कानून रिव्यू/नई दिल्ली
पीजी मेडिकल और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े मराठा समुदाय के लिए कोटा देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटते हुए अध्यादेश लाने के बाद अब महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट याचिका दाखिल की है। इस याचिका में राज्य सरकार ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई आदेश जारी करता है तो राज्य का पक्ष भी सुना जाना चाहिए। गौरतलब है कि सोमवार 20 मई को ही महाराष्ट्र के राज्यपाल सी0् विद्यासागर राव ने सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग आरक्षण कानून 2018 के तहत मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए थे। राज्य सरकार को लगता है कि इस अध्यादेश को अदालत में चुनौती दी जाएगी। 9 मई को महाराष्ट्र सरकार की इस वर्ष पीजी मेडिकल और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में मराठा समुदाय के लिए कोटा पर रोक लगाने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। जस्टिस एल0 नागेश्वर राव और जस्टिस एम0 आर0 शाह की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा था कि समानता का अधिकार उन छात्रों का भी है जो राज्यों में मेडिकल दाखिलो के इच्छुक हैं। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने के लिए योग्य डॉक्टरों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह कहा था कि 27.3.2019 को प्रकाशित संशोधित आरक्षण सीट मैट्रिक्स अनिर्दिष्ट है, क्योंकि यह एसईबीसी उम्मीदवारों की श्रेणी के लिए एक प्रावधान बनाता है जिसके अवैध होने के नाते, वर्तमान प्रवेश प्रक्रिया में एसईबीसी आरक्षण के सीमित उद्देश्य के लिए प्रभाव नहीं दिया जाएगा। बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला और तर्क जस्टिस एस0 बी0 शुकरे और जस्टिस पी0 वी0 गणेदीवाला की पीठ ने यह फैसला सुनाया था कि राज्य सरकार की अधिसूचना 8 मार्च 2019 के तहत स्वास्थ्य विज्ञान के पाठ्यक्रमों में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों के कोटे को पीजी डेंटल और मेडिकल प्रवेश के लिए लागू नहीं किया जाएगा क्योंकि एईईटी के लिए पंजीकरण प्रक्रिया वर्ष 2018 में 16 अक्टूबर और 2 नवंबर को शुरू हुई थी जबकि मराठा समुदाय के लिए 16ः आरक्षण शुरू करने वाले एसईबीसी अधिनियम को 30 नवंबर 2018 को लागू किया गया था। इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने सभी निजी सहायता प्राप्त और गैर.सहायता प्राप्त कॉलेजों पर सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 16ः कोटा देने के सरकार के फैसले पर सवाल उठाया था। यह कोटा इंस्टीट्यूट कोटा और एनआरआई कोटा सहित सभी सीटों पर होना था। जबकिए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियों, विमुक्त जातियों, घुमंतू जनजातियों, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए अन्य आरक्षणों की गणना 50ः के तहत की जाती है वो भी एनआरआई और संस्थान कोटा हटाने के बाद उपलब्ध कोटा में। याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया था कि यह भेदभावपूर्ण है।