जो किसी रोग या अपंगता आदि के कारण सीधे खड़े होने में कठिनाई महसूस करते हों, ऐसे लोग शान्त बैठकर भी राष्ट्रीयगान के प्रति सम्मान व्यक्त कर सकते हैं। सरकार गम्भीरता के साथ इस विचारमंथन में लगी है कि राष्ट्रभक्ति की भावनाओं का उदय विद्यालय व्यवस्था से ही किया जाना चाहिए जिससे राष्ट्र से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु और घटना के प्रति जनता को संवेदनशील बनाया जा सके।
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में श्याम नारायण चैकसे नामक निर्णय में देश के सभी सिनेमाघरों को यह निर्देश जारी किया कि फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रीयगान ‘जन-गण-मन………’ को अवश्य बजायें और सिनेमाघर में उपस्थित सभी लोग सीधे खड़े रहकर राष्ट्रीयगान के प्रति सम्मान व्यक्त करें।
इस मामले को समझने के लिए सर्वप्रथम राष्ट्रीय सम्मान के निरादर को रोकने से सम्बन्धित कानून के प्रावधानों को समझना पड़ेगा। यह कानून 1971 में लागू किया गया था। इस कानून के नियम-2 में यह कहा गया है कि जो भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थल पर या जनता की दृष्टि में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज या संविधान को जलायेगा, फाड़ेगा या किसी अन्य प्रकार से उसका अपमान करेगा तो उसे अधिकतम तीन वर्ष तक की जेल या जुर्माना अथवा दोनों सजाएँ हो सकती हैं। इस प्रकार नियम-3 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीयगान के गाये जाने को रोकने का प्रयास करता है या ऐसी किसी सभा को बाधित करने का प्रयास करता है तो उसे भी अधिकतम तीन वर्ष तक की जेल या जुर्माना अथवा दोनों सजाएँ हो सकती हैं। यदि कोई व्यक्ति नियम-2 और नियम-3 में व्यक्त प्रावधानों का दूसरी बार उल्लंघन करते हुए पाया जाता है तो उस परिस्थिति में उसे एक वर्ष की न्यूनतम सजा अवश्य ही भोगनी होगी।
नियम-3 की अधिकतम व्याख्या यही समझ में आती है कि जब कोई व्यक्ति राष्ट्रीयगान के गाये जाने के बीच इस प्रकार की हरकत जानबूझकर करे जिससे अन्य लोगों के लिए राष्ट्रीयगान गाने में बाधा पहुँचे तो उस व्यक्ति को राष्ट्रगान का अपमान करने का दोषी माना जा सकता है। जैसे यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के चलते किसी भी प्रकार की नारेबाजी या शोरशराबा प्रारम्भ कर दे तो उसे राष्ट्रगान में बाधा पहुँचाने और उसके सम्मान को ठेस पहुँचाने का दोषी माना जा सकता है। इसके विपरीत राष्ट्रगान के चलते यदि कोई बच्चा शोर मचाने लगे और माता-पिता उसे चुप कराने का प्रयास करें तो उनकी यह हरकत राष्ट्रीयगान का अपमान नहीं समझी जानी चाहिए। क्योंकि इसमें जानबूझकर किया गया प्रयास दिखाई नहीं देता। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के चलते अपनी सीट से खड़ा नहीं होता तो उसे भी वर्तमान कानून के दृष्टिगत राष्ट्रीयगान में बाधा पहुँचाने का दोषी कैसे माना जा सकता है? क्योंकि उस बैठे हुए व्यक्ति ने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया जिससे वह अन्य लोगों को राष्ट्रीयगान में साथ देने में बाधा पहुँचा रहा हो। वैसे तो राष्ट्रभक्ति के कार्यों में भाग न लेना या उदासीनता दिखाना स्वतः ही किसी व्यक्ति के लिए समाज में एक घृणादायक वातावरण प्रस्तुत कर देगी। जब राष्ट्रीयगान के दौरान सब व्यक्ति खड़े होकर राष्ट्रगान गा रहे हों और एक व्यक्ति बैठा रहे तो सामाजिक दृष्टि से अपने आप ही उन्हें अपमान का शिकार होना पड़ेगा। परन्तु राष्ट्रवादी जनता को इसके लिए किसी प्रकार के आन्दोलन छेड़ने की आवश्यकता उचित प्रतीत नहीं होती।
सरकारों को शिक्षण संस्थाओं और सभी सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीयगान के सम्मान की भावनाओं का प्रचार-प्रसार करना चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51ए में भी राष्ट्रीयध्वज तथा राष्ट्रीयगान का सम्मान नागरिकों का मूल कत्र्तव्य घोषित है। इसमें कोई संदेह नहीं कि राष्ट्र के सर्वोच्च चिन्ह तथा सम्मान में गाये गये गान को पूरा आदर मिलना चाहिए। परन्तु किसी भी कार्य को अपराध ठहराना कानूनी प्रावधान के दायरे में ही आता है। राष्ट्रीय सम्मान का अनादर रोकने वाले उक्त कानून में ऐसा कुछ भी दिखाई नहीं देता जो राष्ट्रीयगान के चलते प्रत्येक व्यक्ति को सीधे खड़े होकर सम्मान व्यक्ति करने का निर्देश दे। वास्तव में ऐसा प्रावधान बनाया भी नहीं जा सकता था। यदि किसी विद्यालय में लाउड स्पीकर पर राष्ट्रीयगान चल रहा हो तो हम केवल यही आशा कर सकते हैं कि विद्यालय के प्रांगण में उपस्थित सभी छात्र-छात्राएँ पंक्तिबद्ध खड़े होकर राष्ट्रीयगान में भाग लें। परन्तु हम यह आशा नहीं कर सकते कि उस समय उस लाउड स्पीकर की आवाज यदि बाहर सड़क पर सुनाई दे रही हो तो सड़क पर भी सभी राह चलते रुककर, खड़े होकर राष्ट्रीयगान में भाग लें। विद्यालय में तो एक अनुशासन के कारण सभी छात्र-छात्राओं का पंक्तिबद्ध खड़ा होना सम्भव हो जाता है। परन्तु सिनेमाघर में इस प्रकार का कोई अनुशासन नहीं होता। विद्यालय में भी यदि कोई छात्र किसी कारण से परेशान हो तो उसे भी अध्यापक पंक्ति में खड़े होने के लिए बाध्य नहीं करते। इसी प्रकार सिनेमाघर में भी यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के प्रति उचित स्तर पर संवेदनशील नहीं है तो वह बेशक राष्ट्रीय गान को न गाये। वर्तमान प्रावधान भी उसे बाध्य नहीं करते। परन्तु यह निश्चित है कि कोई व्यक्ति राष्ट्रगान के गाये जाने में बाधा नहीं पहुंचा सकता। ऐसा करना निःसंदेह अपराध है।
सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्देशों के बाद देश के कई हिस्सों में कुछ विवाद पैदा हुए जब कोई व्यक्ति सिनेमाघर में राष्ट्रीयगान के चलते अपनी सीट से खड़ा नहीं हुआ। जनता में तू-तू, मैं-मैं हुई, मारपीट तक की भी नौबत पहुँची, पुलिस बुलाई गई तथा एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई। पुणे में घटित ऐसे ही एक विवाद में एक व्यक्ति की पिटाई कर दी गई। जबकि बाद में यह पता लगा कि उसकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण वह खड़े होने में तकलीफ महसूस कर रहा था। ऐसे विवादों के बाद सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पुनः उक्त निर्णय की समीक्षा का निवेदन प्रस्तुत हुआ। सर्वोच्च न्यायालय को अपने पूर्व निर्णय में संशोधन करते हुए यह स्पष्ट करना पड़ा कि सिनेमाघर में राष्ट्रगान के चलते किसी व्यक्ति को खड़े होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया है कि गृहमंत्रालय पहले ही उन लोगों के लिए यह व्यवस्था जारी कर चुका था जो किसी रोग या अपंगता आदि के कारण सीधे खड़े होने में कठिनाई महसूस करते हों, ऐसे लोग शान्त बैठकर भी राष्ट्रीयगान के प्रति सम्मान व्यक्त कर सकते हैं।
सरकार गम्भीरता के साथ इस विचारमंथन में लगी है कि राष्ट्रभक्ति की भावनाओं का उदय विद्यालय व्यवस्था से ही किया जाना चाहिए जिससे राष्ट्र से सम्बन्धित प्रत्येक वस्तु और घटना के प्रति जनता को संवेदनशील बनाया जा सके।
विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट