………………………अब यदि पुलिस हिरासत में किसी भी व्यक्ति को टॉर्चर किया गया तो पुलिस अथवा जिम्मेदार अधिकारी की खैर नही है मुकदमा दर्ज होगा और फिर कानून में उम्रकैद और साथ में जुर्माना तक हो सकता है। इस बात की सिफारिश लॉ कमीशन ने कर दी है। द प्रीवेंसशन ऑफ टॉर्चर बिल 2017 के नाम से सौंपे गई अपनी रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा है कि केंद्र सरकार यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन की पुष्टि करती है जिसमें उन्होंने हिरासत में टॉर्चर को लेकर सज़ा की बात कही गई है। कमीशन ने कहा है कि भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए है लेकिन एन्टी टॉर्चर लॉ के न होने से इस संधि का अनुसमर्थन करना बाक़ी है। जग कि 160 देश इसका अनुसमर्थन करते हैं। हालांकि इससे पहले यूपीए सरकार ने टॉर्चर को लेकर एक बिल बनाया था लेकिन वो सदन से पास नही हो पाया। लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा है कि पीड़ित को मुआवजा देने के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड यानि सीआरपीसी 1973 और इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में बदलाव की जरूरत है। कमीशन ने सीआरपीसी में बदलाव कर मुआवजा और जुर्माने के प्रावधान की सिफारिश की है। कमीशन ने इंडियन एविडेंस एक्ट में एक नया प्रावधान जोड़ने की सिफारिश की है जिसके मुताबिक पुलिस हिरासत में किसी भी तरह की चोट की दशा में ये माना जाएगा कि चोट पुलिस के मार से लगी है और ये साबित करने की जिम्मेदारी पुलिस की होगी की चोट पुलिस के मार से नहीं लगी है। कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा देने की वकालत करते हुए कहा है कि अदालतें हिरासत में टॉर्चर के मामले में मुआवजा तय करते हुए पीड़ित की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखेंगें।