समाज से अपराधी प्रवृत्तियाँ समाप्त करने के लिए सरकार को सारे देश में बच्चों की शिक्षा व्यवस्था को नये सिरे से गढ़ना पड़ेगा ताकि बचपन से ही नैतिकता, चरित्र, समाजसेवा और देशभक्ति जैसे गुणों को नागरिकों के रक्त में शामिल किया जा सके।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा-302 के अनुसार किसी की हत्या करने की सज़ा मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास हो सकती है। धारा-364(क) के अनुसार जब किसी व्यक्ति का अपहरण उसके बदले में धन वसूल करने के उद्देश्य से किया जाता है तो ऐसे अपराध की सज़ा भी मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास हो सकती है। इस प्रकार एक बार किसी का अपहरण करने के बाद यदि अपराधियों ने धन की माँग कर डाली और अपहरण किये गये व्यक्ति को कुछ समय मृत्यु के साये में रखने के दोषी सिद्ध हो गये तो वे मृत्युदण्ड के अधिकारी बन सकते हैं। इन दोनों प्रावधानों को देखकर लगता है कि धन के लालच में किसी का अपहरण करके उसे मृत्युदण्ड के साये में रखना उसकी हत्या करने के समान ही गम्भीर अपराध है। धारा-364(क) की वैधानिकता को चुनौती देते हुए पंजाब के होशियारपुर जिले की एक दर्दनाक घटना के आरोपियों ने दो बार सर्वोच्च न्यायालय तक की कानूनी यात्रा पूरी करने के बाद भी अपने मृत्युदण्ड की सज़ा को माफ कराने में सफलता प्राप्त नहीं की।
होशियारपुर जिले का 16 वर्षीय अभि वर्मा डी.ए.वी. स्कूल के लिए प्रातःकाल अपने घर से निकला था। लगभग 8.45 पर होशियारपुर पुलिस स्टेशन को एक गुमनाम टेलीफोन सूचना प्राप्त हुई जिसमें शिमला पहाड़ी के पास से एक बच्चे के अपहरण का पता लगा। इसी प्रकार की सूचना केन्द्रीय छानबीन कार्यालय को भी प्राप्त हुई। इसके बाद सारा पुलिस विभाग इस छानबीन में जुट गया। दोपहर के समय अभि वर्मा के पिता रवि वर्मा को उनकी सर्राफ की दुकान पर एक फोन के द्वारा यह सूचना मिली कि उनके बेटे का अपहरण कर लिया गया है और यदि वे जिन्दा वापिस चाहते हैं तो 50 लाख रुपये की राशि का भुगतान करने के लिए तैयार रहें। रवि वर्मा ने फोन करने वालों से निवेदन किया कि वे उसके बेटे से फोन पर बात करवायें। रवि वर्मा ने स्कूल से सम्पर्क किया तो उन्हें पता लगा कि अभि वर्मा स्कूल में नहीं है। इस बीच पुलिस ने भी रवि वर्मा से सम्पर्क किया और उनके वक्तव्य के आधार पर धारा-364(क) के अन्तर्गत मुकदमा दर्ज कर दिया।
पुलिस ने रवि वर्मा के टेलीफोन पर निगरानी यन्त्र लगा दिये, परन्तु सायं 4 बजे रवि वर्मा को अपहरणकर्ताओं का टेलीफोन उनके मोबाइल पर प्राप्त हुआ। रवि वर्मा ने उन्हें बताया कि वह धन इक्ट्ठा करने में लगा हुआ है। 7 बजे रवि वर्मा को उसकी दुकान के फोन पर अपहरणकर्ताओं ने कहा कि वह अपना मोबाइल फोन चालू रखे। अपहरणकर्ताओं ने रवि वर्मा को इस बात के लिए भी धमकाया कि यदि पुलिस इसके बाद भी तुम्हारे घर या दुकान पर आई तो तुम्हारे बेटे की हत्या कर दी जायेगी। रवि वर्मा ने उनसे धन का भुगतान प्राप्त करने का स्थान भी पूछा इस पर उन्होंने कहा कि बाद में बताया जायेगा। इसके बाद फिर रवि वर्मा को उसके मोबाइल पर फोन आया कि सारे शहर में अपहरण का शोर मच चुका है, इस कारण अब उसके बेटे की जान खतरे में ही रहेगी।
रवि वर्मा ने उन्हें कहा कि पुलिस कार्यवाही में मेरी कोई भूमिका नहीं है। पुलिस ने इस टेलीफोन वार्तालाप की रिकार्डिंग के आधार पर कार्यवाही प्रारम्भ की तो सारे अपराध की कडि़याँ खुलते कोई विशेष समय नहीं लगा, परन्तु जब तक इन अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाता तब तक अभी वर्मा की हत्या की जा चुकी थी। इस सारे मामले में पुलिस ने विक्रम सिंह, जसवीर सिंह और उसकी पत्नी सोनिया के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया। होशियारपुर के सत्र न्यायालय ने इन अपराधियों को धारा-302 तथा 364(क) के अन्तर्गत मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई। यह सज़ा आदेश पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष संस्तुति के लिए भेजा गया। उच्च न्यायालय ने भी इस सज़ा आदेश की पुष्टि कर दी। आरोपियों ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील की।