कानून रिव्यू/नई दिल्ली
————–वकील से जनप्रतिनिधि बनने वाले लोगों को बार काउंसिल ने नोटिस थमा दिया है। कानून की भृकुटी इस तरह के नेताओं पर तन गई है। ज्यादातर राजनीतिक दलों में ऐसे लोग है जो वकील हैं और साथ में वह जनप्रतिनिधि हैं। विधायक, सांसद, राज्यसभा और विधान परिषद जैसे सदनों के सदस्य हैं। यह जनप्रतिनिधि अभी भी कोर्ट में वकालत करते हैं। एक जनहित में याचिका में यह चुनौती दी गई है कि लाभ पद पर है ये लोग हैं तो फिर कैसे वकालत कर सकते हैं। इनमें पी चिदंबरम, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, रविशंकर प्रसाद, केटीएस तुलसी,कल्याण बनर्जी और मीनाक्षी लेखी आदि कई लोग हैं जो वकील हैं और किसी ने किसी सदन के सदस्य हैं। बार कांउसिल ऑफ इंडिया ने इन सभी नेताओं को नोटिस जारी कर दिया है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया प्रमुख मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि वकीलों की शीर्ष नियामक संस्था ने नोटिस जारी किए जिस पर विधायकों और सांसदों को एक सप्ताह के भीतर जवाब देना है।
मिश्रा ने बताया कि नियमों के अनुसार सरकारी कर्मचारी अधिवक्ता के तौर पर वकालत नहीं कर सकतें। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने यह कदम भाजपा की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता अनि कुमार उपाध्याय की याचिका पर उठाया जिन्होंने भारतीय बार परिषद नियमों को ध्यान में रखते हुए अदालत के सामने अधिवक्ता के तौर पर वकालत करने से विधायकों और सांसदों को रोकने का अनुरोध किया है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि ये विधिनिर्माता उस समय भी अधिवक्ता के तौर पर पेश होते हैं जब संसद या विधानसभाओं का सत्र चल रहा होता है और वे देश के हितों तथा उनके जीवन साथी, बच्चों, रिश्तेदारों, सहयोगियो, संगठनों के हितों को प्रभावित करने वाले मामलों में भाग लेते हैं।