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  मां का राइट टू फूड!

14.01.2018 By Editor

स्तनपान यानी ब्रेस्टफीडिंग कितना जरूरी है। वैसे इस बारे में सरकारी विज्ञापनों की भरमार है छह महीने तक मां के दूध की अहमियत बताते हुए महिला और परिवार कल्याण मंत्री ने तो मेटरनिटी लीव को लंबा छह महीने करा दिया है। एक बार फिर पुष्ट हो गया कि बच्चे को छह महीने तक मां की कितनी जरूरत होती है. पिता जाए तेल लेने, उसकी जरूरत बच्चे को कभी होती ही नहीं सिवाय नाम की चिप्पी लगाने के अलावा। जायदाद देने के अलावा सीना तान कर संपत्ति बढाने के अलावा इसीलिए तो उसे नौकरी से कुछ महीने की छुट्टी दिलवाने के बारे में किसी ने विचार नहीं किया

 बेस्टफीडिंग पर भी कानून बनवाने की तैयारी

  • कानून रिव्यू/मद्रास

———————–एक औरत जीवन भर जन्म और पालन पोषण में ही रहती है और आधी से अधिक जिदंगी औरत की यों ही बीत जाती है। किंतु अब कानूनन औरत की और जिम्मेदारी तय की जा रही है और वह है राइट टू फूड। मद्रास हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है. हर बच्चे के लिए स्तनपान उसका मौलिक अधिकार क्यों न बनाया जाए? एक केस की सुनवाई के समय कोर्ट ने यह तो कहा ही है साथ ही यह भी कहा है कि सरकार को छः महीने तक बच्चे को स्तनपान कराए जाने पर कानून ही बना देना चाहिए। तो इससे कौन असहमत होगा आखिर बच्चे ही देश का भविष्य हैं उनकी सेहत का ख्याल तो रखा ही जाना चाहिए। मुद्दा यह है कि बच्चे की सेहत की पूरी जिम्मेदारी उसकी जननी पर ही है। स्तनपान दूसरा कौन करा सकता है।

 

ब्रेस्टफीडिंग पर है कानून बनवाने की तैयारी

———–इस एंगल से हम कभी सोचते भी नहीं लिखे.बने पारिवारिक सेटअप से बाहर निकलना हमारे बस में नहीं। इसीलिए लगातार मां की भूमिका निश्चित करते रहते हैं फिलहाल यह तय करने की कोशिश की जा रही है कि स्तनपान यानी ब्रेस्टफीडिंग कितना जरूरी है। वैसे इस बारे में सरकारी विज्ञापनों की भरमार है छह महीने तक मां के दूध की अहमियत बताते हुए महिला और परिवार कल्याण मंत्री ने तो मेटरनिटी लीव को लंबा छह महीने करा दिया है। एक बार फिर पुष्ट हो गया कि बच्चे को छह महीने तक मां की कितनी जरूरत होती है. पिता जाए तेल लेने, उसकी जरूरत बच्चे को कभी होती ही नहीं सिवाय नाम की चिप्पी लगाने के अलावा। जायदाद देने के अलावा सीना तान कर संपत्ति बढाने के अलावा इसीलिए तो उसे नौकरी से कुछ महीने की छुट्टी दिलवाने के बारे में किसी ने विचार नहीं किया अब बेस्टफीडिंग पर भी कानून बनवाने की तैयारी है।

 

 

मां के राइट टू फूड पर बाकी है लंबी चर्चा

———-मां का दूध बच्चे का राइट टू फूड है मां के राइट टू फूड पर अभी लंबी चर्चा बाकी है मां की हालत यह है कि हर घंटे औसत पांच औरतें बच्चे के जन्म देने के समय मौत का शिकार हो जाती हैं। 2015 में विश्व बैंक ने कहा था कि हमारे यहां मेटरल मॉरटैलिटी रेट कम हुआ है फिर भी हालत खराब है हर एक लाख जीवित बच्चों के जन्म के समय भारत में 174 औरतों की मौत हो जाती है। 2010 में तो यह आंकड़ा 215 था जो नहीं मर जाती हैं उनमें से एक तिहाई औरतें कुपोषण का शिकार होती हैं। ये वे औरतें है जो रीप्रोडक्टिव एज यानी बच्चे पैदा करने की उम्र की होती हैं। इनका बॉडी मास इंडेक्स 18.5 किग्रा से कम होता है। इसलिए यह भोंपू लगाकर बोलने की जरूरत नहीं कि बच्चे के भोजन के अधिकार से पहले मां के भोजन का अधिकार आता है वह उसे मिलेगा

 

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