विधि आयोग ने अपनी 279 रिपोर्ट में राजद्रोह से संबंधित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 ए को बनाए रखने का सुझाव दिया है। अपनी रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है कि इस कानून में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं, जिससे इस कानून के दुरुपयोग की संभावनाएं सीमित हो जाएं, परंतु इस कानून को पूरी तरह से खत्म करने का मतलब कि देश की मौजूदा भयावह हकीकत से आंखें मूंद लेना जैसा होगा। उल्लेखनीय है कि इस कानून के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका लंबित है, और सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश के द्वारा पिछले साल से राजद्रोह की धारा 124ए के तहत नए मुकदमें दर्ज करने पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न अदालतों के समक्ष धारा 124 ए के तहत विचाराधीन मुकदमों की सुनवाई पर भी रोक लगा रखी है। सुप्रीम कोर्ट के इस सख्त रुख के पश्चात यह धारा पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है।
लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि संविधान के तहत अभिव्यक्ति के अधिकार एवं विचार व्यक्त करने के अधिकार के साथ-साथ निर्वन्धन का प्रावधान भी है। इस समय देश में भले ही एंटी टेररिस्ट कानून (यूएपीए) और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (नेशनल सिक्योरिटी एक्ट) जैसे कानून लागू हैं, परंतु इसके बावजूद राजद्रोह कानून का महत्व और आवश्यकता कम नहीं हो जाती हैं। लाॅ कमीशन ने कहा कि राजद्रोह कानून की उपयोगिता यूएपीए और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (नेशनल सिक्योरिटी एक्ट) ऐसे जैसे कानूनों से अलग है। विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि राजद्रोह कानून की सजा को 7 साल तक की जा सकती है। मौजूदा समय में यह सजा उम्र कैद तक है।
विधि आयोग इस तर्क से सहमत नहीं था, कि यह कानून औपनिवेशिक काल में बनाया गया एक कानून है और इसीलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए। इस तर्क के जवाब में लाॅ कमीशन ने कहा कि अगर औपनिवेशिक काल के तर्क को स्वीकार कर लिया जाए, तो इस आधार पर तो पूरी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को ही खत्म कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि आईपीसी भी औपनिवेशिक काल का ही एक कानून है। विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि इस कानून को खत्म करने का मतलब भारत की मौजूदा भयावह जमीनी हकीकत से आंखें बंद कर लेने जैसा ही होगा।