वैसे तो भारत की राजनीति अपने आपमें ही एक नाटक के समान दिखने लगी है जिसमें आम नागरिकों की समस्याओं के प्रति कोई गम्भीर दर्द और सच्ची सहानुभूति नजर नहीं आती। परन्तु आम आदमी पार्टी की इस कार्यशैली ने तो यह सिद्ध कर दिया है कि राजनीति के इस नाटक में समय-समय पर मानवता का मखौल उड़ाते हुए नाटक करना भी उसी तरह उचित है जैसे अंग्रेजी कहावत के अनुसार प्रेम और युद्ध में सबकुछ उचित है।
भारतीय संस्कृति का मुख्य आधार सत्य आचरण और परोपकार है। भारतीय संस्कृति में प्राचीन राजाओं ने भी सत्य आचरण और मानवतावाद जैसे लक्षणों के आधार पर अपने राजनीतिक जीवन से जुड़े कत्र्तव्यों का पालन किया। मुगलों और ब्रिटिश शासकों के लगभग एक हजार से अधिक वर्षों के प्रभाव ने भारतीय राजनीति को सत्याचरण, परोपकार और मानवतावाद जैसे लक्षणों के स्थान पर फूट डाला और राज करो का राजनीतिक मंत्र दे दिया। इस राजनीतिक मंत्र के साथ-साथ उस प्रसिद्ध अंग्रेजी कहावत की याद आती है – ष्म्अमतल जीपदह पे ंिपत पद सवअम ंदक ूंतण्ष् अर्थात् प्यार और युद्ध में सब कुछ उचित है। आधुनिक युग में जबसे लोकतंत्र आया तबसे राजनीति को भी एक युद्ध की तरह समझा जाने लगा। भिन्न-भिन्न विचारों वाले राजनेता और राजनीतिक दल सत्ता प्राप्ति को लक्ष्य बनाकर इस लोकतांत्रिक युद्ध में उतरते हैं और अंग्रेजी संस्कृति की उक्त कहावत के प्रभाव में वे समझने लगते हैं कि इस युद्ध में वे कुछ भी करें, सब उचित ही होगा। इस प्रकार लोकतंत्र का एक ऐसा रूप निर्मित हो गया जिसमें जनता को किसी भी प्रकार से सत्तासीन विचारों और कार्यों के प्रति विरोध करने के लिए तैयार करना विपक्षी दलों का मुख्य ध्येय बन गया।
विगत माह केन्द्र सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून के विरुद्ध किसानों का आन्दोलन भी आम आदमी पार्टी ने आयोजित किया। इस रैली के दौरान राजस्थान के दौसा जिले के गजेन्द्र नामक एक किसान ने आत्महत्या कर ली। तालियाँ बजवाने में माहिर इस राजनीतिक दल के अनेकों कार्यकर्ता इस आत्महत्या प्रयास के दौरान भी पेड़ के नीचे खड़े तालियाँ ही बजा रहे थे। गजेन्द्र जब पेड़ पर चढ़ा तो उसके हाथ में एक लम्बा झाड़ू भी था जिससे यह प्रतीत होता है कि वह अपने इस प्रयास के साथ पार्टी के प्रचार को भी जोड़ना चाहता था। जब गजेन्द्र गाँव से दिल्ली के लिए रवाना हुआ तो उसने आस-पड़ोस के कुछ लोगों को यह स्पष्ट बताया था कि उसे श्री मनीष सिसोदिया ने रैली के लिए दिल्ली बुलाया है। इस घटना से पूर्व वह दो-तीन बार मनीष सिसोदिया से दिल्ली में मिला भी था। गजेन्द्र के पेड़ पर चढ़ने के साथ-साथ पार्टी के कुछ कार्यकर्ता भी पेड़ पर चढ़े। उसने जब आत्महत्या की घोषणा की तो नीचे बैठे हुजूम ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी। उसे उकसाने वाले नारे लगाने शुरू कर दिये। यह सारा घटनाचक्र जब चल रहा था तो मंच पर इस पार्टी के सभी मुख्य नेता ठहाके मारकर हंस रहे थे, भाषणबाजी चल रही थी। गजेन्द्र ने अपने गले