क्या वाकई यूपी में कानून-व्यवस्था सुधारने के नाम पर फर्जी एनकाउंटर हो रहे हैं? क्योंकि मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट तो कुछ इसी तरफ इशारा करती है। फर्जी एनकाउंटर के मामले में पिछले साल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस देश में सबसे आगे है। आयोग ने पिछले 12 साल का आंकड़ा जारी किया था, जिसमें देशभर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं। इसमें अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे।
सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी की पुलिस गोली से मौत से उठे सवाल
मौहम्मद इल्यास-’दनकौरी’/कानून रिव्यू
उत्तर प्रदेश
————————————————— उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने से अपराधियों की शामत जरूर आ गई है और तेजी से एनकाउंटर करने का सिलसिला अनवरत जारी है। किंतु लखनऊ में एपल कंपनी के सेल्स मैनेजर की विवके तिवारी की पुलिस गोली से हुई मौत के मामले से यूपी में हुए एनकाउंटरर्स पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। वहीं पुलिस द्वारा किए गए कई एनकाउंटर ऐसे भी थे, जिन्हें फर्जी करार दिया गया। मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन ’सिटीजंस अगेंस्ट हेट’ ने हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की थी और दावा किया था कि यूपी पुलिस द्वारा किए गए करीब 16 एनकाउंटरों में गड़बड़ियां हैं। मुठभेड़ से जुड़े कई ऐसे तथ्य उन्हें मिले हैं जो संदेह पैदा करते हैं। पहली तो ये कि इन सभी 16 मामलों में दर्ज हुए दस्तावेजों में करीब-करीब एक जैसी ही एनकाउंटर की कहानियां बताई गई हैं। जैसे अपराधियों को पकड़ने का तरीका और एनकाउंटर में हर बार एक अपराधी मारा जाता है, जबकि दूसरा मौके पर फरार होने में सफल हो जाता है। ये भी दावा किया था कि पुलिस ने जिन अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया था, उनके शरीर पर कई तरह के जख्म के निशान मिले थे, जिससे मामला एनकाउंटर की तरफ न जाकर, पुलिस प्रताड़ना की तरफ घूम जाता है। एनकाउंटर फर्जी होने का एक और दावा किया था कि मुठभेड़ में अपराधियों को बिल्कुल पास से गोली मारी गई है, जो एनकाउंटर पर सवाल खड़े करता है। सिटीजंस अगेंस्ट हेट का दावा है कि एनकाउंटर के तहत अमूमन गोली तब चलाई जाती है, जब अपराधी भाग रहा होता है या पुलिस पर हमला बोल देता है। ऐसे में गोली बिल्कुल पास से कैसे लग सकती है? वैसे यूपी पुलिस इन सभी आरोपों को खारिज करती है। उनका कहना है कि एनकाउंटर फर्जी तरीके नही किए जा रहे हैं। अगर अपराधी पुलिस पर हमला करता है तो पुलिसकर्मियों को अपने बचाव के लिए उस समय जो उचित लगता है, वो करते हैं।
पुलिस एनकाउंटर की ताजा घटना राजधानी लखनऊ की है, जहां दो पुलिसकर्मियों ने एनकाउंटर के नाम पर एपल कंपनी के एक सेल्स मैनेजर की जान ले ली। मैनेजर ने गाड़ी नहीं रोकी तो सिपाही ने उस पर फायरिंग कर दी। बंदूक की गोली सीधे युवक के सिर में जा लगी, जिससे उसकी मौत हो गई। हालांकि, कार में मौजूद मैनेजर की महिला मित्र की तहरीर पर पुलिस ने आरोपी सिपाहियों के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया है। साथ ही उन्हें बर्खास्त भी कर दिया गया है। वहीं राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी मामले पर नाराजगी जताई है और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। यहां सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या वाकई यूपी में कानून-व्यवस्था सुधारने के नाम पर फर्जी एनकाउंटर हो रहे हैं? क्योंकि मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट तो कुछ इसी तरफ इशारा करती है। फर्जी एनकाउंटर के मामले में पिछले साल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि फर्जी एनकाउंटर की शिकायतों के मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस देश में सबसे आगे है। आयोग ने पिछले 12 साल का आंकड़ा जारी किया था, जिसमें देशभर से फर्जी एनकाउंटर की कुल 1241 शिकायतें आयोग के पास पहुंची थीं। इसमें अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ थे। हालांकि सरकार के आंकड़े कुछ और ही बयां करते हैं। इसी साल फरवरी में एक आधिकारिक आंकड़ा जारी किया गया था, जिसमें बताया गया कि योगी सरकार के सत्ता में आने के 10 महीने के अंदर पूरे राज्य में करीब 1100 पुलिस एनकाउंटर हुए। इनमें 34 अपराधी मारे गए, 265 घायल हुए और करीब 2,700 हिस्ट्री-शीटरों को गिरफ्तार किया गया। वहीं पुलिस द्वारा किए गए कई एनकाउंटर ऐसे भी थे, जिन्हें फर्जी करार दिया गया। अब सच क्या है और झूठ क्या है, यह या तो पुलिस को पता है या शायद सरकार को। लेकिन ऐसे मामलों को गंभीरता से लेना चाहिए और न्यायिक जांच जरूर करानी चाहिए।