नौकरी पेशा पत्नी की हत्या में कारण बने, वैचारिक मतभेद और मनमुटाव
-मौहम्मद इल्यास- दनकौरी
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सार संक्षेपः-
आधुनिक युग में पति और पत्नी अपनी जिदंगी को अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। यही वजह बाद में तकरार का कारण भी बनती है। आखिर मनमुटाव इस हद तक पैदा हो जाते हैं कि अलगाव की जिदंगी तक बात पहुँच जाती है। यह मनमुटाव और वैचारिक मतभेद कभी कभी इतना गहरा जाते हैं कि पति अथवा पत्नी में से कोई एक, पक्ष के द्वारा निर्णय ले लिया जाता है जो बेहद घातक सिद्ध हो जाता है। पति अथवा पत्नी में से किसी एक की हत्या हो जाना इन वैवाहिक संबंधों की दरार के परिणाम के रूप में सामने आता है। इस तरह के मामले संयुक्त परिवार में कम देखने को मिलते हैं बल्कि एकल परिवार में जो युगल बडे शहरों की ओर काम की तलाश में आते हैं अक्सर उनके साथ घटना घटित हो जाती हैं। नौकरी पेशा पत्नी, जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहती है और पतियों को यह सब रास नही आता है तब या तो किसी एक पक्ष के जीवन में तीसरे व्यक्ति का प्रवेश, मित्र के तौर पर होता है और तीसरा व्यक्ति शकुनि जैसी चाले चलतें हुए परिवार को तबाह कर डालता है या फिर उपेक्षा से बोझिल संबंधित पक्ष इतना खिज जाता है कि हत्या अथवा आत्महत्या तक का फैसला कर डालता है ऐसा प्रायः मोरल सपोर्ट न मिलने के कारण होता है। पति पत्नी के बीच मनमुटाव और फिर अलगाव तथा आखिर में हत्या-आत्महत्या जैसी घटनाएं आम होती जा रही है जिस पर समाज को चिंतन करने की आवश्यकता है। नोएडा के शुर्देन्दु मिश्रा के ही मामले को ले लें पत्नी प्रज्ञा की मौत के बाद एक हंसता खेलता परिवार तबाह हो गया। पत्नी प्रज्ञा तो इस दुनिया चली गई और हत्या के मामले में आरोप साबित होने पर शर्देन्दु मिश्रा को आजीवन करावास की सजा सुना दी गई।
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शर्देन्दु मिश्रा पुत्र श्री पारसनाथ मिश्रा निवासी ग्राम भवानीपुर थाना गोपीगंज जिला संत रविदास नगर, उत्तर प्रदेश हाल निवासी के-31 सेक्टर-11 नोएडा, थाना सेक्टर-24 नोएडा, जिला- गौतमबुद्धनगर को पत्नी प्रज्ञा मिश्रा की हत्या के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा-302 और धारा-201 साबित होने पर आजीवन कारावास, 5 हजार रूपये का जुर्माना तथा 3 वर्ष का कठोर कारावास तथा 5 हजार रूपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है।
शिवप्रसाद दुबे पुत्र स्व0 राम अंचल दुबे निवासी ग्राम व पोस्ट कलना थाना विंध्याचल जिला- मिर्जापुर के परिवार में तीन पुत्रियां और एक पुत्र रहे हैं। इनमें से एक बेटी प्रज्ञा दुबे का विवाह दिनांक 22 जून 2005 को शर्देन्दु मिश्रा पुत्र श्री पारसनाथ मिश्रा निवासी ग्राम भवानीपुर थाना गोपीगंज जिला संत रविदास नगर, उत्तर प्रदेश के साथ हिंदु रीति रिवाजों अनुसार से किया गया था। चूंकि प्रज्ञा एक फैशन डिजाईनर थी, उसने नोएडा में आकर इनफाइन कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। शादी के बाद दोनो पति पत्नी नोएडा सेक्टर-11 के मकान संख्या के-31 में आकर रहने लगे। शादी के करीब 6 साल बाद ही शुर्देन्दु मिश्रा और प्रज्ञा मिश्रा के वैवाहिक जीवन को किसी की बुरी नजर लग गई और 17 जुलाई 2011 को फैशन डिजाईनर की संदिग्ध मौत हो गई। पति पत्नी के बीच वैचारिक मतभेद यानी मनमुटाव से एक हंसता खेलता परिवार बिखरा गया। प्रज्ञा मिश्रा के पिता शिवप्रसाद अपने रिश्तेदार के साथ बेटी और दामाद के बीच चल रहे मनमुटावों को दूर करने की गरज से नोएडा आए थे किंतु यहां देखा तो पता चला कि बेटी का कोई अता पता ही नही है और दामाद भी गायब है।
