सेंटर फॉर अकाउंटबिलिटी एंड सिस्टेमिक चेंज ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर किया
महामारी के इस दौर में जेलों में लोगों के ज्यादा जमा होने से वहां कोविड-19 संक्रमण फैलने की आशंका ज्यादा हो जाती है और इससे लॉकडाउन का उद्देश्य पराजित हो जाता है। अर्जी में कहा गया है कि इसमें लॉकडाउन के उल्लंघन का सुझाव नहीं दिया जा रहा है बल्कि लॉकडाउन अपने आप में पवित्र नहीं है और इसमें कई तरह की ढील दी जा सकती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश ने राजस्थान के कोटा से छात्रों को लाने के लिए 250 बसें भेजी। इस तरह के उल्लंघन के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो इस स्थिति में पुलिस उन लोगों के खिलाफ कैसे एफआईआर दर्ज कर सकती है और कैसे गिरफ्तार कर सकती है? और दमन का रास्ता अपना सकती है जिन पर लॉकडाउन के उल्लंघन का आरोप है।
कानून रिव्यू/नई दिल्ली
कोविड-19 महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के उल्लंघन के मामूली मामलों को लेकर हजारों लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है और जिसकी वजह से पुलिस और न्यायिक व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव पड़ रहा है। इस मामले को लेकर पहले याचिका दायर की जा चुकी है, जिस पर यह हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया है। यह आवेदन सेंटर फॉर अकाउंटबिलिटी एंड सिस्टेमिक चेंज ने दायर किया है जिसके माध्यम से लॉकडाउन के दौरान लोगों के खिलाफ हजारों की संख्या में दर्ज हो रहे एफआईआर की ओर ध्यान दिलाया गया है। इसमें एडवोकेट सचिन मित्तल ने सीएएससी के अध्यक्ष डॉक्टर विक्रम सिंह की ओर से कहा है कि इससे अदालत और पुलिस पर अनावश्यक दबाव पड़ रहा है। इसमें कहा गया है कि जघन्य अपराधों में गिरफ्तारी की बात समझी जा सकती है पर मामूली अपराधों में इससे बचा जा सकता है। यह भी कहा गया है कि पहला मामूली अपराध है जहां सिर्फ शिकायत से काम चल जाता है जबकि दूसरा का वह है जिस पर एफआईआर के माध्यम से कार्रवाई होती है। आगे यह भी कहा गया है कि लॉकडाउन के उल्लंघन के नाम पर मामूली अपराध में न तो एफआईआर दर्ज हो और न ही किसी की गिरफ्तारी हो। इसमें कहा गया है कि ऐसे वाकये हुए हैं जब काफी ज्यादा बल प्रयोग किए गए हैं और कई बार तो इसकी वजह से लोगों की जानें भी गई हैं। जेल में लोगों में कोविड-19 का संक्रमण बढ़ने के खतरे हैं और इस बारे में स्वतः संज्ञान लेते हुए एक सिविल याचिका 1/2020 का जिक्र भी किया गया है जिसमें भी वही बातें कही गई हैं। इसलिए जेलों में लोगों के ज्यादा जमा होने से वहां कोविड-19 संक्रमण फैलने की आशंका ज्यादा हो जाती है और इससे लॉकडाउन का उद्देश्य पराजित हो जाता है। अर्जी में कहा गया है कि इसमें लॉकडाउन के उल्लंघन का सुझाव नहीं दिया जा रहा है बल्कि लॉकडाउन अपने आप में पवित्र नहीं है और इसमें कई तरह की ढील दी जा सकती है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश ने राजस्थान के कोटा से छात्रों को लाने के लिए 250 बसें भेजी। इस तरह के उल्लंघन के लिए राज्य सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है, तो इस स्थिति में पुलिस उन लोगों के खिलाफ कैसे एफआईआर दर्ज कर सकती है और कैसे गिरफ्तार कर सकती है? और दमन का रास्ता अपना सकती है जिन पर लॉकडाउन के उल्लंघन का आरोप है। उपरोक्त बातों को देखते हुए और पुलिस की ज्यादतियों को रोकने और पब्लिक अथॉरिटीज पर किसी भी तरह के बोझ को कम करने के लिए आईए अनुरोध करता है कि लॉकडाउन के उल्लंघन जैसे मामूली अपराधों के लिए परेशान करनेवाली कार्रवाई नहीं की जाए।