राजस्थान सरकार अफसरों के खिलाफ शिकायत आने पर एक अवधि के बाद मामला दर्ज किए जाने वाले कानून पर घिरती हुई नजर आ रही है। विपक्षी दलों के बाद अब हाईकोर्ट ने इस कानून को बिल्कुल बेतुका करार दिया है और साथ ही राज्य सरकार से जवाब तलब किया है
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जबाव तलब किया
- कानून रिव्यू/राजस्थान
……………………………..राजस्थान सरकार अफसरों के खिलाफ शिकायत आने पर एक अवधि के बाद मामला दर्ज किए जाने वाले कानून पर घिरती हुई नजर आ रही है। विपक्षी दलों के बाद अब हाईकोर्ट ने इस कानून को बिल्कुल बेतुका करार दिया है और साथ ही राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। राजस्थान सरकार अब आगामी 7 नवंबर 2017 को अपना जवाब दाखिल करेगी। राजस्थान में अफसरों और नेताओं को बचाने के लिए सीआरपीसी में संशोधन के लिए लाए गए अध्यादेश के विरुद्ध दायर याचिका को विचारार्थ स्वीकार करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधीश गोविंद माथुर व विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 7 नवंबर तक जवाब.तलब किया है। कोर्ट ने सरकार की ओर से उपस्थित अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश पंवार व अधिवक्ता श्याम पालीवाल से मौखिक रूप से पूछा कि यह कैसा प्रावधान है। खंडपीठ ने कहा कि यह बिल्कुल बेतुका कानून है। इस मामले में अगली सुनवाई 7 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ता एजाज अहमद की ओर से अधिवक्ता नीलकमल बोहरा ने कोर्ट में कहा कि क्रिमिनल लॉ राजस्थान अमेंडमेंट ऑर्डिनेंस 2017 संविधान के विरुद्ध है। इसमें धारा 156.3 सीआरपीसी व धारा 190.बी सीआरपीसी के साथ ही एक नई धारा 228.बी को शामिल किया गया है। इससे आम आदमी को मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी भी आरोपी जज मजिस्ट्रेट व लोक सेवक के खिलाफ जिसने सरकारी ड्यूटी करते हुए किसी भी तरह का भ्रष्ट आचरण किया है शिकायत करने का अधिकार नहीं रहेगा। मीडिया की स्वतंत्रता भी प्रभावित होगी। उन्होंने कहा कि भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ समाचार प्रकाशित होने पर दंड का प्रावधान पूरी तरह अवैधानिक है।