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राष्ट्रीय संकट की घड़ी में घातक वायरस से पीड़ित रोगियों का कर रहे है, व्यावसायिक रूप से शोषण

01.05.2020 By Editor

कोविड-19 के मरीजों का इलाज करने वाले निजी अस्पतालों में लागत तय करने की याचिका दायर

अप्रकाशित और भारी शुल्क में सर्जिकल उपचार को शामिल नहीं किया गया है बल्कि केवल मरीजों को अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं। कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए निजी और कॉर्पोरेट संस्थाओं को देश भर में लागत नियमों का मुद्दा तत्काल विचार का विषय है क्योंकि कई निजी अस्पताल राष्ट्रीय संकट की घड़ी में घातक वायरस से पीड़ित रोगियों का व्यावसायिक रूप से शोषण कर रहे हैं।

कानून रिव्यू/नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 के मरीजों का इलाज करने वाले निजी अस्पतालों में लागत तय करने की याचिका पर नोटिस जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी अस्पतालों के मामलों में बिना उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश एस0ए0 बोबडे और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या अस्पतालों में शुल्क की गणना के लिए ऊपरी सीमा लगाए जाने के लिए लागत नियमन की प्रार्थना की गई है? इस पर याचिकाकर्ता और वकील सचिन जैन ने तर्क दिया कि सभी संस्थाओं के लिए एक नियम होना चाहिए क्योंकि सरकार ने उन्हें रोगियों से लागत वसूलने के लिए उन्हें अधिकार दे दिए हैं। उन्होंने कहा कि निजी अस्पतालों में जो कोविड- समर्पित अस्पताल हैं,उनके पास इस बात की कोई योग्यता नहीं है कि वे अस्पताल कितना शुल्क ले सकते हैं। मरीजों से 10 से 12 लाख रुपये वसूले जा रहे हैं। सरकार ने उन्हें बिना शुल्क के शक्तियां दी हैं। मुख्य न्यायाधीश एस0 ए0 बोबडे ने कहा कि हम आपसे सहमत हैं लेकिन हम उनकी बात सुने बिना निजी अस्पतालों के संबंध में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। सरकार कैसे निर्णय ले सकती है, जैन ने आगे तर्क दिया कि अप्रकाशित और भारी शुल्क में सर्जिकल उपचार को शामिल नहीं किया गया है बल्कि केवल मरीजों को अस्पताल के बिस्तर उपलब्ध कराए गए हैं। याचिका में कहा गया कि कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए निजी और कॉर्पोरेट संस्थाओं को देश भर में लागत नियमों का मुद्दा तत्काल विचार का विषय है क्योंकि कई निजी अस्पताल राष्ट्रीय संकट की घड़ी में घातक वायरस से पीड़ित रोगियों का व्यावसायिक रूप से शोषण कर रहे हैं। याचिका में कोरोना के रोगियों को बढ़े हुए बिलों और प्रतिपूर्ति के लिए बीमा कंपनियों को इनकार करने की विभिन्न रिपोर्टों की ओर इशारा किया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि अगर अस्पतालों द्वारा इस तरह के बढ़ाए गए बिल बीमा उद्योग के लिए चिंता का विषय बन सकता है,तो एक आम आदमी की क्या दुर्दशा होगी? जिसके पास ना तो साधन हैं और प्रतिपूर्ति करने के लिए न ही बीमा कवर है, यदि उसके एक निजी अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है। याचिका में कहा गया कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग अभी भी किसी भी बीमा कवर का अधिकारी नहीं है और किसी भी सरकारी स्वास्थ्य योजना के तहत भी नहीं कवर नहीं हैं।

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