



निर्भया के दोषियों की दया याचिका खारिज होने के बाद फांसी की तैयारियां शुरू


मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/नई दिल्ली
दिल्ली में वर्ष 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप और मर्डर में अब चारों गुनहगारों को फांसी दी जाने वाली है। निर्भया के दोषियों की दया याचिका खारिज होने के बाद अब उनकी फांसी की तैयारियां शुरू हो गई हैं। हालांकि इसमें सबसे बड़ा पेंच है जल्लाद की तलाश क्योंकि तिहाड़ जेल में फांसी के लिए कोई जल्लाद नहीं है। इसी बीच फांसी की तारीख को लेकर भी कई मीडिया रिपोर्ट्स सामने आ रही हैंए जिसमें दिसंबर 2019 का ही एक दिन फांसी के लिए तय बताया जा रहा है। सूत्रों की मानें तो निर्भया के दोषियों को उसी दिन सजा दी जा सकती है जिस तारीख को उसके साथ घिनौना कृत्य किया गया था जिसमें उसकी जान चली गई। कहा जा रहा है कि निर्भया के दोषियों 16 दिसंबर को ही सुबह 5 बजे फांसी दी जा सकती है। फांसी के लिए बक्सर जेल को रस्सी भेजने का आर्डर दे दिया गया है। जेल में रस्सी बनने शुरू हो चुकी है। आमतौर पर बक्सर जेल में किसी फांसी से पहले रस्सियों को बनाने का काम शुरू हो जाता है,लेकिन इसकी असली फिनिशिंग आखिर के दस या 15 दिन पहले दी जाती है। आमतौर पर जेल के पास एक से दो महीने पहले ही इस रस्सियों के लिए आदेश पहुंच जाता है। पिछले कुछ दशकों में देश में जहां कभी भी फांसी हुई ह, वहां फांसी का फंदा बनाने के लिए रस्सी बक्सर जेल से ही गई है। चाहे वो अजमल आमिर कसाब को पुणे जेल में दी गई फांसी हो या फिर वर्ष 2004 में कोलकाता में धनजंय चटर्जी को दी गई फांसी या फिर अफजल गुरु को भी फांसी बक्सर जेल की ही रस्सी से दी गई। बक्सर में फांसी की रस्सियां 1930 से बनाई जा रही हैं। यहां बनी रस्सी से जब भी फांसी दी गई तो वो कभी फेल नहीं हुई। दरअसल ये जो रस्सी होती है,ये खास तरह की होती है। इसे मनीला रोप या मनीला रस्सी कहते हैं। माना जाता है कि इससे मजबूत रस्सी होती ही नहीं। इसीलिए पुलों को बनाने, भारी बोझों को ढोने और भारी वजन को लटकाने आदि में इसी रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि ये रस्सी सबसे पहले फिलीपींस के एक पौधे से बनाई गई थी। लिहाजा इसका नाम मनीला रोप या मनीला रस्सी पड़ा। ये खास तरह की गड़ारीदार रस्सी होती है, पानी से इस पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि ये पानी को सोख लेती है। इससे लगाई गई गांठ पुख्ता तरीके से अपनी पकड़ को दमदार बनाकर रखती है। बक्सर जेल में इस तरह की रस्सी बनाने का यहां के कैदियों को हुनर सिखाया जाता है। यहां के खास बरांदा में इसे बनाने का काम किया जाता है। पहले तो रस्सी बनाने के लिए जे.34 कॉटन यार्न खासतौर पर भटिंडा पंजाब से मंगाया जाता था लेकिन अब इसे गया या पटना से ही प्राइवेट एजेसियां सप्लाई करती हैं। फांसी के लिए रस्सी को और खास तरीके से बनाते हैं। इसमें मोम का भी इस्तेमाल करते हैं। इसको बनाने में सूत का धागा, फेविकोल, पीतल का बुश, पैराशूट रोप आदि का भी इस्तेमाल होता है। जेल के अंदर एक पावरलुम मशीन लगी है,जो धागों की गिनती कर अलग.अलग करती है। एक फंदे में 72 सौ धागों का इस्तेमाल होता है। जेल में इसका आर्डर पहुंचते ही उस पर काम शुरू हो जाता है। आमतौर पर एक फांसी के लिए छह मीटर लंबाई की रस्सी का इस्तेमाल होता है लेकिन कभी कभी जिसे फांसी दी जाने वाली है, उसकी लंबाई के हिसाब से भी रस्सी की लंबाई तय होती है। इसका वजन चार किसो या इससे ज्यादा होता है। इस रस्सी की कीमत 1 हजार रुपए से लेकर 2 हजार रुपए के बीच बैठती है। लेकिन इस रस्सी में जो भी सामान लगता है, उसकी कीमत बढ़ गई है, लिहाजा इस बार ये रस्सी मंहगी हो गई है। इस पर वैट भी लगाया जाता है। माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है तो 80 किलो वजन वाले शख्स को ये आसाम से लटका सकती है। हालांकि जहां फांसी दी जाने वाली होती है, वहां इस रस्सी को एक हफ्ते पहले ही पहुंचाने की कोशिश की जाती है ताकि जल्लाद 3 से 4 दिन इसके जरिए ड्राइरन यानी अभ्यास कर सके कि फांसी देते समय सबकुछ सही तरीके से रहे। इस रस्सी के पहुंचने के बाद इसमें लूप बनाने और गोल फंदा बनाने के साथ ये गर्दन पर आसानी से सरककर उस पर कसती जाए, ये काम जल्लाद का होता है। जल्लादों का कहना है ये भी तकनीक से जुड़ा काम है।




