दुर्भाग्य है कि आज तक शायद किसी बस मालिक ने अपने ड्राईवर और कन्डक्टर को यह हिदायत नहीं दी होगी कि यात्रियों के प्रति स्वच्छ मानसिकता और सौहार्द की भावना बनाकर रखे। शायद किसी बस मालिक ने अपने इन कर्मचारियों के खानपान और उनकी मानसिकता को शुद्ध करने का कभी प्रशिक्षण भी न चलाया हो।
नैतिकता और आध्यात्मिकता के शिखर पर रहने वाला आर्यावर्त तो अब रहा नहीं। विदेशी संस्कृतियों ने लगभग 1000 वर्ष से भी अधिक का पूरा एक युग इस धरती को भ्रष्ट करने में बिताया है। आज भारत की राजनीति, न्याय व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था, सरकारी शासनतंत्र और यहाँ तक कि आम नागरिक भ्रष्ट हो चुका है। अब तो ईमानदारी, निःस्वार्थ कर्म की भावना, सच्चा परोपकार आदि गिने-चुने लोगों में ही नजर आती है। विज्ञान ने मीडिया को इतना अधिक साधन सम्पन्न कर दिया है कि आज धरती के किसी कोने की घटना पलभर में हमारे पास पहुँच जाती है। हर प्रकार के अपराध और कीचड़ जैसे वक्तव्यों से अलंकृत राजनीति ही अखबारों के हर पन्ने पर नजर आती है। इन आपराधिक घटनाओं में से भी कुछ घटनाएँ तो इतना दिल दहला देती हैं कि मीडिया से जुड़े लोग भी अपनी कलम की सारी ताकत लगा देते हैं जिससे उन अपराध पीडि़तों का हर सम्भव कल्याण हो, उन्हें सांत्वना मिले तथा अपराधियों को दण्ड मिले।
पंजाब के मोंगा जिले में कुछ ही दिन पूर्व एक और घिनौनी हरकत हो गई। काले शीशों से अन्धकारमय हुई बस के अन्दर एक छोटी सी बच्ची और उसकी माँ के साथ बेशर्म हरकतें की गई। उन्हें चलती बस में से बाहर फेंका गया, बच्ची की जीवनलीला समाप्त हो गई और माँ गम्भीर रूप से घायल अवस्था में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष कर रही है। बस के अन्दर क्या हुआ इसका पूरा विवरण तो पुलिस छानबीन का विषय है परन्तु यह विशेष अपराध जिस जिस बस में घटित हुआ उसका स्वामित्व ऐसे परिवार के हाथ में है जो राजनीतिक रूप से सारे पंजाब प्रान्त का ही स्वामी है। मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री के रूप में उनके पुत्र श्री सुखबीर सिंह बादल पंजाब के राजनीतिक स्वामी होने के कारण पंजाब के नागरिकों के लिए पिता तुल्य समझे जाने चाहिए। बड़े बादल साहब यदि पंजाबियों के पिता हैं तो सुखबीर सब पंजाबी बच्चों का चाचा माना जाये। इस घटना के बाद क्या इस पिता या चाचा के किसी वक्तव्य से भी कहीं आसुंओं की दो बूंदें झलकती नजर आई? यदि वास्तव में हर प्रान्त का मुख्यमंत्री स्वयं को प्रान्तवासियों का पिता समझने लगे तो उसे प्रान्त के हर अपराध पर स्वयं ही अपने आपको इतना झकझोर लेना चाहिए कि जैसे मेरे ही घर में मेरी बच्ची का बलात्कार मेरे ही कर्मचारियों ने कर दिया। परन्तु अफसोस की भारत की राजनीति को इस प्रकार की दिशा देने वाला कहीं कोई एक भी विद्यालय या पाठशाला आज तक नहीं बनी जो भारत के राजनेताओं को नागरिकों के साथ पितातुल्य व्यवहार का प्रशिक्षण दे सके। पंजाबी संस्कृति को सिख गुरुओं की धरती के रूप में शहादत का लक्षण विरासत में मिला हुआ है। प्रजा के लिए अपना सब कुछ अग्नि में आहुत कर देना, फांसी को हंसते-हंसे स्वीकार करना, गर्म तवों पर बैठकर भी ईश्वर का स्मरण करना, गर्म तेल के कड़ाहों में भी एक ओंकार – सतनाम का उच्चारण करना गुरुओं की इस धरती ने हमें विरासत में दिया है।
इस अपराध के तार बादल परिवार तक पहुँचते हैं इसीलिए शायद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी अपराध पीडि़त परिवार के समर्थन में बड़े-बड़े आन्दोलन और बड़ी-बड़ी माँगें कर रहे हैं। क्या इन राजनीतिक दलों के संज्ञान में यह कोई पहला अपराध पंजाब की धरती पर हुआ है? आज तक घटित हर अपराध के समय ये राजनीतिक दल क्यों नहीं आन्दोलित हुए? भाजपा शायद इसलिए चुप है कि वे बादल परिवार के राजनीतिक साझेदार हैं। वैसे दिल्ली में भाजपा भी ऐसे अपराधों के विरुद्ध तुरन्त आन्दोलित हो जाती है। पहले शीला दीक्षित का त्यागपत्र मांगते थे और अब केजरीवाल पर निशाने साधे जाते हैं। वास्तव में यह राजनीतिक चरित्र किसी अपराध पीडि़त के साथ नहीं अपितु अपराध के नाम पर गर्म हुए समाज में अपनी रोटियाँ सेंकने के लिए सदैव तैयार रहते हैं।
मोंगा के इस अपराध के बाद राजनीतिक आन्दोलनों में अपराध पीडि़त परिवार के लिए एक करोड़ रुपये मुआवज़ा, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और अपराध में शामिल बस कम्पनी के परमिट रद्द कराने की माँग की जा रही है।
सरकारी सेवा से जुड़ा एक सामान्य नियम है कि नौकरी में रहते हुए कोई कर्मचारी या अधिकारी कोई निजी व्यवसाय नहीं कर सकता, विशेष रूप से वह व्यवसाय जिसका किसी प्रकार से भी कोई सम्बन्ध उसकी नौकरी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो। जैसे एक सरकारी अध्यापक अपने अतिरिक्त समय में कोचिंग का काम नहीं कर सकता। ऐसे नियमों का कारण यह होता है कि कोई व्यक्ति अपने सरकारी पद और अधिकारों का दुरुपयोग अपने व्यापारिक कार्यों के लिए न कर पाये। बादल परिवार यदि ट्रांसपोर्ट के व्यापार में लगा हुआ था तो राजनीतिक नैतिकता का जरा सा भी पालन उन्हें यह शिक्षा अवश्य देता कि प्रान्त के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें इस व्यापार से नाता तोड़ लेना चाहिए। परन्तु कोई भी व्यक्ति इतने बड़े साहस का काम शायद आज के कलियुग में तो कर ही नहीं सकता।
बसों के सम्बन्ध में जहाँ कहीं भी सरकारी परमिट या किसी प्रकार की भी सहायता की आवश्यकता पड़ती होगी तो स्वाभाविक रूप से इस कम्पनी को बेरोक-टोक हर सुविधा उपलब्ध हो जाती होगी, क्योंकि इनका स्वामित्व मुख्यमंत्री परिवार के हाथ में है।
दिल्ली में सभी वाहनों से खिड़कियों पर लगी काली स्क्रीन उतारने के आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिये। नैतिकता की दृष्टि से यह आदेश सारे देश के लिए लागू होने चाहिए थे। केन्द्र सरकार ने भी शायद सारे प्रान्तों को इस सम्बन्ध में कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किये। पंजाब के मुख्यमंत्री स्वयं ऐसी कोई कार्यवाही क्यों करते, क्योंकि उनकी तो अपने बसें ही काली स्क्रिनों से सुसज्जित होकर अधिक से अधिक सवारियों को आकर्षित करने में लगी हुई थीं। उन्हें अधिक धन कमाने के स्वार्थ में यह कभी आभास ही नहीं