पीडित पिता शिवप्रसाद दुबे ने मामले की सूचना पुलिस को दी। नोएडा थाना सेक्टर-24 की पुलिस मौके पर पहुंची तो वहां कहीं प्रज्ञा दिखाई नही दी। तलाशी के दौरान पुलिस को प्रज्ञा का शव दीवान बेड के अंदर छुपा हुआ मिला। पुलिस ने घटना स्थल का बारीकी से मौका मुआयना कर शव का पंचनामा भर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पीडित पिता ने दामाद शुर्भेदु मिश्रा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने उसी दिन नोएडा के मोरना सिटी सेंटर सेे हत्यारोपी पति को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने अभियुक्त की निशानदेही पर खून से सन कपडे और ताला जिससे उसने मृतका को घायल किया था बरामद कर लिए। इस मुकदमा अपराध संख्या-423 सन-2011 अंतर्गत धारा-302 और धारा 201 में अभियोजन पक्ष के सहायक जिला शासकीय अविधवक्ता ओमप्रकाश यादव और परिवादी के अधिवक्ता रामशरण नागर ने दलीलें पेश कीं। अभियांेजन पक्ष की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि अभियुक्त के विरूद्ध सभी आरोपों को अभियोजन पक्ष साबित करने में सफल रहा है और इसलिए उसे दंडित किया जाना चाहिए। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि अभियुक्त ने किराए पर मकान लिया था और जंहा पर वह मृतका के साथ रहता था। दोनो के मध्य वैचारिक मतभेद होने के कारण अक्सर झगडा होता ही रहता था। इसी क्रम में घटना वाली रात को भी झगडा हुआ और अभियुक्त ने मृतका को ताले से चोट पहुंचाई और साथ ही गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी। उसके पश्चात वह कमरा बंद करके चला गया था। इसलिए परिस्थितियां यह दर्शाती हैं कि अभियुक्त ने ही अपनी पत्नी की हत्या की थी। अभियोजन पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं ने अपने तर्क के समर्थन में कई दलीलें भी पेश कीं। जब कि बचाव पक्ष के अधिवक्ता द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन पक्ष की ओर से पति पत्नी के बीच वैचारिक मतभेद होने का कथन किया गया है और इसी आधार पर झगडे तथा मारपीट की बात कही गई है तथा घटना का आधार पर इसे ही बनाया गया है। किंतु उसे अभियोजन पक्ष साबित नही कर सका है क्योंकि अभियुक्त ने किराए पर कमरा लिया ही नही था और न ही मृतका के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण रहता ही था। बचाव पक्ष के अधिवक्ता की ओर से यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि अभियुक्त की गिरफ्तारी अवैधानिक तौर पर की गई है और उसकी निशानदेही पर कुछ भी बरामद नही किया गया है। पुलिस अभिरक्षा में जो संस्वीकृती के आधार पर बरामदगी किया जाना कही गई है, वह साबित किए जाने योग्य नही है। यह भी तर्क प्रस्तुत किय गया कि पक्षद्रोही घोषित किए गए साक्षियों के साक्ष्य पर कार्यवाही नही की जा सकती है और धारा 106 साक्ष्य अधिनियम का प्रावधान प्रस्तुत मामले में लागू नही होता है। अभियुक्त पक्ष को अपना मामला युक्तियुक्त संदेह के परे साबित करना ही होगा अभियुक्त का मृतका के साथ रहना ही साबित नही है। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि कथित गिरफ्तारी के समय तक वह अभियुक्त नही था जब कि धारा- 27 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत कोई संस्वीकृती साबित किए जाने के लिए अभियुक्त का होना आवश्यक है। यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि विधि विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट अभियोजन का समर्थन नही करती है। बचाव पक्ष की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि विधिक रूप से विवेचना नही की गई है साथ की तर्क के समर्थन में कई नजरें प्रस्तुत की गईं।
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश गौतमबुद्धनगर रामनरेश मौर्य ने मुकदमें में उभय पक्षों की सुनवाई के बाद अभियुक्त शुर्भेन्दु मिश्रा को, पत्नी प्रज्ञा मिश्रा की हत्या कर उसके शव को दीवान बैड में छिपा दिए जाने का दोषी करार दिया है।
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश गौतमबुद्धनगर रामनरेश मौर्य ने दोषसिद्ध अभियुक्त शर्देन्दु मिश्रा को भारतीय दंड संहिता की धारा-302 के अपराध के लिए आजीवन कारावास तथा 5 हजार रूपये जुर्माने से दंडित किया है। अर्थदंड न दिए जाने पर न्यायालय ने एक वर्ष के अतिरिक्त साधारण कारावास से दंडित किए जाने का प्रावधान किया है। इसी प्रकार भारतीय दंड संहिता की धारा-201 के अपराध के लिए 3 वर्ष का कठोर करावास तथा 5 हजार रूपये जुर्माना अदा करने से दंडित किया है। साथ ही अर्थदंड अदा न करने पर अभियुक्त को एक वर्ष का अतिरिक्त साधारण कारावास भी भोगना पडेगा।