अविवाहित रहने के लिए मजबूर करने को लेकर ब्याज सहित 63,26000 रुपये मुआवजा देने का आदेश
मद्रास हाईकोर्ट ने चेन्नई नगर निगम को झटका देते हुए 63,26000 रुपये मुआवजा देने का फैसला सुनाया
कानून रिव्यू/ चेन्नई
मद्रास हाईकोर्ट ने चेन्नई नगर निगम को झटका देते हुए निर्देश दिया है कि वह एक 26 साल की उम्र के युवक को ब्याज सहित 63,26000 रुपये मुआवजा दे। हाईकोर्ट ने यह आदेश दुर्घटना के कारण एक व्यक्ति को अविवाहित रहने के लिए मजबूर करने को लेकर दिया है। एक दुर्घटना के कारण इस युवक के शारीरिक रूप से अक्षम होने, वैवाहिक सुख से वंचित होने व अन्य शिकायतों के लिए ये मुआवजा दिया जाएगा। कोर्ट ने माना कि दुर्घटनाएं मानव अधिकारों और मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का एक स्रोत हैं और यह देखना सरकार का कर्तव्य है कि नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए। इस आदेश को पारित करते हुए न्यायमूर्ति एन0 किरुबाकरण और न्यायमूर्ति पी0 वेलमुरुगन ने कहा कि एक योग्य सामान्य इंसान के रूप में वह शादी कर लेता और वैवाहिक जीवन का आनंद लेता। व्यक्ति को उसकी इच्छा के खिलाफ कुवांरा रहने के लिए मजबूर किया गया है, क्योंकि कोई भी महिला पैरापलेजिया यानी नीचे के अंगों का पक्षाघात से पीड़ित व्यक्ति से शादी नहीं करेगी। इस कारण वह वैवाहिक सुख और आनंद से वंचित रहेगा। जबरन संयम और कुछ नहीं बल्कि तीसरे प्रतिवादी के मानवीय अधिकार का उल्लंघन है। वहीं जबरन संयम इस तरह के आदमी के स्वास्थ्य के नकारात्मक परिणामों से अलावा और कुछ नहीं है। इस मामले में प्रतिवादी युवक पर एक बिजली का खंभा गिर गया था और जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई। जिसके कारण वह 100 प्रतिशत विकलांग हो गया। कथित तौर पर निगम की लापरवाही के कारण यह पोल गिरा था क्योंकि निगम के कर्मचारियों ने पोल को ठीक से वेल्ड नहीं किया था। हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने प्रतिवादी के पक्ष में एक आदेश पारित किया था जिसमें उसे कुल 5 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था। उस आदेश के खिलाफ वर्तमान अपील दायर की गई। अपील में दावा किया कि दुर्घटना उस समय हुई जब एक ठेकेदार पोल को हटाने की कोशिश कर रहा था। इसके अलावाए उन्होंने दलील दी कि दुर्घटना प्रतिवादी की अपनी लापरवाही के कारण हुई है जो असावधान था और फोन पर बात कर रहा था। ठेकेदार के कर्मचारियों द्वारा सावधान रहने की हिदायत दिए जाने के बावजूद भी प्लेटफॉर्म पर चल रहा था। निगम की दलीलों से असहमत होते हुए कोर्ट ने कहा कि निगम को चाहिए था कि वह पूरी सड़क पर साइन बोर्ड लगाकर राहगीरों को सचेत करती। निगम को उसकी स्वयं की विफलता का दायित्व पीडित पर ड़ालने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक स्थान पर किया जाने वाला कोई भी कार्य विशेष रूप से जब लोग वहां से गुजर रहे हों, उचित चेतावनी बोर्ड लगाने के बाद ही उचित सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। जवाबी हलफनामे में अपीलकर्ता ने कहा कि यह नहीं बताया कि उन्होंने चेतावनी बोर्ड लगाकर सावधानी बरती और जनता को उस स्थान पर होने वाले काम के बारे में सूचित किया था। इसलिए नगर निगम एहतियात बरतने में और साइन बोर्ड लगाकर चल रहे काम के बारे में जनता को आगाह करने में नाकाम रहा है। कोर्ट ने पीडित की शिकायत के साथ सहमति व्यक्त की और कहा कि निगम की कार्रवाइयों ने उसे कुंवारे रहने के लिए मजबूर कर दिया है क्योंकि कोई भी महिला व्हीलचेयर से बंधे पुरुष से शादी नहीं करेगी। पीठ ने यह भी कहा कि ब्रह्मचर्य और विवाह के बीच चयन करने की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है। कोई भी आदमी या औरत अपनी इच्छा के अनुसार या तो ब्रह्मचर्य या वैवाहिक होने का विकल्प चुन सकता है। किसी को भी ब्रह्मचर्य का पालन करने या वैवाहिक जीवन में जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और यदि ऐसा किया जाता है तो बुनियादी मानव अधिकार के अलावा यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलें मौलिक अधिकार की गारंटी का भी उल्लंघन होगा।् इस प्रकार अदालत ने उसे 2,50,000 रुपये उसकी वैवाहिक संभावनाएं खत्म होने और उससे मिलने वाले आनंद से वंचित रहने के लिए दिए। साथ ही उसे लगी चोट की प्रकृति के कारण अपनी नौकरी खो दी थी। उसकी आय का आकलन करते हुए अदालत ने भविष्य की संभावनाओं के आधार पर आय की गणना करने वाले सिद्धांत को लागू किया। इस सिद्धांत को राष्ट्रीय बीमा कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी एंड अदर्स 2017 टीएन एमएसी 609 एससी मामले में निर्धारित किया गया था। इसी आधार पर अदालत ने उसकी मासिक आय का पता लगाया। वहीं सरला वर्मा एंड अदर्स बनाम दिल्ली परिवहन निगम और अन्य 2009 टीएनएमएसी एससी मामले में कोर्ट द्वारा तय किए गए कानून के अनुसार अदालत ने उसकी 17 साल की आय की गणना की। इस तरह हाईकोर्ट ने उसे उसकी आय के नुकसान के लिए 28,56,000 रुपये दिए। कुल मिलाकरए अदालत ने उसे 63,26000 रुपये का मुआवजा दिया है।