-विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ दैविकता अर्थात् हर प्रकार की सुख-शांति और समृद्धि बरसती है। इसके विपरीत जहाँ नारियों का लगातार अपमान होता रहता है वहाँ राक्षसी प्रवृत्तियाँ मंडराने लगती हैं, परिवारों का सुख-चैन तो क्या परिवार के परिवार ही नष्ट हो जाते हैं।
पति-पत्नी का सम्बन्ध परस्पर पूर्ण समर्पण का सम्बन्ध होता है। परन्तु जो लोग इस सम्बन्ध को केवल मात्र शारीरिक सम्बन्धों और विशेष रूप से कामवासना के रूप में ही देखने का प्रयास करते हैं वे इस सम्बन्ध की दैविकता को कभी भी नहीं समझ पाते। इसमें कोई सन्देह नहीं कि पति-पत्नी के रूप में दो शरीरों का मिलन प्रेम और वात्सल्य के बल पर प्रारम्भ होता है। कुछ ही पल में प्रेम के साथ काम-क्रिया जुड़ जाती है। प्रकृति ने इस काम-क्रिया का भी एक सुन्दर और दैविक उद्देश्य जोड़ रखा है। पति-पत्नी का प्रतिनिधित्व करते हुए वीर्य और रज के मेल से एक नये शरीर का निर्माण प्रारम्भ होता है, आत्मा का प्रवेश होता है और परिणामस्वरूप दो प्रेम करने वालों को अपने संस्कारों की प्रतिलिपि के रूप में एक बालक या बालिका की प्राप्ति होती है। हालांकि प्रत्येक पति-पत्नी का मिलन इसी प्रक्रिया से गुजरकर सृष्टि को आगे बढ़ाने के दैविक कार्य में सहयोगी बन जाता है। परन्तु कुछ लोग, चाहे वह पति हो या पत्नी, इस मिलन से लेकर सन्तानोत्पत्ति तक के कार्य के पीछे छिपी दैविक प्रक्रिया पर चिन्तन नहीं करते और इसके विपरीत ऐसे लोग अपने सम्बन्धों को केवल कामवासना की पूर्ति के रूप में देखने लगते हैं। पति-पत्नी के सम्बन्धों की गहराई में न जाने वाले लोग विवाह के कुछ समय बाद अपनी छोटी-छोटी अहंकारी प्रवृत्ति के कार्यों को पोषित करने में लग जाते हैं। ऐसे लोग एक दूसरे को अपने अधीन, अपने से निम्न आदि भावों से देखने लगते हैं। इस प्रकार की मानसिकता के चलते पीड़ित पक्ष कुछ समय तो यातनाओं को सहन कर लेता है परन्तु एक न एक दिन अहंकार रूपी पाप का घड़ा भरने के बाद पारिवारिक सम्बन्ध पूरी तरह से कलह-क्लेश का रूप लेकर कानूनी वाद-विवाद तक पहुँच जाते हैं। कानून की धारा सदैव पत्नी की पीड़ा को समझती है। इसी वजह से कभी-कभी कुछ मामलों में पत्नी के द्वारा किये गये अत्याचार भी छिप जाते हैं। परन्तु यह एक ध्रुव सत्य है कि बहुमत विवादों में पत्नियाँ ही पीड़ित नजर आती हैं। बहुमत मामलों में पति और उनके परिजनों का अहंकार चरम पर ही दिखाई देता है। बहुमत मामलों में बहु को ससुराल में एक अजनबी और बाहरी सदस्य के रूप में ही देखा जाता है। इन्हीं कारणों से पत्नियों पर अत्याचार ही अक्सर कानूनी विवादों में देखे जाते हैं।
मुम्बई के समीर का विवाह नन्दिता के साथ मई, 1992 में सम्पन्न हुआ था। लगभग दो दशक की यात्रा पूरी करने के बाद दोनों के बीच कानूनी विवाद प्रारम्भ हो गया। पूर्ण तथ्यों के अभाव में यह कहना सम्भव नहीं है कि समीर ने इन दो दशकों अर्थात् 20 वर्ष की लम्बी यात्रा में कब-कब और किस-किस रूप में अपने अहंकार से नंदिता को पीड़ित किया होता। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय तक पहुँचे इस विवाद में प्रस्तुत संक्षिप्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि समीर के द्वारा नन्दिता के विरुद्ध दिन-प्रतिदिन की हिंसा अब असहनीय हो चुकी थी। इन दो दशकों से अधिक समय की पारिवारिक यात्रा में लगभग 20 वर्ष की दो बेटियाँ भी समीर के इस हिंसक व्यवहार की द्रष्टा थी। इन दोनों बेटियों ने भी शपथ पत्र के माध्यम से अपने पिता के हिंसक व्यवहार का पूरा विवरण अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था।
