कानून रिव्यू/नई दिल्ली
सरकार की सुस्ती के कारण होने वाली देरी को माफ़ नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार पर देरी से विशेष अनुमति याचिका दायर करने के लिए 20,000 का जुर्माना लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि सरकार जिस सुस्ती से काम कर रही है उसको देखते हुए इस देरी को माफ़ नहीं किया जा सकता है। इस मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ के फ़ैसले की खंडपीठ ने आलोचना की क्योंकि इसमें 367 दिनों की देरी हुई। खंडपीठ ने इस देरी को माफ़ किए जाने की अपील ख़ारिज कर दी। खंडपीठ के आदेश के 728 दिनों के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। इस देरी का कारण यह बताया गया कि संबंधित विभाग से हलफ़नामा और वकालतनामा प्राप्त करने में देरी हुई। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी ने कहा कि हमारा मानना है कि सरकार को यह स्पष्ट संदेश देना ज़रूरी है कि अपने अधिकारियों की अक्षमता और उनके खिलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई किएबिना वे अपनी मर्ज़ी से जब चाहें अदालत का दरवाज़ा नहीं खटखटा सकते। 728 दिन की देरी क्यों हुई इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है जैसे कि देरी के लिए माफ़ी राज्य सरकार का जन्मजात अधिकार है। उसका जो व्यवहार रहा है उसको देखते हुए परिसीमन का क़ानून राज्य सरकार पर लागू नहीं होता है। इस देरी के लिए इस आधार पर माफ़ी नहीं दी जा सकती क्योंकि सरकार की सुस्ती की बात साफ़ है। इस मामले में इस अदालत के फ़ैसले में कहा गया था कि विशेष अनुमति याचिका दायर करने का शायद उद्देश्य यह है कि इसको ख़ारिज किए जाने का प्रमाणपत्र सुप्रीम कोर्ट से मिल जाए। यह सीधे.सीधे अदालत के समय की बर्बादी है और याचिकाकर्ता को इसकी सज़ा मिलनी चाहिए। एसएलपी को ख़ारिज करते हुए पीठ ने बिहार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे इस मामले की जांच करें और क़ानूनी मामलों का बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करें। निर्देश में यह भी कहा गया कि यह जुर्माना उन अधिकारियों से वसूला जाना है जो इस देरी के लिए ज़िम्मेदार हैं।