स्ंसद, न्यायालयों और विधानसभाओं में रहे महिलाओं हितों के कानून
भारत में महिलाओं के अधिकारों,हितो यानी महिला सशक्तिकरण के लिए कानूनों को सबसे ज्यादा बोलबाला यदि किसी वर्ष में रहा तो वर्ष- 2017 ही रहा है। बीता वर्ष 2017 महिला सशक्तिरण के लि, जाना जाएगा।
मौहम्मद इल्यास-दनकौरी/नई दिल्ली
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भारत में महिलाओं के अधिकारों,हितो यानी महिला सशक्तिकरण के लिए कानूनों को सबसे ज्यादा बोलबाला यदि किसी वर्ष में रहा तो वर्ष- 2017 ही रहा है। बीता वर्ष 2017 महिला सशक्तिरण के लि, जाना जाएगा। तीन तलाक पर कानून सरकार लोकसभा में बगैर किसी दवाब यानी वोट बैंक की चिंता कि, बगैर पेश किया जिससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित किया जा सकेगा। इसी प्रकार न्यायालयों भी महिला हितों को लेकर फैसले आए और कई राज्यों की विधानसभाओं में भी महिला अधिकारों को लेकर कानून बनाए गए।
तीन तलाक से महिलाओं को मिली आजादी
मुस्लिम महिलाओं के लिए वर्ष 2017 ऐतिहासिक वर्ष रहा क्योंकि मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को तीन तलाक वाली प्रथा से निजात मिल चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा को कानूनी रूप से असंवैधानिक बताया। इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं की बड़ी जीत हुई है। आकडों पर गौर करें तो पता चलता है कि बिहार की करीब एक करोड़ मुस्लिम महिला आबादी को इसका लाभ मिलेगा
नाबालिग पत्नी से शारीरिक संबंध बनाना अपराध
दूसरी बड़ी जीत बाल विवाह के रूप में हुई। इसके तहत बाल विवाह कानून के मुताबिक शादी के लिए महिला की उम्र 18 साल होनी चाहिए और यदि कोई व्यक्ति अपनी नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं तो वह गैरकानूनी होगा।
मातृत्व अवकाश
अब 26 सप्ताह- 2017 की शुरुआत में मातृत्व लाभ का संशोधन बिल पास किया गया। इसके तहत कामकाजी महिलाओं के मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है। यह कामकाजी महिलाआें की बड़ी जीत के रूप में है। इससे महिलाएं न केवल अपने कैरियर के प्रति सजग होंगी बल्कि अपने मातृत्व दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर पाएंगीं। इसके साथ ही कार्मिक प्रशिक्षण विभाग यानी डीओपीटी ने यौन शोषण की शिकार महिलाओं को तीन महीने तक की सवेतन छुट्टी या पेड लीव देने की बात कही है।
गर्भपात के लिए पति की इजाजत जरूरी नहीं
– शादीशुदा महिलाओं के लिए अब अनचाहे गर्भ से निजात दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इसी वर्ष नवंबर में उनके हित में बड़ा फैसला सुनाया। इसके तहत अब कोई भी शादीशुदा महिला अनचाहे गर्भ को अपनी इच्छा से गर्भपात करा सकती है। इसके लिए अब उन्हें अपने पति से इजाजत तक लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
निर्भया कांड का फैसला भी बीते वर्ष की बड़ी सौगात
– वर्ष 2012 के दिसंबर माह की सबसे बड़ी हृदय विदारक घटना निर्भया कांड उस घटना ने देश भर में महिला आंदोलन को नया रूप दिया। मई 2017 में निर्भया के चार दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे सदमे की सुनामी का नाम देकर महिलाओं की बड़ी जीत सुनिश्चित की।
राइट टू प्राइवेसी का अधिकार
बीते वर्ष 24 अगस्त को ही एक और न, अधिकार ने महिलाओं को सशक्त बनाने का काम किया है और वह है राइट टू प्राइवेसी। सुप्रीम कोर्ट ने 1963 के फैसले में बदलाव करते हुए संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शादी करने से लेकर बच्चे पैदा करने यानी परिवार रखने से जुड़े कई प्राइवेसी जैसे मामलों में मौलिक अधिकार प्रदान किया है। इससे अब उनके प्राइवेसी का भी ख्याल रखना सरकार और प्रशासन के जिम्मे आ गया है।
पीरियड लीव तक निजी स्तर पर हुई घोषणा
बीते वर्ष जुलाई में मुंबई स्थित एक भारतीय कंपनी कल्चरल मशीन को अपने यहां की महिला कर्मियों को पीरियड्स के पहले दिन छुट्टी देने की घोषणा करने का भी श्रेय मिला। अब तक इसका श्रेय जापान, चीन व इंडोनेशिया आदि देश को ही था।
चर्चित कैंपेन जिसने बनाया सशक्त
—————————मेरी रात मेरी सड़क 2017 का चर्चित कैंपेन रहा सोशल मीडिया में इसने अच्छी जगह बनाते हुए महिलाओं को जागरूक किया। इसके तहत देर रात समूह में लड़कियां सड़कों पर निकली और अपने आत्मबल का प्रदर्शन किया। दूसरा बड़ा कैंपेन मी टू भी रहा जो यौन शोषण के खिलाफ चलाया गया।