में जब फंदा लगा लिया तो उस लगे हुए फंदे के बावजूद भी वह पेड़ पर टिककर बैठा हुआ दिखाई दे रहा था। यह निश्चित है कि उसका आत्महत्या का कोई इरादा नहीं था। उसने जो चिट्ठी ऊपर से नीचे फेंकी उसमें भी आत्महत्या का कोई उल्लेख नहीं है अपितु केवल यह लिखा गया था कि उसकी फसल बर्बाद हो चुकी है और वह घर जाने लायक नहीं है। इससे पहले कि पेड़ पर चढ़ने वाले अन्य कार्यकर्ता उस तक पहुँच पाते और उसे बचाने का नाटक पूरा कर दिखाते, अचानक गजेन्द्र का पैर पेड़ के तने से फिसल गया और वह नीचे गिर गया। इस नीचे गिरने की प्रक्रिया में पहले फंदे ने उसके गले को जकड़ा जिससे उसकी श्वास रूक गई और वह नीचे गिर गया। इस प्रकार यह स्पष्ट दिखाई देता है कि फांसी का नाटक केवल नाटक न बना रह सका अपितु वास्तविकता में बदल गया।
यह दृश्य किसी फिल्म की शूटिंग से मेल खाता हुआ दिखाई दे रहा था जिसमें भूमिका करने वाले हीरो को ऊपर से कूदकर आत्महत्या का दृश्य देना था। फिल्म निदेशक ने दृश्य फिल्मांकन से पूर्व उस हीरो को अनेकों बार यह आश्वस्त करते हुए उसे कूदने के लिए प्रेरित किया कि वास्तव में तेरा कुछ भी नहीं बिगड़ेगा, तुझे बचाने के लिए हमने हर प्रकार का प्रबन्ध कर रखा है, हम तुझे सचमुच में मरने नहीं देंगे, यह केवल एक नाटक होगा। ऐसा लगता है कि इस किसान रैली की पृष्ठभूमि में भी इसी प्रकार के किसी फिल्मी नाटक की तरह तैयारी की गई थी।
गजेन्द्र ने कुछ वर्ष पूर्व भाजपा की टिकट पर विधायक का निर्वाचन लड़ा परन्तु हार गया। अगली बार उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और फिर हार गया। उसने कांग्रेस में भी अपनी नेतागिरी का मार्ग बनाने की कोशिश की परन्तु बात नहीं बनी। वह किसी रूप में भी गरीब किसान नहीं था। उसकी फसल नष्ट होने का कोई मुआवज़ा प्रार्थना जिला प्रशासन के पास लम्बित नहीं है। उसका राजस्थानी पगड़ी बांधने का अच्छा फलता-फूलता व्यवसाय है। पगडि़याँ बांधने के मामले में उसका नाम राज्य के सर्वोच्च रिकाॅर्ड की तरह माना जाता है। देश-विदेश के अनेकों राजनेताओं को वह पगडि़याँ बाँध चुका है। उसके चित्रों में श्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा बिल क्लिंटन भी शामिल है। 19 अप्रैल, 2015 को आयोजित कांग्रेस किसान रैली में भी वह दिल्ली आया था। 22 अप्रैल, 2015 की इस आम आदमी पार्टी रैली से कुछ ही दिन पूर्व तीन बार वह इस पार्टी के बड़े नेताओं से भी मिला था। आत्महत्या नाटक से कुछ ही मिनट पूर्व उसने अपने घर पर फोन करके कहा कि टी. वी. चालू कर लो कुछ ही देर बाद सारे देश के टेलीविजनों पर अब मेरी ही फोटो आयेगी।