1992 में विवाह के बाद लगभग 2010 तक यह परिवार मुम्बई के बान्द्रा क्षेत्र में दो फ्लैटों के एक संयुक्त आवास में रह रहा था। 2010 में ये दोनों फ्लैट बेचकर उन्होंने बान्द्रा में ही एक बड़ा फ्लैट ले लिया था। यह नया फ्लैट समीर और नन्दिता के संयुक्त नाम से लिया गया था। हिंसा का घड़ा जुलाई, 2015 में भरा हुआ दिखाई दिया जब नन्दिता को मजबूर होकर समीर के विरुद्ध तलाक की याचिका प्रस्तुत करनी पड़ी। इसके अतिरिक्त नन्दिता ने अपने तथा दोनों बेटियों के लिए एक लाख रुपये प्रतिमाह का भरण-पोषण खर्च तथा समीर को इस फ्लैट से बेदखल करने की प्रार्थना की जिससे वह अपनी बेटियों के साथ शांतिपूर्वक रह सके। समीर ताज होटल में कार्य करता था और नंदिता ब्रिटिश एयरवेज में परिचारिका थी। इन प्रार्थनाओं के उत्तर में समीर की तरफ से यह भी कहा गया कि मुम्बई में ही नन्दिता तथा उसकी माँ के दो मकान है। इसके विपरीत नन्दिता की तरफ से यह तर्क दिया गया कि समीर का भी अपनी माँ के साथ संयुक्त मालिकाना अधिकार का एक फ्लैट है जो उनके वर्तमान निवास से केवल 5 मिनट की पैदल दूरी पर है। इसलिए उसे वहाँ रहने में कोई परेशानी भी नहीं होगी।
मुम्बई की पारिवारिक अदालत ने अपने अन्तरिम आदेश में समीर को नन्दिता और उसकी बेटियों वाले फ्लैट को छोड़ने का निर्देश दिया और यह भी कहा कि जब तक तलाक याचिका का निर्णय नहीं हो जाता तब तक वह पुनः इस घर में प्रवेश न करे। इस आदेश के विरुद्ध समीर ने मुम्बई उच्च न्यायालय का द्वार इस कानूनी तर्क के साथ खटखटाया कि मुकदमें के अन्तिम निर्णय से पूर्व इस प्रकार का आदेश नहीं दिया जा सकता क्योंकि वह फ्लैट का संयुक्त मालिक है।
मुम्बई उच्च न्यायालय ने महिलाओं की पारिवारिक हिंसा से संरक्षण कानून की धारा-19(1)(बी) का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए कहा कि ट्रायल अदालत हिंसा करने वाले पति को पत्नी के साथ संयुक्त घर में से बाहर कहीं रहने के लिए आदेश कर सकती है। धारा-19 का उद्देश्य पीड़ित पक्ष को लगातार बिना बाधा के निवास की सुविधा उपलब्ध कराना है। इस प्रावधान में अदालत हिंसा करने वाले लोगों को यह आदेश भी कर सकती है कि वे पीड़ित पक्ष के लिए एक अलग आवास का प्रबन्ध करे, उसका किराया दें और बार-बार पीड़ित पक्ष की शांति को भंग करने के लिए उस आवास में प्रवेश न करें।
मुम्बई उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद समीर ने सर्वोच्च न्यायालय में भी विशेष याचिका प्रस्तुत की। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री कुरियन जोसफ तथा न्यायमूर्ति श्रीमती आर. भानुमति की खण्डपीठ ने मुम्बई की पारिवारिक अदालत तथा उच्च न्यायालय के आदेशों से एकमत होते हुए समीर की याचिका निरस्त कर दी तथा पारिवारिक अदालत को तलाक याचिका का निर्णय यथाशीघ्र करने का निर्देश दिया। (सिविल अपील नम्बर-6450/2017)
पत्नियों के विरुद्ध हिंसा का सीधा अर्थ है परमात्मा के दैविक निर्देशों का घोर उल्लंघन। मनुस्मृति में महिलाओं की रक्षा और सम्मान के लिए एक स्पष्ट व्यवस्था है – ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ दैविकता अर्थात् हर प्रकार की सुख-शांति और समृद्धि बरसती है। इसके विपरीत जहाँ नारियों का लगातार अपमान होता रहता है वहाँ राक्षसी प्रवृत्तियाँ मंडराने लगती हैं, परिवारों का सुख-चैन तो क्या परिवार के परिवार ही नष्ट हो जाते हैं। दिल्ली की एक घरेलू कार्य करने वाली महिला को उसका पति शराब के नशे में प्रतिदिन गाली-गलौच और मार-पीट करता था। इस वातावरण से दुःखी उस महिला को ही ऐसे राक्षस पति के इलाज के लिए दुर्गा रूप धारण करना पड़ा जब उसने शराब में धुत उस पति की गला घोटकर हत्या कर दी। इसलिए समाज के प्रत्येक पुरुष से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि दैविक निर्देशों को गम्भीरता से समझने का प्रयास करें और अपने घर को सुख-शांति का केन्द्र बनाये रखने के लिए महिलाओं के सम्मान में कभी किसी प्रकार की कमी न करें।