व्यक्ति स्वभाव से अपने भविष्य के प्रति चिन्तित रहता है। कभी-कभी उसकी यह चिन्ताएँ तनाव और यहाँ तक कि आक्रोश का कारण बन जाती है। यदि भविष्य के प्रति व्यक्ति की चिन्ताओं को हम सुरक्षा में बदल सकें तो आकस्मिक घटनाओं का सामना करने पर भी वह व्यक्ति अपनी सुरक्षा कवच के कारण निश्चिन्त बना रहेगा। प्रत्येक दुर्घटना आकस्मिक घटना ही होती है, क्योंकि व्यक्ति दुर्घटना का सामना करने के लिए कभी भी पहले से तैयार नहीं हो पाता। यह भी सत्य है कि प्रत्येक दुर्घटना एक प्रकार से ईश्वरीय कार्य ही होती है। प्राकृतिक आपदाओं के सम्बन्ध में तो विशेष रूप से ऐसा माना जाता है कि ये घटनाएँ ईश्वर का प्रकोप है। भूकम्प, सुनामी, आंधी-तूफान, बाढ़ और पहाड़ों का आकस्मिक टूटना आदि बेशक एक घटना मात्र नजर आते हों परन्तु ऐसी एक घटना से ही लाखों, करोड़ों लोग प्रभावित हो जाते हैं। आजकल वैसे भी भूकम्प, समुद्री तूफानों और बाढ़ आदि की घटनाएँ अधिक होने लगी हैं। ऐसे में यदि नागरिकों को इन घटनाओं से होने वाली आकस्मिक क्षति का बीमा उपलब्ध करवा दिया जाये तो नागरिकों को बड़ा भारी संतोष और सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त हो सकेगा। वैसे भी प्रत्येक व्यक्ति भविष्य के प्रति सुरक्षा चाहता है। सरकार का तो विशेष रूप से यह दायित्व बन जाता है कि नागरिकों को अधिक से अधिक सुरक्षा की गारंटी देकर उनकी योग्यताओं और क्षमताओं का लाभ समाज के निर्माण हेतु सुनिश्चित करे।
व्यक्ति अपने रोगों के प्रति अपने आपको सुरक्षित करते हुए चिकित्सा बीमा करवा लेता है। हमारे देश में मोटरवाहनों से दुर्घटनाग्रस्त हुए पीडि़तों के पक्ष में भी सभी वाहनों का तृतीय पक्ष बीमा अनिवार्य है जिससे इन पीडि़तों को मुआवज़े के द्वारा इस आपातस्थिति से लड़ने में सहायता की जा सके। भारतीय दण्ड संहिता की धारा-357ए में अपराध पीडि़तों के लिए भी सरकारी मुआवजे़ का प्रावधान है। परन्तु राज्य सरकारों ने आज तक इस मुआवजा योजना को प्रभावशाली ढंग से लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया।
जब कभी प्राकृतिक आपदाएँ किसी भी क्षेत्र में दस्तक देती हैं तो सारा सरकारी तंत्र अर्थात् केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय निकाय नागरिकों की सेवा में जुट जाते हैं। भारत में कई प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ समय-समय पर नागरिकों के लिए विनाशलीला प्रस्तुत कर जाती हैं। घर टूट जाते हैं, बिजली के खम्भे उखड़ जाते हैं, फसलें नष्ट हो जाती हैं, अनेकों लोग मृत्यु का शिकार हो जाते हैं, शिक्षा व्यवस्था ठप हो जाती है, आवागमन तथा संचार व्यवस्था भी बाधित हो जाती है। इन परिस्थितियों में सरकारी तन्त्र नागरिकों की सेवा में जुट जाता है। सबसे पहले पूरे क्षेत्र को सुरक्षा व्यवस्था के दायरे में लेकर विनाशलीला से हुए नुकसान का आंकलन करते हुए उन लोगों को सुरक्षित निकालना जो जीवित बच गये हैं। उसके बाद उनके लिए स्वच्छ जल, भोजन, चिकित्सा सुविधाएँ, मलवे की सफाई, सिर ढकने के लिए आवास, संचार व्यवस्था के साथ-साथ सड़कों तथा आवागमन माध्यम को पुनर्जीवित करना, विद्यालयों का निर्माण आदि सरकारी प्राथमिकताएँ बन जाती हैं। यह एक प्रकार से उन सब