कॉमन सिविल कोड नहीं तो सभी धर्मों के पर्सनल लॉ की समीक्षा करेगी सरकार
- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
————————-संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में मोदी सरकार का तीन तलाक बिल अधर में लटका हुआ है। दूसरी ओर लॉ कमीशन विभिन्न धर्मों के विद्वानों, राजनीतिक समूहों और अन्य लोगों के साथ यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बातचीत की तैयारी कर रहा है। कमीशन इस बात पर विचार करेगा कि क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड के लिए यह उचित समय है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर विचार
लॉ कमीशन – के चेयरपर्सन व जस्टिस रिटायर्ड बीएस चौहान के मुताबिक यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर विचार किया जा रहा है। विस्तृत सलाह.मश्विरे के बाद अगर कमीशन इस नतीजे पर पहुंचता है कि समय उचित नहीं है या राष्ट्रहित में नहीं है तो हम सभी धर्मों के पर्सनल लॉ की समीक्षा की सिफारिश करेंगे।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आयोग की प्रश्नावली
————————————————-कानून मंत्रालय के निर्देशों को देखते हुए लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सवालों की सूची जारी की है। 7 अक्टूबर 2016 को जारी इस प्रश्नावली के जरिए फैमिली लॉ पर सभी से राय मांगी गई है। बता दें कि इसी दिन तीन तलाक या तलाक ए बिद्दत को बैन करने को लेकर दायर की गई शायरा बानो की याचिका पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था।
मुस्लिम बोर्ड ने किया विरोध
———————————इधर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने केंद्र सरकार का कड़ा विरोध किया है। शरीयत के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हस्ताक्षर अभियान चलाया और उसे लॉ कमीशन के पास भेजा है।
60 हजार जवाब. खत्म किया जाए तीन तलाक
—-यूनिफॉर्म सिविल कोड पर लॉ कमीशन की प्रश्नावली पर अभी तक 60 हजार जवाब आए हैं इनमें से ज्यादातर में कहा गया है कि सिर्फ तीन तलाक को खत्म किया जाए हालांकि आयोग ने अभी तक इस मामले को टाल रखा है। आयोग को उम्मीद है कि तीन तलाक के मामलों की समीक्षा कर रही पांच जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच भी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कुछ निर्देश दे सकती है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कोर्ट दे सकता है निर्देश
———-जस्टिस चौहान ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट यूनिफॉर्म सिविल कोड पर चर्चा करेगा जैसा कि उसने पहले कई मामलों में इस मुद्दे पर किया है। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड कभी आया नहीं तीन तलाक पर कई सारे जवाब आने के बाद हमने कई महीने इस पर चर्चा में गुजारे अब हम अपना काम शुरू करेंगे। लॉ कमीशन के सूत्रों के मुताबिक नॉर्थ ईस्ट में संविधान के शेड्यूल 6 और आर्टिकल 371 के तहत भारत के कई कानून लागू नहीं होते हैं। इसकी वजह से कई सारी परंपरागत लैंगिक मान्यताएं जारी हैं।
लैंगिक भेदभावपूर्ण कुप्रथाओं की भी होगी समीक्षा
—————————————————इसके साथ ही लॉ कमीशन लैंगिक भेदभावपूर्ण कुप्रथाओं की भी समीक्षा करेगा। जैसे हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में बहुपति प्रथा, राजस्थान में नट प्रथा ;एक व्यक्ति बिना शादी किए पैसा देकर एक महिला के साथ रह सकता है या गुजरात में जारी मैत्री करार प्रथा जिसमें एक प्रथा जिसमें शादीशुदा व्यक्ति अपनी पत्नी के अलावा किसी और के साथ रह सकता है। इनमें से बहुत सारी प्रथाओं को कमीशन ने महिलाओं के आत्म सम्मान के खिलाफ पाया है। कमीशन इन सबको कोडिफाइड करेगा या कानून के दायरे में इसे अपराध करार देगा।
बता दें कि यूनिफॉर्म सिविल कोड बीजेपी के चुनावी मेनिफेस्टो का हिस्सा रहा है। 17 जून 2016 को कानून मंत्रालय ने लॉ कमीशन को यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले की समीक्षा करने को कहा था। माना जा रहा है कि आयोग 30 अगस्त 2018 से पहले अपनी रिपोर्ट सौंप देगा।