यूपी हापुड मॉब लिचिंग मामला
कानून रिव्यू/सुप्रीम कोर्ट नई दिल्ली
—————————–उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में गोहत्या के आरोप में मॉब लिंचिंग के मामले की जांच को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सीलबंद स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की है। इस मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि इस रिपोर्ट को याचिकाकर्ताओं को भी दिया जाए। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से आग्रह किया कि मामले का ट्रायल 6 महीने में पूरा हो जाएगा इसलिए इसकी सुनवाई गर्मियों की छुट्टियों के बाद की जाए। लेकिन पीठ ने कहा कि पहले इसको लेकर अगले हफ्ते सुनवाई होगी। ं इससे पहले 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को मामले की जांच की ताजा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। पीठ ने राज्य सरकार को कहा था कि वो 2 मई से पहले ये स्टेटस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करे। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर ने पीठ को बताया था कि राज्य पुलिस की जांच सहीं नहीं चल रही है और पीड़ितों को मुआवजा तक नहीं दिया गया है। मामले में पीड़ित के बेटे की याचिका इससे पहले 11 फरवरी को इस मामले के एक अन्य पीड़ित के बेटे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। पीठ ने घटना में अपनी जान गवांने वाले कासिम कुरैशी के बेटे की याचिका पर यह नोटिस जारी किया था। वृंदा ग्रोवर के माध्यम से दाखिल इस याचिका में इस मामले में उत्तर प्रदेश से बाहर के अधिकारियों की एसआईटी से जांच कराने की मांग की गई थी। पीठ ने मामले के पीड़ित समयद्दीन की याचिका के साथ जोड़ दिया था। इससे पहले 5 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया था कि मेरठ रेंज के पुलिस महानिरीक्षक खुद इस केस की सीधी निगरानी करेंगे। तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये भी कहा था कि इस मामले में आईजी गलती करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की लिंचिंग को लेकर जारी गाइडलाइन के तहत कार्रवाई करेंगे।
हापुड मॉब लिचिंग का क्या है पूरा मामलाः– उत्तर प्रदेश के हापुड़ में गोहत्या के आरोप में मॉब लिंचिंग के शिकार एक घायल गवाह समयद्दीन ने सर्वोच्च न्यायालय में अर्जी दाखिल कर अदालत की निगरानी में विशेष जांच टीम एसआईटी से जांच कराने की मांग की थी। इस केस में एक टीवी चैनल में स्टिंग ऑपरेशन भी दिखाया गया था। इस याचिका में 4 आरोपी को जमानत मिलने पर जल्द सुनवाई की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि स्थानीय पुलिस ने मॉब लिंचिंग मामले में दिए गए शीर्ष अदालत के फैसले का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया है और एफआईआर में पूरी घटना को रोड रेज के रूप में वर्णित किया है। गत 18 जून 2018 को याचिकाकर्ता समयद्दीन 65 वर्ष और 45 वर्षीय मांस व्यापारी कासिम कुरैशी के साथ थे। जब एक भीड ने गोहत्या के आरोप में उन दोनों पर हमला कर दिया। यह घटना उस दिन के एक दिन बाद हुई जब शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा था कि वो मॉब लिंचिगं के दोषी पाए गए लोगों को दंडित करने के लिए एक अलग कानून तैयार करे। इस हमले की वीडियो रिकार्डिंग भी की गई जो यह दिखाती है कि कुरैशी और याचिकाकर्ता दोनों को फेंक दिया गया था। हमलावरों ने याचिकाकर्ता की दाढ़ी को भी खींच लिया था और उससे दुर्व्यवहार किया। कुरैशी की तुरंत मौत हो गई थी। मुख्य अभियुक्त के रूप में पुलिस ने 4 लोगों को गिरफ्तार किया जिनमें एक स्थानीय युधिष्ठिर सिंह सिसोदिया को नामजद किया गया। बाद में सिसोदिया को जमानत पर छोड़ दिया गया। अपनी जमानत याचिका में उसने यह दावा किया कि वह उस जगह पर मौजूद नहीं था। एक अंग्रेजी समाचार चैनल द्वारा एक स्टिंग ने उसे अपराध के बारे में बताते हुए दिखाया था। समयद्दीन ने भी अपनी याचिका में ट्रायल को उत्तर प्रदेश से बाहर ट्रांसफर करने का आग्रह किया है। वह यह भी चाहते हैं कि शीर्ष अदालत आरोपी की जमानत रद्द करे। सुप्रीम कोर्ट मजिस्ट्रेट के सामने इस घटना पर उनका बयान दर्ज कराए और घटना की स्वतंत्र जांच कराए।