ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन से सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दायर
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले को चुनौती देते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के समर्थन से मिसबाहुद्दीन, मौलाना हसबुल्ला, हाजी महबूब और रिजवान अहमद द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं हैं। शुक्रवार को दाखिल याचिका के बाद कहा गया है कि अगर इस मामले में खुली अदालत में सुनवाई होगी तो वरिष्ठ वकील राजीव धवन ही बहस करेंगे। इस तरह इस मामले में सात याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। पीस पार्टी ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। याचिकाओं में कहा गया है कि ये याचिकाएं शांति और सद्भाव में खलल डालने के लिए नहीं बल्कि न्याय हासिल करने के लिए दाखिल की गई हैं। मुस्लिम संपत्ति हमेशा ही हिंसा और अनुचित व्यवहार का शिकार हुई है। फैसले में 1992 में मस्जिद के ढहाए जाने का फायदा दिया गया है। अवैध रूप से रखी गई मूर्ति कानूनी रूप से वैध नहीं हो सकती और इसके पक्ष में फैसला सुनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट का 9 नवंबर का फैसला बाबरी मस्जिद के विनाश, गैरकानूनी तरीके से घुसने और कानून के शासन के उल्लंघन की गंभीर अवैधताओं को दर्शाता है। यह है कि हिंदू कभी भी एक्सक्लूसिव कब्जे में नहीं रहा। अवैधता में पाए गए सबूतों के आधार पर हिंदूओं ने दावा किया है। सुप्रीम कोर्ट के 5 एकड़ जमीन देने के फैसले पर भी सवाल उठाया गया है और कहा गया है कि पूजा स्थल को नष्ट करने के बाद ऐसा कोई पुनर्स्थापन नहीं हो सकता। यह कोई कमर्शियल सूट नहीं था बल्कि सिविल सूट था। सुप्रीम कोर्ट का ये निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण है कि यह दिखाने के लिए सबूत हैं कि हिंदुओं ने मस्जिद के परिसर में 1857 से पहले पूजा की थी। यह दिखाने के लिए सबूत हैं कि मुस्लिम 1857 और 1949 के बीच आंतरिक आंगन के एक्सक्लूसिव कब्जे में थे। ये निष्कर्ष सही नहीं है कि मस्जिद पक्ष प्रतिकूल कब्जे को साबित करने में सक्षम नहीं रहा। इस मामले में जमीयत उलेमा ए हिंद द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पहली पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा चुकी है। याचिका मोहम्मद सिद्दीक के कानूनी प्रतिनिधि मौलाना सैयद असद रशीदी द्वारा दायर की गई है, जो टाइटल सूट में मूल मुस्लिम वादी हैं। 9 नवंबर के फैसले में, 5 जजों की एक बेंच जिसमें तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एस0ए0 बोबडे, जस्टिस डी0 वाई0 चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हिंदू पक्षकारों के पास ज़मीन पर कब्ज़े के टाइटल का बेहतर दावा था और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए ट्रस्ट के तत्वावधान में 2.77 एकड़ के पूरे क्षेत्र में एक मंदिर के निर्माण की अनुमति दी थी। इसी समय अदालत ने स्वीकार किया कि 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक घिनौना कृत्य था और मस्जिद के निर्माण के लिए यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ वैकल्पिक भूमि के अनुदान का निर्देश देकर मुस्लिम पक्ष को मुआवजा दिया। इसे न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय करने का आदेश दिया था।