हुआ होगा कि इन्हीं काली स्क्रीन वाली बसों में उनकी अपनी बेटियों के साथ छेड़खानी, बलात्कार और हत्या जैसे घिनौने कुकर्म भी हो सकते हैं। उन्होंने शायद महिला नागरिकों को कभी अपनी बेटियों की तरह समझा भी है या नहीं इस प्रश्न का उत्तर भी वे स्वयं ही दे सकते हैं? परन्तु आज इस अपराध के बाद यदि पंजाबियों के पिता और चाचा राजनीति और प्रजा के प्रति श्रद्धा के साथ विचार करें तो उन्हें पंजाब को रामराज्य बनाने में देर नहीं लगेगी।
मर्यादा पुरुषोत्तम की न्याय व्यवस्था अपराध पीडि़त के संतोष और सांत्वना को अधिक महत्त्व देती थी। सच्चा न्याय होता भी वही है जिससे पीडि़त व्यक्ति यह महसूस करे कि एक अपराधी को छोड़कर सारा समाज और यहाँ तक कि राजा के रूप में सारे समाज का पिता उसके साथ है। राजनीतिक माँगें तो एक तरफ रख दी जायें परन्तु बादल परिवार को प्रान्त के प्रत्येक अपराध पीडि़त परिवार के साथ हर कदम पर खड़ा होना चाहिए। हर पीडि़त परिवार के लिए वह सब कुछ किया जाना चाहिए जो उसके अपराध की पीड़ा पर संतोषजनक मरहम का कार्य कर सके।
सरकार ने इस परिवार को 20 लाख रुपये मुआवज़े की घोषणा की है। परन्तु यहाँ इस अपराध में शामिल बस और कुकर्मी तो बादल परिवार के स्वामित्व में थे, फिर मुआवज़ा सरकारी खजाने से क्यों दिया जाये? बादल परिवार को अपने व्यक्तिगत स्तर से परिवार की माँग के अनुसार मुआवज़ा देना चाहिए। सरकार की तरफ से तो मुआवज़े की वह राशि प्रस्तुत की जाये जो सरकार एक सर्वमान्य योजना की तरह हर अपराध पीडि़त को दे सकती है।
बसों का परमिट रद्द करने की माँग भी राजनीतिक होने के साथ-साथ कानूनी भी है। जिस प्रकार यदि कोई व्यक्ति लगातार वाहन दुर्घटनायें करता है तो उसका लाईसेंस रद्द किया जा सकता है। उसी प्रकार यदि कोई वाहन आपराधिक कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता है तो उस वाहन का परमिट भी रद्द कर दिया जाना चाहिए। मोटर वाहन अधिनियम की धारा-72 में वाहन के परमिट दिये जाने की शर्तों में एक साधारण सी शर्त यह भी है कि यात्रियों की सुविधा का ध्यान रखना चाहिए। सुविधा का शब्द का अर्थ केवल बाहरी सफाई ही नहीं अपितु स्वच्छ मानसिकता के ड्राईवर और कन्डक्टर के सान्निध्य में यात्रा भी शामिल समझना चाहिए। परन्तु दुर्भाग्य है कि आज तक शायद किसी बस मालिक ने अपने ड्राईवर और कन्डक्टर को यह हिदायत नहीं दी होगी कि यात्रियों के प्रति स्वच्छ मानसिकता और सौहार्द की भावना बनाकर रखे। शायद किसी बस मालिक ने अपने इन कर्मचारियों के खानपान और उनकी मानसिकता को शुद्ध करने का कभी प्रशिक्षण भी न चलाया हो। बादल परिवार को पीडि़त परिवार की माँगे पूरी करने से राजनीतिक हानि नहीं अपितु उसका कई गुना लाभ ही होगा। लोगों के मन में उनकी यह छवि बनेगी कि वास्तव में आज पंजाब के मुख्यमंत्री हमारे पिता हैं और उपमुख्यमंत्री पंजाबी बच्चों के चाचा। यदि पंजाब इस पिता ने इस घटना में कुछ अनोखा कर दिखाया तो शायद देश के अन्य प्रान्तों के मुख्यमंत्रियों को भी प्रजा का पिता बनने की प्रेरणा का संचार हो सके। कब बनेंगे हमारे राजनेता हमारे देशवासियों के पिता और चाचा या ताऊ?