नागरिकों के पुनर्वास की तरह एक विशेष क्षेत्र का पुनर्निर्माण कार्य बन जाता है। इन प्राथिमकताओं के बाद सरकार के सामने इससे भी बड़ा कार्य यह आ जाता है कि प्रत्येक परिवार के नुकसान को धन के रूप में क्षतिपूर्ति का कार्य किस प्रकार प्रारम्भ किया जाये। मृतकों के लिए मुआवज़ा, अपंग हो चुके व्यक्तियों के लिए मुआवज़ा, फसलों के नुकसान का मुआवज़ा, घरों के टूटने का मुआवज़ा और यहाँ तक कि औद्योगिक इकाईयों को पुनस्र्थापित करने के लिए मुआवज़ा या सस्ते ऋण आदि की व्यवस्था करना।
इसी प्रकार देश में आये दिन सामुहिक हिंसा की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। इस सामुहिक हिंसा में पीडि़तों को भी राज्य सरकारें अक्सर मुआवज़े की राशियाँ घोषित करती हैं, परन्तु इस सम्बन्ध में आज तक कोई ऐसी योजना नहीं बन पाई जिसके अन्तर्गत भेदभाव रहित एक समान मुआवज़े की गारण्टी दी जा सके।
सरकार के इस मुआवज़ा सम्बन्धित कार्यों में एक बहुत बड़ी सहायक योजना बन सकती है ‘प्राकृतिक आपदा बीमा’। हमारे देश की बीमा व्यवस्था अब केवल सरकारी क्षेत्र का कार्य नहीं रहा। निजी कम्पनियाँ भी इस व्यवसाय में आ चुकी हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति तो भारी प्रीमियम देकर अपने हर सम्भावित नुकसान का बीमा करवा लेते हैं। परन्तु सामान्य नागरिक अपने घरों का बीमा नहीं करवाता। बीमा कम्पनियाँ अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लक्ष्य को देखते हुए इस प्रकार की बीमा गतिविधियों में रुचि नहीं लेती। वर्तमान बीमा दरों के चलते यदि कोई व्यक्ति प्राकृतिक आपदाओं से क्षतिग्रस्त हुए घर के पुनर्निर्माण के सम्बन्ध में 50 लाख का बीमा करवाये तो उसे लगभग 2 हजार रुपये का वार्षिक प्रीमियम देना पड़ेगा। घर के अन्दर सामान के सम्बन्ध में 10 लाख के बीमे के लिए लगभग 400 रुपये का वार्षिक प्रीमियम बनेगा। कुछ बीमा कम्पनियाँ वार्षिक के स्थान पर 5 वर्ष का बीमा भी उपलब्ध करवाती हैं। परन्तु बीमा कम्पनियाँ क्योंकि व्यवसायिक संस्थाएँ हैं इसलिए वे मुआवज़ा राशि देने से पूर्व कई प्रकार के तकनीकी दांवपेंच लगाती हैं। वैसे भी बीमे का मुआवज़ा मिलने में न्यूनतम एक वर्ष का समय इन कम्पनियों के द्वारा व्यतीत कर दिया जाता है। ये कम्पनियाँ पूरी बीमा राशि भी कभी प्रदान नहीं करती। कृषि क्षेत्रों में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं के कारण तो और भी अधिक कठिनाईयाँ आती हैं। कृषक वर्ग सामान्यतः शिक्षा के अभाव में भी न तो ऐसे उपाय कर पाता है और न ही उनका लाभ उठा पाता है। सामान्य घरेलू व्यवस्थाओं तथा कृषि क्षेत्रों में बीमा करवाने की परम्परा इन्हीं कारणों से बहुत कम है।
प्राकृतिक आपदाओं में नागरिकों की हर सम्भव सहायता का मुख्य दायित्व सरकारों का ही होता है। इसलिए इन आपदाओं से ग्रस्त क्षेत्रों के निवासियों के लिए सरकारों को प्राकृतिक आपदा बीमा योजना प्रारम्भ करनी चाहिए। इस सम्बन्ध में लम्बे चिन्तन और विचार-विमर्श की आवश्यकता है। हमारे देश का 30 प्रतिशत हिस्सा भयंकर भूकम्प की सम्भावनाओं में है, इसके अतिरिक्त 27 प्रतिशत हिस्से में सामान्य भूकम्प की सम्भावनाएँ रहती हैं, 12 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ की सम्भावनाओं से घिरा रहता है। इसी प्रकार हमारे देश के समुद्री किनारों का 76 प्रतिशत भाग समुद्री तूफान और सुनामी की सम्भावनाओं से ग्रसित रहता है। इन सभी आपदाग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों के लिए आपदा प्रबन्धन का एक ठोस उपाय हो सकता है – ‘प्राकृतिक आपदा बीमा’। यदि केन्द्र सरकार इस प्रकार की कोई सुनियोजित योजना बनाने में सफल हो जाती है तो प्राकृतिक आपदाओं के समय सरकारों का वित्तीय बोझ भी सामान्य और सामूहिक निर्माण कार्यों तक ही सीमित हो जायेगा। फिर सरकारों को प्रारम्भिक दौर में भोजन, पानी आदि के अतिरिक्त केवल सड़कों, बिजली, संचार व्यवस्था, स्कूल, अस्पताल आदि के निर्माण पर ही ध्यान केन्द्रित करना होगा।
केन्द्र तथा राज्य सरकारें आपदा सम्भावित सभी क्षेत्रों के निवासियों के लिए संयुक्त रूप से इस बीमा योजना के लिए एक ऐसे कोष का निर्माण करें जिसमें प्रत्येक परिवार की प्रीमियम राशि सरकारें स्वयं प्रदान करें और उस विशाल धनराशि को मुआवज़े के रूप में आपदाग्रस्त क्षेत्र में उदारतापूर्वक बांटने की व्यवस्था करें। इससे जहाँ सरकारों का आकस्मिक वित्तीय बोझ कम होगा वहीं नागरिकों को तुरन्त सहायता उपलब्ध कराना सम्भव हो सकेगा और नागरिकों के मन में सुरक्षा की गारण्टी का एहसास होगा।
इस सम्बन्ध में मैंने राज्यसभा की याचिका समिति के समक्ष भी एक याचिका प्रस्तुत की है जिसमें केन्द्र सरकार को प्रार्थना की गई है कि इस प्रकार की योजना का शीघ्र निर्माण किया जाये जो आपदा क्षेत्रों में मृत्यु, अपंगता तथा सम्पत्ति के नुकसान का बीमा सुविधा उपलब्ध करवा पाये। इस बीमा योजना में प्राकृतिक आपदाओं के कारण मृत्यु का मुआवज़ा, घायलों का चिकित्सा खर्च, घरों के पुनर्निर्माण तथा घरेलू सामान आदि का बीमा शामिल किया जा सकता है। सरकार देश में होने वाली सामुहिक हिंसा के शिकार लोगों को भी इस बीमा योजना का लाभ दे सकती है। यदि केन्द्र सरकार ऐसी योजना बनाती है तो सारे देश के आपदा सम्भावित क्षेत्रों के लोगों का न्यूनतम प्रीमियम राशि के आधार पर वार्षिक बीमा करके आपदाग्रस्त क्षेत्रों के लोगों की सहायता कर सकती है। ऐसी बीमा योजना में प्रीमियम की राशि भी केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों के बीच साझेदारी के आधार पर बाँटी जा सकती है जिससे नागरिकों पर भी किसी प्रकार का बोझ न रहे और सरकार का आकस्मिक बोझ समाप्त हो जाये। यह एक प्रकार से सरकारी स्तर पर आपदा प्रबन्धन कार्यों के आकस्मिक और आपातकालीन बोझ को कम करने में सहायक होगी। केन्द्र सरकार यदि ऐसी कोई केन्द्रीय योजना बनाती है तो लोगों को अपने बीमा सम्बन्धित कागजों आदि के सम्भालने की भी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी क्योंकि सरकार प्रत्येक परिवार के मुखिया और सम्पत्ति संख्या के आधार पर सारे देश के बीमा रिकाॅर्ड को कम्प्यूटर में रिकाॅर्ड कर सकती है। ऐसी बीमा योजना भारत सरकार के सामाजिक दायित्व कार्यक्रम के रूप में सारे विश्व का मार्गदर्शन करेगी क्योंकि अब तक किसी भी देश में ऐसी योजना देखने को नहीं मिलती।
-अविनाश राय खन्ना, संसद सदस्य राज्य सभा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा