शराब के सेवन को हतोत्साहित करने का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय यह होना चाहिए कि सरकार शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से बच्चों को शराब के विरुद्ध सचेत करे जिससे न तो वे स्वयं कभी इसके चक्रव्यूह में फंसे और अपने माता-पिता को भी इस चक्रव्यूह से निकालने का प्रयास करें।
केरल सरकार अपने एक प्रशासनिक प्रयोग के आधार पर शराब के कुचक्र को तोड़ने के प्रयास में जुटी है। इस प्रशासनिक प्रयोग के अन्तर्गत बेशक प्रान्त में शराबबन्दी की कोई औपचारिक घोषणा न की गई हो परन्तु शराब का प्रचलन कम करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक उपाय माना जा सकता है। केरल स्वतन्त्रता से पहले कोचीन राज्य के नाम से जाना जाता था। जहाँ 1902 में एक विशेष आबकारी कानून बनाया गया था जो केरल बनने के बाद भी राज्य में लागू रहा। इस कानून के अनुसार केरल में शराब के उत्पादन का कार्य निजी क्षेत्र के लिए नहीं दिया जा सकता था। राज्य द्वारा संचालित केवल एक फैक्ट्री शराब उत्पादन का कार्य करती थी। 1967 केरल राज्य ने भी शराबबन्दी का प्रयास किया परन्तु वह विफल हो गया। इस विफलता का कारण था केरल की सीमा के साथ लगते अन्य राज्य जहाँ शराबबन्दी नहीं थी। परिणामतः केरल में शराबबन्दी की घोषणा होते ही अन्य राज्यों से शराब की तस्करी प्रारम्भ हो गई। उत्तर भारत के हरियाणा में भी इसी कारण शराबबन्दी की योजना असफल हुई। इसलिए केरल सरकार ने तभी से प्रशासनिक उपायों के द्वारा शराब के सेवन को हतोत्साहित करने के प्रयास प्रारम्भ कर दिये। एक तरफ केरल राज्य शत-प्रतिशत शिक्षित राज्य होने का दावा करता है तो दूसरी तरफ सारे देश में होने वाली शराब की खपत का 14 प्रतिशत केवल राज्य में है। इस सामाजिक दाग को मिटाने के लिए ही केरल के कुछ गम्भीर राजनेताओं ने इस शराब हतोत्साहित उपायों पर चिन्तन किया होगा।
1992 में केरल सरकार ने एक विशेष प्रशासनिक आदेश जारी करते हुए विदेशी शराब की बिक्री केवल दो सितारा या उससे उच्च दर्जे के होटलों तक सीमित कर दी। 1996 में अरक नामक देसी शराब को भी प्रतिबन्धित कर दिया गया। 2002 में इस शराब हतोत्साहन उपाय को एक कदम और खिसकाते हुए अब शराब की बिक्री तीन सितारा होटलों तथा उससे उच्च दर्जे के होटलों तक ही सीमित कर दी गई। दो सितारा होटलों के मालिकों ने इस आदेश को उच्च न्यायालय तथा अन्ततः सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार की नीति को वैध ठहरा दिया। इस सफलता से अभीभूत केरल सरकार ने 2011 में इस नीति को पुनः संशोधित करते हुए अब शराब की बिक्री चार सितारा और पांच सितारा होटलों तक सीमित कर दी। इस सामाजिक बुराई के विरुद्ध स्वयं राज्य सरकार अपने प्रगति के पथ पर आगे बढ़ती गई और वर्ष 2014 में केरल सरकार ने यह आदेश दिया कि शराबमुक्त केरल के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शराब बिक्री के लाइसेंस भविष्य में केवल पांच सितारा होटलों को ही दिये जायेंगे। इसके अतिरिक्त किसी होटल के पुराने लाइसेंस का नवीनीकरण भी नहीं किया जायेगा।
सरकार ने यह भी निर्णय लिया कि सरकारी शराब बिक्री की दुकानों में से भी 10 प्रतिशत दुकानों को बन्द कर दिया जायेगा। इन दुकानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को अवश्य ही किसी अन्य कार्य में नियुक्त किया जायेगा। शराब के आदी हुए लोगों को शराब की आदत से मुक्त कराने के लिए सरकार ने एक विशेष योजना भी बनाई जिसके खर्च हेतु सरकार ने शराब की बिक्री पर ही 5 प्रतिशत कर लगा दिया। इस प्रकार शराब के प्रयोग को हतोत्साहित करने के प्रचार कार्यक्रम के लिए भी सरकार के पास एक अच्छे खासे कोष की व्यवस्था हो गई। सरकार ने शराब के विरुद्ध प्रचार कार्यक्रम को समाज में और विशेष रूप से शिक्षण संस्थाओं में लागू करना प्रारम्भ कर दिया। प्रत्येक रविवारों को भी शराबरहित घोषित कर दिया।
किसी भी सामाजिक बुराई के विरुद्ध सरकारी कार्यवाही का सदैव एक ही परिणाम निकलता है कि उस सामाजिक बुराई पर आर्थिक रूप से निर्भर लोग अपने धन-बल के आधार पर ऐसे प्रयासों को ही विफल करने के प्रयास में जुट जाते हैं। शराब के सैकड़ों व्यापारी भी इसी प्रकार लाखों, करोड़ों रुपये खर्च करके अपनी याचिकाएँ अदालतों के समक्ष लेकर खड़े होते हुए नजर आ जाते हैं। केरल के इस शराब हतोत्साहन अभियान के विरुद्ध भी ऐसा ही हुआ। सरकार की शराब हतोत्साहन नीति के विरुद्ध सबसे पहला तर्क तो यह दिया गया कि शराब बेचना एक व्यापार है और प्रत्येक नागरिक का यह मूल अधिकार है कि वह इस व्यापार को कर सकता है। इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ताओं ने पांच सितारा होटलों तक शराब की बिक्री सीमित करने को चुनौती देते हुए कहा कि ये बड़े होटल इस विशेष छूट का गैर-कानूनी प्रयोग करते हैं। याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क भी प्रस्तुत किया कि सरकार यदि शराब को हतोत्साहित करना चाहती है तो सरकारी दुकानों की संख्या कम की जानी चाहिए। जबकि वास्तव में सरकार ने लगभग 100 सरकारी दुकानों को हाल ही में बन्द कर दिया था। दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ पांच सितारा होटलों के विरुद्ध लगाये गये इस आरोप पर भी गम्भीर चिन्ता व्यक्त की कि इन होटलों ने कम कीमत पर शराब बेचने की विशेष व्यवस्था कर रखी है। जिस कारण इन होटलों का लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है। सरकार का तर्क था कि पांच सितारा होटलों में होने वाली शराब की बिक्री एक प्रतिशत से भी कम होती है। इसके अतिरिक्त पांच सितारा होटलों में विदेशी पर्यटकों के लिए यह सुविधा देना आवश्यक भी है। पांच सितारा होटलों में कोई भी व्यक्ति केवल शराब पीने के उद्देश्य से नहीं जाता।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री विक्रमजीत सेन तथा श्री शिवाकीर्ति सिंह की पीठ ने अपने निर्णय में यह स्पष्ट कहा है कि केरल सरकार की नीति संविधान के नीति निर्देशक सिद्धान्त के अनुरूप है। अनुच्छेद-47 में स्पष्ट रूप से शराबबन्दी को सरकार की नीति के रूप में निर्देशित किया गया है। अतः शराब बेचने का कार्य किसी नागरिक का मूल अधिकार घोषित नहीं किया जा सकता।
केरल सरकार की शराब हतोत्साहित नीति को सर्वोच्च न्यायालय का एक बार फिर समर्थन मिलने से देश के अन्य राज्यों के लिए भी यह मार्ग प्रशस्त हो गया है कि वे जनता को केवल शराबबन्दी जैसे सब्ज़बाग दिखाना बन्द करें और ऐसे प्रशासनिक उपायों से गम्भीरता पूर्वक शराब के सेवन को हतोत्साहित करने के प्रयास प्रारम्भ करें। इन उपायों के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय यह होना चाहिए कि सरकार शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से बच्चों को शराब के विरुद्ध सचेत करे जिससे न तो वे स्वयं कभी इसके चक्रव्यूह में फंसे और अपने माता-पिता को भी इस चक्रव्यूह से निकालने का प्रयास करें।
-विमल वधावन
एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट