भारतीय मूल की 51 वर्षीया वैज्ञानिक के 13 साल की उम्र में हुए यौन उत्पीडन से एक नई बहस शुरू
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
—————————यौन उत्पीडन की शिकायत करने के लिए तय समय सीमा को समाप्त किया जाना चाहिए। इस तरह की मांग भारत में उठनी शुरू हो गई है। अमूमन देखा जाता है कि सम और विषम परिस्थितियों में यौन उत्पीडन के शिकार लोग अपनी शिकायत नही कर पाते हैं और जब उन्हें अपनी बात कहने का मौका मिलता है तो यह कह कर शिकायत को अनसुना कर दिया जाता है कि अब शिकायत करने का समय निकल चुका है और सुनवाई नही हो सकती। कानून की इस पचडेबाजी में बेचारे पीडित को न्याय मिल ही नही पाता है। किंतु अब यह मांग उठ खडी हुई है कि यौन उत्पीडन के शिकार के लोग कभी भी अपनी शिकायत दर्ज कराएं और जिस पर सुनाई कर न्याय मिलना चाहिए।
भारतीय मूल की कनाडाई वैज्ञानिक ने केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से मुलाकात कर उनसे एक ऐसा संशोधित कानून लाने की मांग की है जिसके तहत बचपन में हुए यौन उत्पीड़न की शिकायत पीड़ित वर्षों बाद भी कर सके।
भारतीय मूल की इस 51 वर्षीया वैज्ञानिक का छह साल से 13 साल की उम्र के बीच सात साल तक उसके वृहद परिवार के एक सदस्य ने यौन उत्पीड़न किया था। वैज्ञानिक के अनुसार जब उन्होंने पिछले साल इस संबंध में एक शिकायत दर्ज कराने के लिए चेन्नई पुलिस से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि उनके हाथ बंधे हुए हैं और उन्हें नहीं पता कि वह कैसे उनकी मदद करें क्योंकि अपराध को घटित हुए बहुत समय बीत चुके हैं।
बच्चों के यौन उत्पीड़न से संबंधित सख्त कानून प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल ऑफेंसेज पॉक्सो अधिनियम 2012 में प्रभाव में आया था और इसके लागू होने से पहले के मामलों में यह कानून प्रभावी नहीं है।
महिला ने कहा कि पुराने मामले में शिकायत दर्ज कराने की अनुमति दिए जाने से बहुत से बच्चों के खिलाफ यौन अपराध रूकेंगे।
नीति और पुलिस का रवैया दोनों ऐसें हैं कि आप शिकायत दर्ज नहीं करा सकते हैं। बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले लोग बड़ी तादाद में ऐसे अपराधों को दुहराते है। उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह केवल व्यक्तिगत न्याय का मसला नहीं बल्कि बच्चों की सुरक्षा का भी मामला है।
वैज्ञानिक ने बताया कि मुझे डर है कि कई अन्य बच्चे इसी तरह की पीड़ा से गुजरे होंगे। हो सकता है, अगर मैं कुछ करती हूं तो मैं इसे रोकने में सफल हो सकूं।
मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि मेनका गांधी ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से इस मामले पर कोई भी नजरिया अपनाने से पहले मुद्दे के विभिन्न पहलुओं को देखने को कहा है।
कनाडा जाकर 1980 के दशक में बसने वाली महिला वैज्ञानिक के साथ मौजूद द्रमुक सांसद कनिमोई ने बताया कि वह बजट सत्र के दूसरे चरण में इस मसले को संसद में उठाएंगी।