इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले से यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी को लगा बडा झटका, अलाॅटीज को भारी राहत
शकुंतला एजूकेशनल सोसाइटी, गलगोटिया विश्वविद्यालय, जयप्रकाश ग्रुप सहित दर्जनों हाउसिंग और एजूकेशनल सोसाइटीज ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर एक्सप्रेस वे अथॉरिटी द्वारा 15 दिसंबर 2014 को जारी डिमांड नोटिस और 29 अगस्त 2014 के शासनादेश को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने गलगोटिया विश्वविद्यालय की याचिका को लीडिंग केस के तौर पर लेते हुए सभी मामलों की एक साथ सुनवाई की। एक्सप्रेस वे अथॉरिटी ने सभी आवंटियों को नोटिस जारी कर 600 रुपये प्रति स्क्वायर मीटर की दर से अतिरिक्त प्रीमियम की मांग की थी। मामले के अनुसार यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी के लिए जिन किसानों की भूमि अधिग्रहीत की गई थी वो नोएडा के किसानों की तरह अतिरिक्त मुआवजे की मांग कर रहे थे। इसे देखते हुए तत्कालीन सरकार ने मंत्री राजेंद्र चैधरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट ने गजराज केस में नोएडा के किसानों को 64.7 प्रतिशत बढ़ा हुआ मुआवजा देने का आदेश दिया था। बेवजह की मुकदमेबाजी को रोकने के लिए एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत भूमि का भी इसी दर से बढ़ा हुआ मुआवजा किसानों को दिया जाना चाहिए। सरकार ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और एक्सप्रेस वे अथॉरिटी को बढ़े हुए मुआवजे का भुगतान अपने स्रोतों से करने का आदेश दिया। साथ ही अथॉरिटी को छूट दी कि वह आवंटियों से अतिरिक्त प्रीमियम की वसूली कर सकती है।
कानून रिव्यू/ इलाहाबाद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी के अलाॅटीज को भारी राहत दी है। यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी 64.7 प्रतिशत बढ़े हुआ मुआवजा किसानों को देने के क्रम में अतिक्ति प्रीमियम वसूली अलाॅटीज से करती थी। हाईकोर्ट के इस फैसले से जहां यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी को बडा झटका लगा है वहीं यहां के गलगोटिया विश्वविद्यालय, जेपी ग्रुप सहित दर्जनों हाउसिंग और एजूकेशनल सोसाइटीज को बड़ी राहत मिली है। वहीं हाई कोर्ट ने अथॉरिटी को इसके लिए अधिकृत किए जाने के लिए जारी 29 अगस्त 2014 के शासनादेश को भी मनमाना और अवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने नोएडा भूमि अधिग्रहण मामले में गजराज केस में किसानों को बढ़ा हुआ मुआवजा देने के आदेश को देखते हुए समानता के आधार पर एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत भूमि का भी बढ़ा हुआ मुआवजा देने का निर्णय लिया है। सरकार की यह नीति सही नहीं है। ऐसा करने का कोई कारण नहीं है। शकुंतला एजूकेशनल सोसाइटी, गलगोटिया विश्वविद्यालय, जयप्रकाश ग्रुप सहित दर्जनों हाउसिंग और एजूकेशनल सोसाइटीज ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर एक्सप्रेस वे अथॉरिटी द्वारा 15 दिसंबर 2014 को जारी डिमांड नोटिस और 29 अगस्त 2014 के शासनादेश को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने गलगोटिया विश्वविद्यालय की याचिका को लीडिंग केस के तौर पर लेते हुए सभी मामलों की एक साथ सुनवाई की। एक्सप्रेस वे अथॉरिटी ने सभी आवंटियों को नोटिस जारी कर 600 रुपये प्रति स्क्वायर मीटर की दर से अतिरिक्त प्रीमियम की मांग की थी। मामले के अनुसार यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी के लिए जिन किसानों की भूमि अधिग्रहीत की गई थी वो नोएडा के किसानों की तरह अतिरिक्त मुआवजे की मांग कर रहे थे। इसे देखते हुए तत्कालीन सरकार ने मंत्री राजेंद्र चैधरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट ने गजराज केस में नोएडा के किसानों को 64.7 प्रतिशत बढ़ा हुआ मुआवजा देने का आदेश दिया था। बेवजह की मुकदमेबाजी को रोकने के लिए एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत भूमि का भी इसी दर से बढ़ा हुआ मुआवजा किसानों को दिया जाना चाहिए। सरकार ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और एक्सप्रेस वे अथॉरिटी को बढ़े हुए मुआवजे का भुगतान अपने स्रोतों से करने का आदेश दिया। साथ ही अथॉरिटी को छूट दी कि वह आवंटियों से अतिरिक्त प्रीमियम की वसूली कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि गजराज केस का फैसला यहां लागू नहीं होगा क्योंकि अधिग्रहण की कार्यवाही कोर्ट का फैसला आने से पहले की है और यहां अधिग्रहण को अदालत में चुुनौती भी नहीं दी गई है। सरकार का आदेश भूमि अधिग्रहण अधिनियम का उल्घंन है और यह क्षेत्राधिकार से बाहर दिया गया आदेश है।