इकोनोमिक टाइम्स की पत्रकार व पति खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले को मद्रास हाईकोर्ट ने समाप्त किया
अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील को माना कि उनका मामला आईपीसी की धारा 499 के तीसरे अपवाद के तहत आता है। इसके अनुसार अगर कोई आलेख किसी सार्वजनिक प्रश्न पर नेक नीयत से लिखा गया है तो इसके खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला नहीं बनता। आलेख के कंटेंट पीआईएल से प्रेरित है जिसमें समुद्र तट पर बालू के गैरकानूनी खनन की बात की गई है।
कानून रिव्यू/ चैन्नई
मद्रास हाईकोर्ट ने को इकोनोमिक टाइम्स की पत्रकार संध्या रविशंकर और उनके पति जो इस अखबार में संपादक और शिकायत निवारण अधिकारी हैं, उनके खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले को समाप्त कर दिया है। यह मामला तमिलनाडु के समुद्र तट से बालू की तस्करी के बारे में 2015 में ईटी मैगजीन में एक आलेख के प्रकाशन से जुड़ा है। न्यायमूर्ति जीआर स्वामिनाथन की पीठ ने कहा कि मेरा स्पष्ट विचार है कि सिर्फ प्रेस की स्वतंत्रता का गुणगान करने का कोई मतलब नहीं है, अगर कोई उस समय बचाने के लिए नहीं आता जब इस अधिकार पर हमले होते हैं। अदालत ने कहा कि जब प्रेस की स्वतंत्रता, जो कि एक मौलिक अधिकार है, उस पर खतरा उत्पन्न होता है उच्च्तर न्यायपालिका को अपने निहित अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए। इस बारे में अदालत ने मद्रास राज्य बनाम वीजी राव 1952 सुप्रीम कोर्ट 196 मामले में आए फैसले पर भरोसा किया। याचिकाकर्ता संध्या रविशंकर और उनके पति ने हाईकोर्ट में अपील कर अपने खिलाफ आपराधिक मानहानि के मामले को निरस्त करने की मांग की। उनके खिलाफ यह मामला बालू का खनन करने वाली एक कंपनी द्वारा दायर किया था, जिस पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उनको सम्मन जारी किया था। यह कहा गया कि यह आलेख समुद्र तट पर बालू के गैरकानूनी खनन पर दायर जनहित याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट के नोटिस के बाद प्रकाशित हुआ। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि इस आलेख द्वारा उसके खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए हैं और इससे उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंची है। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि रविशंकर के पति ने एक न्यूज चौनल में नौकरी के लिए आवेदन किया था जिसमें उसकी बड़ी हिस्सेदारी है और अब उसने अपने पति को नौकरी नहीं मिलने के खिलाफ बदला लेने के लिए उसने यह रिपोर्ट प्रकाशित की है। अदालत ने कहा कि इस आलेख के कंटेंट पीआईएल से प्रेरित है जिसमें समुद्र तट पर बालू के गैरकानूनी खनन की बात की गई है। अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील को माना कि उनका मामला आईपीसी की धारा 499 के तीसरे अपवाद के तहत आता है। इसके अनुसार अगर कोई आलेख किसी सार्वजनिक प्रश्न पर नेक नीयत से लिखा गया है तो इसके खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला नहीं बनता। अदालत ने कहा कि तीसरे याचिकाकर्ता ने जो आलेख लिखा है उसमें ऐसा मुद्दा उठाया गया है जिससे आम लोगों का हित जुड़ा है। यह आलेख मद्रास हाईकोर्ट की प्रथम पीठ द्वारा जारी नोटिस के बाद लिखा गया है। जब अदालत ने किसी सार्वजनिक मामले से जुड़े एक मुकदमादार की शिकायत पर नोटिस जारी करना उचित समझा तो मीडिया को इस पर स्टोरी करने का निश्चित रूप से अधिकार भी है और इस वजह से यह आईपीसी की धारा 499 के अपवाद संख्या 3 के तहत आता है। अदालत ने कहा एक सिर्फ रिपोर्टिंग में कुछ त्रुटि के कारण इसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। इस मामले में न्यूयॉर्क टाइम्स बनाम सलिवन 376 यूएस 254 मामले में आए फैसले का हवाला भी दिया गया। इस मामले में आए फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने आर राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य 1994, में भी उद्धृत किया गया। रविशंकर ने अपने पति को फायदा पहुंचाने के लिए आलेख लिखा। इस आरोप की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसा कहना एक महिला के महत्व को नजरंदाज करना है। अदालत ने अपने निष्कर्ष में कहा कि ऐसा नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता नंबर 2 और 3 ने आलेख का प्रकाशन कर शिकायतकर्ता की मानहानि की है। यह शिकायत अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। मैंने यह पहले ही कहा है कि याचिकाकर्ता नंबर 1और 4 के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। संबंधित याचिका को बंद किया जाता है।