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मुलायम और अखिलेश को सीबीआई की क्लीन चिट

21.05.2019 By Editor

सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में किया हलफनामा दाखिल

मौहम्मद इल्यास–’’दनकौरी’’/नई दिल्ली

———————————————सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए कहा है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और उनके बेटों अखिलेश यादव तथा प्रतीक यादव के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। सीबीआई ने कहा है कि इसी के चलते वर्ष 2013 में प्राथमिक जांच को बंद कर दिया गया।  इस हलफनामे में सीबीआई ने ये भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कभी भी एफआईआर दर्ज करने को नहीं कहा था बल्कि एजेंसी से स्वतंत्र विचार करने को कहा था कि केस बनता है या नहीं। जांच के बाद इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की गई क्योंकि जांच के दौरान कोई सबूत नहीं मिले। इसलिए मामले को बंद कर दिया गया। इससे पहले 12 अप्रैल को सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ये प्रारंभिक जांच वर्ष 2013 में बंद हो चुकी है। सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ को बताया था कि ये प्रारंभिक जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शुरू की गई थी। उन्होंने कहा था कि जांच एजेंसी इस संबंध में आगे की कार्रवाई को लेकर एक हलफनामा दाखिल करेगी। पीठ ने इस मामले में 4 हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने को कहा था। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च को समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, उनके बेटों अखिलेश यादव और प्रतीक यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में सीबीआई को जांच की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश देते हुए नोटिस जारी किया था। यह नोटिस कांग्रेस नेता विश्वनाथ चतुर्वेदी की अर्जी पर जारी किया गया था। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने याचिकाकर्ता के उस आरोप के बाद सीबीआई से जवाब मांगा था कि सीबीआई ने मामले में कोई स्टेटस रिपोर्ट दाखिल नहीं की है जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को 11 वर्ष से अधिक समय बीत गया है।  इस दौरान मुलायम सिंह की ओर से पेश वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि चुनाव के समय ये याचिका दाखिल की गई है। लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि वर्ष 2007 में सीबीआई ने कहा था कि जांच के लिए केस बनता है। पीठ ये जानना चाहती है कि इसके बाद क्या जांच हुई। समय से इसका कोई लेना देना नहीं है। चतुर्वेदी ने अपनी अर्जी में कहा है कि वर्ष 2005 में दायर मुख्य रिट याचिका में उन्होंने सीबीआई को मुलायम सिंह और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति अर्जित करने के लिए उचित कार्रवाई करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी। अदालत ने वर्ष 2007 में सीबीआई को आरोपों की जांच करने और रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था कि आरोप सही हैं या नहीं। अदालत ने सीबीआई को भारत सरकार को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया और ऐसी रिपोर्ट प्राप्त होने पर भारत सरकार उत्तरदाताओं की संपत्ति के लिए प्रारंभिक जांच के परिणाम के आधार पर और कदम उठा सकती है।  यह कहा गया है कि सीबीआई ने उक्त स्टेटस रिपोर्ट 4 उत्तरदाताओं से प्रारंभिक पूछताछ और 01-04-1993 से 31-03-2005 तक आयकर रिटर्न देखने के बाद तैयार की। मुलायम सिंह यादव द्वारा संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए स्पष्ट विचार के आधार पर भी उनकी आय के ज्ञात स्रोतों के अनुपात में उनकी संपत्ति 2,99,00,000 रुपये ज्यादा थी। इसके अलावाए यदि पूरे परिवार की संपत्ति को ध्यान में रखा जाता है, तो आय के ज्ञात स्रोतों के अनुपात में संपत्ति 9,22,72,000 रुपये ज्यादा थी और वर्ष 2013 में इस संपत्ति का मूल्य 24 करोड़ रुपये था। उन्होंने कहा कि 11 वर्षों से इस मामले पर कोई कार्रवाई नहीं होने के कारण पहले से ही एक असामान्य रूप से लंबी अवधि हो गई और पूरा मामला सीबीआई के पास एक नियमित मामले के पंजीकरण के लिए लंबित है। मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और प्रतीक यादव की पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए निष्पक्ष और तत्काल जांच की आवश्यकता थी। हालांकि अदालत ने डिंपल यादव द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को अनुमति दी थी और सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह डिंपल यादव की संपत्ति की जांच छोड़ दे। अन्य उत्तरदाताओं के संबंध में इस अदालत ने सीबीआई को इस तरह की स्वतंत्र कार्रवाई करने का निर्देश दिया था क्योंकि जांच और आयकर रिटर्न के आधार पर यह फिट माना गया था कि कार्रवाई को आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने प्रस्तुत किया है कि उन्होंने एक बड़ा व्यक्तिगत जोखिम लिया है और ये उनके परिवार के सदस्यों व स्वयं के लिए एक वास्तविक और गंभीर सुरक्षा खतरा है। मामले में निष्क्रियता और देरी ने उनके जीवन पर और खतरा बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि सीबीआई का यह कदम हमारे देश के अच्छे और ईमानदार नागरिक को हतोत्साहित करेगा।

Filed Under: Hindi

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