उसने जैसे ही पेड़ पर चढ़कर अपने को फांसी लगाने की घोषणा की तो नीचे बैठे कार्यकर्ताओं ने ऐसे तालियाँ बजानी शुरू कर दी जैसे उन्हें इस नाटक के प्रारम्भ होने का ही इंतजार था। पुलिस और फायर ब्रिगेड को इस नाटक की पूर्व जानकारी नहीं थी। इन जवानों ने इसे एक वास्तविक प्रयास समझकर जब आगे बढ़ते हुए उस युवक को रोकने का प्रयास किया तो कार्यकर्ताओं इन जवानों को रोकते हुए नजर आये। पुलिस ने मंच पर जाकर कार्यकर्ताओं से पीछे हटने और जवानों को इस आत्महत्या प्रयास को रोकने में मदद का भी आह्वान करने का प्रयास किया गया, परन्तु मंच से न तो भाषण रोके गये और न ही कार्यकर्ताओं को तालियाँ न बजाने की अपील की गई। जिससे उस नासमझ गजेन्द्र की जान ही चली गई जिसने आत्महत्या के प्रयास से पूर्व अवश्य ही मन में यह धारणा बना रखी होगी कि वह आत्महत्या प्रयास प्रारम्भ तो करेगा परन्तु उसके इस प्रयास को विफल कर दिया जायेगा। परिणामतः उसके इस प्रयास पर तालियाँ बजेंगी और उसका फोटो सारे विश्व में प्रसिद्ध हो जायेगा तो वह भी आम आदमी पार्टी का एक राष्ट्रीय नेता बन जायेगा। परन्तु इस पार्टी के नियंत्रक फिल्म निदेशक की तरह सच्चा नाटक नहीं कर पाये और बेचारे गजेन्द्र की जान ले ली।
यह वस्तुस्थिति गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने संसद में प्रस्तुत की थी। गृहमंत्री अपनी किसी व्यक्तिगत जानकारी के आधार पर नहीं बोल रहे होंगे अपितु यह सारी स्थिति पुलिस की रिपोर्ट और बाकायदा कैमरों में कैद फिल्मों के आधार पर होगी। दिल्ली पुलिस इस मामले की छानबीन अवश्य ही गहराई से करेगी। दिल्ली पुलिस ने उपराज्यपाल से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तथा उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से पूछताछ की अनुमति भी मांगी है क्योंकि ये दोनों नेता उस वक्त की सारी स्थिति के मुख्य नियंत्रक थे। इन परिस्थितियों में यदि पार्टी कार्यकर्ताओं की लापरवाही या आत्महत्या के लिए उकसाने जैसी हरकत सिद्ध होती है तो उस हरकत की जिम्मेदारी इन मुख्य नियंत्रकों पर भी अवश्य ही आयेगी। यह सीधा-सीधा एक आपराधिक लापरवाही का दोष स्थापित हो सकता है।
वैसे तो भारत की राजनीति अपने आपमें ही एक नाटक के समान दिखने लगी है जिसमें आम नागरिकों की समस्याओं के प्रति कोई गम्भीर दर्द और सच्ची सहानुभूति नजर नहीं आती। परन्तु आम आदमी पार्टी की इस कार्यशैली ने तो यह सिद्ध कर दिया है कि राजनीति के इस नाटक में समय-समय पर मानवता का मखौल उड़ाते हुए नाटक करना भी उसी तरह उचित है जैसे अंग्रेजी कहावत के अनुसार प्रेम और युद्ध में सबकुछ उचित है। इन नाटकों के पीछे सच्चाई हो या न हो और बेशक इन नाटकों के सहारे किसी की जान ही चली जाये। जनता को राजनीति और लोकतंत्र की परिभाषाएँ सच्चाई और मानवतावाद जैसे लक्षणों पर तैयार करनी होगी नहीं तो खुद जनता लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वाले ऐसे नाटकीय नेताओं के हाथ खिलौना ही बनी रह जायेगी। राजनीति और लोकतंत्र की सुदृढ़ता के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि देश से सम्बन्धित प्रत्येक सिद्धान्त और योजना पर जनता बौद्धिक स्तर पर चिन्तन की प्रक्रिया प्रारम्भ करे। इसके लिए समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को भी एक नई सकारात्मक भूमिका के साथ अपना कत्र्तव्य निभाना होगा।