उम्रकैद की सजा सुनते ही सिर पकड़ कर रोने लगा आशाराम
कानून रिव्यू/जोधपुर
—————————धर्म और अध्यात्मिक क्षेत्र में लोगों को छलने वाले आशाराम के गुनाहों का घडा भर कर फूट गया अर्थात अब आशाराम की सारी जिंदगी जेल में ही कटेगी। कोर्ट ने सख्त रूख अपनाते हुए बलात्कारी बाबा आशाराम को उम्रकैद की सजा सुनाई है। जोधपुर की एक अदालत ने कथावाचक आसाराम को नाबालिग से बलात्कार के मामले में आज दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अदालत के विशेष न्यायाधीश मधुसूदन शर्मा ने जोधपुर सेंट्रल जेल परिसर में यह फैसला सुनाया। पीड़िता ने आसाराम पर उसे जोधपुर के नजदीक मनाई इलाके में आश्रम में बुलाने और 15 अगस्त 2013 की रात उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा कि आसाराम को उम्रकैद के तहत मृत्यु तक जेल में रहना होगा। आसाराम के सहयोगी शिल्पी और शरद को 20.20 साल की सजा सुनाई गई है। अदालत ने तीनों दोषियों पर 1-1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। वहीं सजा सुनाए जाते ही आशाराम सिर पकड़ कर नीचे बैठ गया और रोने लगा और कहा कि उसे ऐसे फैसले की आशा नहीं थी। सजा सुनाए जाने से पहले आसाराम कोर्ट में बार.बार पानी पीते और हरि ओम का जाप करते देखा गया। वह काफी परेशान नजर आ रहा था । आसाराम मामले में अंतिम सुनवाई एससीएसटी मामलों की विशेष अदालत में गत 7 अप्रैल को पूरी हो गई थी और फैसला 25 अप्रैल तक के लिए सुरक्षित रखा गया था। बताते चलें कि आसाराम को इंदौर से गिरफ्तार कर 1 सितंबर 2013 को जोधपुर लाया गया था और दो सितंबर 2013 से वह न्यायिक हिरासत में है। आसाराम और 4 अन्य सह. आरोपियों शिव, शिल्पी, शरद और प्रकाश के खिलाफ पॉक्सो अधिनियम किशोर न्याय अधिनियम और भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत 6 नवंबर 2013 को पुलिस ने आरोप पत्र दायर किया था। आसाराम पर गुजरात के सूरत में भी बलात्कार का एक मामला चल रहा है जिसमें उच्चतम न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को पांच सप्ताह के भीतर सुनवाई पूरी करने का निर्देश दिया था। आसाराम ने 12 बार जमानत याचिका दायर की जिसे 6 बार निचली अदालत ने और तीन बार राजस्थान उच्च न्यायालय और तीन बार उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
असुमल हरपलानी से ऐसे बना, आशाराम बापू
—————————————————–आसाराम का असली नाम असुमल हरपलानी है। एक रिपोर्ट की मानें तो अप्रैल 1941 में सिंध इलाका जो अब पाकिस्तान में है के बेरानी गांव में आसाराम का जन्म हुआ। उसका असली नाम असुमल हरपलानी था। वह सिंधी व्यापारी समुदाय से ताल्लुक रखता है। उसका परिवार 1947 में विभाजन के बाद अहमदाबाद आ गया था। 1960 के दशक में उसने लीलाशाह को अपना आध्यात्मिक गुरु बनाया और बाद में लीलाशाह ने ही असुमल का नाम आसाराम रखा। शुरुआत में प्रवचन के बाद प्रसाद के नाम पर वितरित किए जाने वाले मुफ्त्त भोजन ने भी आसाराम के भक्तोष की संख्या को तेजी से बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आसाराम की वेबसाइट के अनुसार दुनिया भर में उसके चार करोड़ अनुयायी हैं।
भारत ही नही विदेशों में आश्रमों का साम्राज्य खडा किया