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री हरजीत सिंह बेदी तथा श्री जे. एम. पांचाल की पीठ ने इस अपील पर सुनवाई करने के उपरान्त जसवीर सिंह की पत्नी सोनिया की इस सारी घटना में अपने पति के प्रभाव में शामिल हुआ मानते हुए उसे दया का पात्र बताया और उसके लिए मृत्युदण्ड की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया जबकि विक्रम सिंह तथा जसवीर सिंह की मृत्युदण्ड सज़ा को यथावत रखा। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय वर्ष 2010 में सुना दिया गया था परन्तु इसके बाद विक्रम सिंह तथा जसवीर सिंह ने पुनः पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष धारा-364(क) की वैधानिकता को चुनौती देते हुए रिट् याचिकाएँ प्रस्तुत कर दी।
उच्च न्यायालय ने उनके रिट् याचिकाओं को अस्वीकार करते हुए अपने आदेश में कहा कि भारत की संसद ने धन की वसूली को उद्देश्य बनाकर अपहरण की घटनाएँ बढ़ने पर अपनी चिन्ता व्यक्त करने के उपरान्त यह संशोधन किया था कि ऐसे अपहरण की घटना में यदि अपहरण किये गये व्यक्ति की मृत्यु न भी हो तो भी अपहरणकर्ताओं को मृत्युदण्ड की सज़ा दी जा सकती है। वास्तव में धन वसूली को लेकर अपहरण की घटनाएँ सारे देश में अब एक धन्धे की तरह विकसित होती जा रही है। अभि वर्मा के मुकदमें में तो उसकी हत्या भी कर दी गई थी।
अभि वर्मा मुकदमें के आरोपियों ने धारा-364(क) की संवैधानिकता के विरुद्ध यह तर्क भी प्रस्तुत किया कि यह धारा उन परिस्थितियों में लागू होती है जब अपहरण के द्वारा सरकार या किसी विदेशी संस्था को धन का भुगतान करने के लिए बाध्य किया जाये। उच्च न्यायालय ने उनके सारे तर्कों को अस्वीकार करते हुए उनकी याचिका को अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध आरोपियों ने सर्वोच्च न्यायालय का द्वार खटखटाया।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री तीरथ सिंह ठाकुर, श्री आर. के. अग्रवाल तथा श्री आदर्श कुमार गोयल की संविधान पीठ ने भी धारा-364(क) के विरुद्ध सभी तर्कों को अस्वीकार करते हुए कहा कि धारा-364(क) के अन्तर्गत धन वसूली के उद्देश्य से किये गये अपहरण जैसे अपराध के बदले मृत्युदण्ड को किसी प्रकार से भी अनुचित नहीं कहा जा सकता। इन परिस्थितियों में एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने विक्रम सिंह तथा जसवीर सिंह को दिये गये मृत्युदण्ड की सज़ा में हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय की अभी स्याही भी नहीं सूखी होगी कि पंजाब के ही बटाला जिले में केवल 10 हजार रुपये की फिरौती को लक्ष्य बनाकर एक 6 वर्षीय अबोध बच्चे कृष्णा का अपहरण और हत्या का मामला सामने आ गया। इस मामले में भी अभियुक्तों ने जब पुलिस का शिकंजा कसते हुए देखा तो उन्होंने बच्चे की निर्मम हत्या कर दी। इस मामले में भी अपराधी पकड़े गये हैं। परन्तु विडम्बना यह है कि हमारे कानून और सर्वोच्च न्यायालयों तक के निर्णय किसी प्रकार से भी अपराधी प्रवृत्तियों पर रोक लगाने में सफल सिद्ध नहीं होते। समाज से अपराधी प्रवृत्तियाँ समाप्त करने के लिए सरकार को सारे देश में बच्चों की शिक्षा व्यवस्था को नये सिरे से गढ़ना पड़ेगा ताकि बचपन से ही नैतिकता, चरित्र, समाजसेवा और देशभक्ति जैसे गुणों को नागरिकों के रक्त में शामिल किया जा सके।
अपराधी गतिविधियों के बल पर जवानी के जोश में धन कमाने की गति को तेज करना आज के समाज में अक्सर देखा जा सकता है। परन्तु ऐसे निर्णयों के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए कि जोश में किये गये अपराध हो सकता है। एक-दो बार पुलिस और अदालतों के कोप से बच जायें परन्तु जिस दिन कानून और न्याय का दैविक शिकंजा उनके जीवन पर कस दिया गया तो उनका सारा शेष जीवन विक्रम और जसवीर की तरह जेल की चारदीवारी में कैद होकर ही दम तोड़ देगा। तुम दूसरों की हत्या क्या करोगे, कानून, जेलें और समाज तुम्हें मानसिक रूप से ही समाप्त कर देगा। कृष्णा के हत्यारों को भी अब अपना शेष जीवन कानून के शिकंजे और जेलों की चारदिवारी में ही बिताना पड़ेगा।
-विमल वधावन , एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट