उत्तर प्रदेश के लोनी क्षेत्र में बुजुर्ग मुस्लिम के साथ मारपीट से संबंधित वीडियो ट्वीट करने पर मुंबई हाई कोर्ट ने ट्रांजिट अग्रिम जमानत दी
यूपी पुलिस द्वारा माइक्रोब्लॉगिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर सहित और आठ अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के दो दिन बाद अय्यूब ने 18 जून को अदालत का दरवाजा खटखटाया था। भारतीय दंड सहिंता की धारा 153 ( दंगा भड़काना ), 153 ए ( धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना ) 295 ए ( धार्मिक विश्वासों का अपमान ), 505( सार्वजनिक शरारत ), 120 बी( आपराधिक साजिश ) के तहत अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
कानून रिव्यू/मुंबई
उत्तर प्रदेश के लोनी क्षेत्र में बुजुर्ग मुस्लिम के साथ मारपीट से संबंधित वीडियो ट्वीट करने पर यूपी पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर मामले में मुंबई हाई कोर्ट ने पत्रकार राणा अय्यूब को चार सप्ताह की ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी है। न्यायमूर्ति पीडी नाइक की एकल पीठ ने आदेश दिया कि राणा अय्यूब को चार सप्ताह की अवधि के लिए सुरक्षा दी जा सकती है ताकि वह उचित राहत के लिए उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटा सके। पीठ ने आदेश दिया कि चार सप्ताह की अवधि के दौरान गिरफ्तारी की स्थिति में आवेदक को 25,000 रूपये के निजी बॉन्ड भरने और इतनी ही राशि के एक या अधिक जमानतदार पेश करने की शर्त पर जमानत दी जाए। कोर्ट में पत्रकार राणा अय्यूब की ओर से पेश हुए मिहिर देसाई एडवोकेट ने पीठ को बताया कि अय्यूब विश्व स्तर पर प्रसिद्ध पत्रकार हैं और उन्होंने कई पुरस्कार जीते हैं। आगे तर्क दिया कि उन्होंने केवल मुस्लिम व्यक्ति पर हमले की घटना के बारे में समाचार रिपोर्टों के आधार पर एक ट्वीट किया था। एडवोकेट मिहिर देसाई ने कहा कि जब घटना के बारे में परस्पर विरोधी संस्करण सामने आए, तो अयूब ने ट्वीट को हटा दिया। उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि अय्यूब की हाल ही में रीढ़ की हड्डी की सर्जरी हुई है और इसलिए उन्हें यूपी में न्यायिक अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए 3-.4 सप्ताह का समय चाहिए। मिहिर देसाई एडवोकेट ने यह भी कहा कि प्राथमिकी में उल्लिखित सभी अपराध 3 साल से कम कारावास के साथ दंडनीय हैं। चूंकि आवेदक केवल अधिकार क्षेत्र की अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए सुरक्षा की मांग कर रहा है, इसलिए मैरिट के आधार पर आवेदन का न्यायिक निर्णय करना अनावश्यक है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा माइक्रोब्लॉगिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर सहित और आठ अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के दो दिन बाद अय्यूब ने 18 जून को अदालत का दरवाजा खटखटाया था। भारतीय दंड सहिंता की धारा 153 ( दंगा भड़काना ), 153 ए ( धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना ) 295 ए ( धार्मिक विश्वासों का अपमान ), 505( सार्वजनिक शरारत ), 120 बी( आपराधिक साजिश ) के तहत अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी। आरोप में कहा गया है कि ट्विटर इंक और ट्विटर कम्युनिकेशंस प्राइवेट लिमिटेड इन ट्वीट्स को हटाने में विफल रहा और कथित तौर पर वीडियो को वायरल होने दिया। 13 जून 2021 की शाम को एक वीडियों वायरल हुआ। इस वीडियों में सूफी अब्दुल समद सैफी नाम के एक मुस्लिम बुजुर्ग को कुछ लोग मार रहे है और मारपीट के दौरान ही उन लोगों ने बुजुर्ग की दाढ़ी काट दी। असहाय बुजुर्ग हाथ जोड़कर उन लोगों से माफी मांग रहा है लेकिन वीडियो में दिख रहे लोग लगातार बुजुर्ग को मार रहे हैं। इसके साथ ही वीडियो में उसे वंदे मातरम और जय श्री राम का नारा लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पुलिस ने दावा किया कि सांप्रदायिक अशांति पैदा करने के लिए यह वीडियो साझा किया गया। पुलिस का दावा है कि यह घटना ताबीज से जुड़े एक विवाद का नतीजा थी, जो बुजुर्ग व्यक्ति अब्दुल समद सैफी ने कुछ लोगों को बेचा था और उसने मामले में किसी भी सांप्रदायिक पहलू को खारिज कर दिया। प्राथमिकी में अन्य आरोपी समाचार वेबसाइट द वायर के साथ ऑल्ट न्यूज़ के सह.संस्थापक मोहम्मद जुबैर, कांग्रेस के राजनेता शमा मोहम्मद, सलमान निज़ामी और मस्कूर उस्मानी हैं।
क्या कहती है एफआईआर
प्राथमिकी में कहा गया है कि एक बुजुर्ग व्यक्ति का एक वीडियो कुछ लोगों द्वारा अपने सोशल मीडिया हैंडल पर प्रसारित किया गया था, जिसमें कुछ शरारती तत्वों को अब्दुल समद नाम के एक बुजुर्ग व्यक्ति की पिटाई करते हुए देखा जा सकता है और वे जबरन उसकी दाढ़ी काट रहे हैं और उन्होंने उसे जय श्री राम और वंदे मातरम का नारे लगाने के लिए मजबूर किया। प्राथमिकी में इसके अलावा आरोप लगाया गया है कि आरोपियों ने वीडियो की प्रामाणिकता की जांच किए बिना अपने ट्विटर हैंडल पर घटना के वीडियो को प्रसारित किया और उन्होंने वीडियो को एक सांप्रदायिक कोण दिया क्योंकि उनका उद्देश्य धार्मिक समुदायों के बीच सांप्रदायिक घृणा को भड़काना और सार्वजनिक व्यवस्था को अशांत करना चाहते थे। प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि वीडियो साझा करते समय व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत राय नहीं थे, बल्कि उन्हें स्पष्ट इरादे से साझा किया गया था और वीडियो को साझा करना एक आपराधिक साजिश का संकेत देता है और उनका इरादा हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक नफरत को भड़काना था। प्राथमिकी में इसके अलावा यह भी आरोप लगाया गया है कि गाजियाबाद पुलिस द्वारा दर्ज की गई प्रारंभिक जांच में यह पाया गया कि वीडियो में जो लोग बुजुर्ग को पीट रहे हैं, वे अब्दुल समद को जानते हैं और वे ऐसा इसलिए कर रहे थे क्योंकि बुजुर्ग ने कथित तौर पर उन्हें ताबीज बेच दिया था और इसके बाद यह दावा करते हुए कि जैसा कि अब्दुल ने वादा किया था इस ताबीज वह काम पूरा नहीं हुआ। इसलिए वे उस बुजुर्ग को पीट रहे थे। प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि पुलिस ने इस मामले से संबंधित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है और दो हिंदू और एक मुस्लिम समुदायों से संबंधित हैं। गाजियाबाद पुलिस ने इन सभी तथ्यों को स्पष्ट करते हुए एक प्रेस बयान जारी किया है। प्राथमिकी में आगे आरोप लगाया गया है कि यह स्पष्ट करने के बावजूद कि यह पक्षकारों के बीच एक व्यक्तिगत विवाद है और दो आरोपी हिंदू और एक आरोपी मुस्लिम समुदायों से है फिर भी वीडियो साझा करके सांप्रदायिक घृणा को भड़काते रहे और इस वजह से सांप्रदायिक एंगल के साथ फर्जी खबरें बड़े पैमाने पर फैलीं। एफआईआर में यह भी आरोप लगाया गया है कि फर्जी खबरों से उत्तर प्रदेश के लोगों और आरोपी व्यक्ति के मन में डर बैठ गया है और आरोपियों ने जानबूझकर फर्जी खबरें फैलाई हैं और चूंकि सोशल मीडिया पर उनकी जितनी प्रभावशाली उपस्थिति है, इसलिए उनकी उतनी ही जिम्मेदारी भी है। प्राथमिकी में अंत में कहा गया है कि यह पहली बार नहीं है कि इन लोगों सोशल मीडिया पर फर्जी और भ्रामक खबरें फैलाने की कोशिश की है और इन सभी ने वीडियो की सच्चाई की पुष्टि किए बिना वीडियो को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर साझा किया है।