———————————————————— आसाराम ने बेटे नारायण साईं के साथ भारत ही नहीं विदेश में 400 आश्रमों का नेटवर्क बनाया। उसकी संपत्ति 10 हज़ार करोड़ रुपए की है। इसकी जांच फ़िलहाल प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है। इस जांच में आश्रम निर्माण के लिए गलत तरीके से जमीन हड़पने के मामले भी शामिल हैं। आसाराम की पैठ राजनेताओं के यहां तक है। राजनेताओं ने भी उसका इस्तेमाल किया और एक बड़े वोटर समूह में पैठ बनाई। 1990 से लेकर 2000 तक उसके भक्तों की सूची में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी तक शामिल हो चुके थे। इस सूची में दिग्विजय सिंह, कमल नाथ, मोतीलाल वोरा जैसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी आते हैं। भाजपा के वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री तक आसाराम के दर्शन के लिए पहुंचते रहे थे। इसमें शिवराज सिंह चौहान,उमा भारती,रमन सिंह, प्रेम कुमार धूमल और वसुंधरा राजे के नाम शामिल हैं। किंतु जैसे आशाराम के यह मामले प्रकाश में आए और कानून ने अपना शिकंजा कसना शुरू किया इन सभी नेताओं ने दूरी बनानी शुरू कर दी।
ऐसे हुआ शुरू आशाराम के जीवन का काला अध्याय
—————————————————– वर्ष 2008 में आशाराम के मुटेरा आश्रम में 2 बच्चों की हत्या का मामला सामने आते ही मुसीबतों के दिन शुरू हो गए। 5 जुलाई 2008 को आसाराम के मुटेरा आश्रम के बाहर मौजूद साबरमती नदी के सूखे तल में 10 वर्षीय अभिषेक वाघेला और 11 वर्षीय दीपेश वाघेला के अधजले शव मिले थे। अहमदाबाद के इन चचेरे भाइयों के अभिवावकों ने कुछ दिन पहले ही उनका दाखिला आशाराम के गुरुकुल नामक स्कूल में करवाया था। मामले की जांच के लिए डीके त्रिवेदी कमिशन बना लेकिन रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई। 2012 में पुलिस ने आश्रम के 7 कर्मचारियों पर गैर.इरादतन हत्या के आरोप तय किए। मामला अहमदाबाद के सत्र न्यायालय में लंबित है।
कानून का शिंकजा 2013 से कसने लगा था आशाराम पर
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अगस्त 2013 में आसाराम के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज करवाने वाला शाहजहांपुर निवासी पीड़िता का पूरा परिवार घटना से पहले तक आशाराम का अंध भक्त था। पीड़िता के पिता ने अपने खर्चे पर शाहजहांपुर में आशाराम का आश्रम बनवाया था। संस्कारवान शिक्षा की उम्मीद में उन्होंने अपने दो बच्चों को आशाराम के छिंदवाड़ा स्थित गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेजा। 7 अगस्त 2013 को पीड़िता के पिता को फोन आया और उन्हें बताया गया कि उनकी 16 वर्षीय बेटी बीमार है। अगले ही दिन माता.पिता गुरुकुल पहुंचे तो बताया गया कि बेटी पर भूत.प्रेत का साया है जिसे आशाराम ही ठीक कर सकता है। 14 अगस्त को पीड़िता का परिवार आशाराम से जोधपुर में मिला। मुकदमे में दायर चार्जशीट के अनुसार आसाराम ने 15 अगस्त को 16 वर्षीय पीड़िता को ठीक करने के बहाने से अपनी कुटिया में बुलाकर बलात्कार किया।
गवाहों पर भी हमलों का सिलसिला चलता ही रहा
—————————————————2014 में आसाराम और नारायण साईं पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली सूरत निवासी दो बहनों में से एक के पति पर सूरत शहर में ही जानलेवा हमला हुआ। अगला हमला राकेश पटेल नामक आशाराम के वीडियोग्राफ़र पर हुआ। दूसरे हमले के कुछ दिनों बाद ही दिनेश भगनानी नामक तीसरे गवाह पर सूरत में तेज़ाब फेंका गया। ये तीनों गवाह खुद बच गए् फिर आशाराम के निजी सचिव रहे अमृत प्रजापति पर हमला हुआ। एक के बाद एक हुए इन हमलों के बीच शाहजहांपुर के पत्रकार नरेंद्र यादव पर भी अज्ञात हमलावरों ने हमला किया। 2015 में अगले गवाह अखिल गुप्ता की मुज़फ्फरनगर में गोली मारकर हत्या कर दी गई। राहुल सचान पर जोधपुर अदालत में गवाही देने के तुरंत बाद अदालत परिसर में ही जानलेवा हमला हुआ। राहुल तब तो बच गए लेकिन बाद में उनका कुछ अता.पता नहीं। आठवां सनसनीखेज़ हमला महेंद्र चावला पर पानीपत में हुआ और फिर एक अन्य गवाह 35 वर्षीय कृपाल सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई।