मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/कानून रिव्यू
दिल्ली और एनसीआर में दीपावली के बाद प्रदूषण न केवल चरम सीमा पर पहुंच गया बल्कि खतरे की सीमा को भी पार गया था। एनजीटी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लाख प्रयासों के बाद प्रदूषण का स्तर जितना कम होना चाहिए था वैसा नही हो पाया। वायु प्रदूषण में ईंट भट्ठों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। प्रदूषण विभाग की ओर से ईंट भट्ठों के मानक तय किए गए हैं। गौतमबुद्धनगर में ईंट भट्ठों की संख्या सैकडों में हैं जिनमें से ज्यादातर भट्ठे सरकारी मानकों की धज्जिया उठाते हुए हवा में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। जब कि कुछ ईंट भट्ठे सरकारी मानकों पर खरा उतरने का प्रयास कर रहे हैं। गौतमबुद्धनगर ईंट निर्माता समिति के अध्यक्ष ओमवीर सिंह भाटी एडवोकेट और महामंत्री रजनीकांत अग्रवाल से ईंट भट्ठा और प्रदूषण नियंत्रण मुद्दे पर ’’कानून रिव्यू’’ ने खास बातचीत की हैं आइए जानते हैं बातचीत के प्रमुख अंशः-
गौतमबुद्धनगर में 85 भट्ठों में से बन चुके हैं, 40 जिग जेग ड्राफ्ट भट्ठेःः ओमवीर सिंह भाटी
उत्तर प्रदेश ईंट निर्माता समिति के उपाध्यक्ष और गौतमबुद्धनगर ईंट निर्माता समिति के अध्यक्ष ओमवीर सिंह भाटी एडवोकेट ने ’’कानून रिव्यू’’ को बताया कि बढते हुए वायु प्रदूषण को देखते हुए अब जिग जेग भट्ठे ही चलेंगे। सरकार ने गत 30 जून 2018 तक सभी भट्ठों को जिग जेग ड्राफ्ट बनाए जाने के निर्देश दिए थे। इनमें से 40 भट्ठें हैं जो जिग जेग ड्राफ्ट में बदल गए हैं। उन्होंने बताया कि गौतमबुद्धनगर में कुल 85 भट्ठें हैं जो जिग जेग ड्राफ्ट में बनाए जाने हैं इनमें से 40 भट्टे जिग जेग बन गए हैं। दीपावली के बाद 12 नवंबर 2018 से प्रदूषण खतरनाक स्तर पर सीवियर चल रहा है। जिसमें भट्टों को बंद किए जाने का प्रावधान है। कई बार प्रदूषण का स्तर सीवियर प्लस ईमरजेंसी भी हो गया है ऐसे में दिल्ली और पूरे एनसीआर के भट्ठों को बंद किए जाने का आदेश है। प्रदूषण का स्तर पूअर और वैरी पुअर हो जाता है। उन्होंने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भट्टों पर पानी का छिडकाव किए जाने और कोयले तथा मिट्टी आदि को तिरपाल से ढकते हुए सावधानियां बरतने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने बताया कि एनसीआर क्षेत्र के अलावा उत्तर प्रदेश में ईंट भट्ठों को 1 फरवरी 2019 से चलाया जाएगा। इस संबंध मेंं लखनउ में हाल के दिनों में एक बैठक संपन्न हुई थी जिसमें संबंधित अधिकारियों और मुख्यमंत्री ने भी भाग लिया था। उन्होंने कहा कि गौतमबुद्धनगर ईंट निर्माता समिति के सभी पदाधिकारियों और सदस्यों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि हवा में जिस प्रकार जहर घुल रहा है प्राण वायु पर संकट की स्थिति आने में कोई कमी नही है इसलिए सरकार द्वारा तय मानकों का अक्षःरस पालन किया जाना चाहिए। स्वच्छ वातावरण भी स्वच्छ वायु मंडल से ही बनता है यह हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि वायु मंडल को दूषित न होने दें और वातावरण को भी स्वच्छ और स्वस्थ बनाए रखें।
संकट के दौर से गुजर रहा है लेबर आधारित भट्ठा उद्योगःरजनीकांत अग्रवाल
गौतमबुद्धनगर ईंट निर्माता समिति के जिला महामंत्री रजनीकांत अग्रवाल ने ’’कानून रिव्यू’’ को बताया कि दीपावली के बाद प्रदूषण का स्तर वाकई खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था। इस दौर में अब जिग जेग ड्राफ्ट के भट्ठे ही चलाए जाएंगे। जिले में काफी भट्ठे जिग जेग के हो गए हैं और बचे हुए भट्ठे जल्द ही जिग जेग ड्राफ्ट के बन जाएंगे। जिग जेग ड्राफ्ट के भट्ठों को ही एनवायरमेंट से क्लीयरेंस मिल पाता है। सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि अब भट्ठा उद्योग संकट के दौर से गुजर रहा है। प्रदूषण के बढते हुए स्तर से कई तरह की सांवधानियां बरती जाती है जिससे खर्चा ज्यादा आता है जब कि सरकार के स्तर से जो सुविधाएं दी जा रही थी, अभी नही मिल पा रही हैं। पहले कोयला कंट्रोल रेट पर मिल जाता था वहीं दूसरी ओर भट्ठा उद्योग लेबर आधारित उद्योग है। लेबर यदि आसानी से मिल भी जाए तो यह तय नही कि पूरा सेशन हो भी पाएगा या नही, भट्ठा मालिकों को यह अंदेशा बराबर बना रहता है। दूसरी ओर भट्ठे के लिए जमीन भी किसानों से किराए पर ली जाती है। सरकार से सिर्फ 4 फीट खुदाई करने की अनुमति मिलती है जिससे ईंटे पाथी जाती है। 4 फीट से नीचे कंक्रीट निकलना शुरू हो जाती है। रेड ब्रिक और फ्लाई ऐश ब्रिक की क्वालिटी के सवाल पर उन्होंने कहा कि रेड ब्रिक यानी मिट्टी से बनी और आग से तपी हुई लाल ईंटों की उम्र पूरे 100 साल होती है। जब कि फ्लाई ऐश ब्रिक यानी कोयले की राख से बनी और पानी की तराई से पकी ईंटों की उम्र सिर्फ 20 साल होती है। साथ ही इन फ्लाई ऐश ब्रिक से रेडिएशन भी निकलता है, जो स्वस्थ्य के लिए हानिकारक है।
क्या है भट्ठों के लिए जिग जैग नियम :-
इसका फायदा यह होता है कि धुआं पंखे से छनकर काले के बजाय सफेद और हलके नीले रंग में तब्दील होकर आसमान में जाएगा। इससे प्रदूषण की संभावना कम हो जाएगी। जो नियमों का पालन करेंगे, उन्हीं को संचालन की अनुमति दी जाएगी। रिन्युअल भी तभी मिलेगा जब नियम पूरे होंगे। सात से आठ लाख टन तक कोयला यदि कम जलेगा तो आसमान में धुआं भी कम जाएगा। यदि प्रदूषण रोकने के लिए धुआं भी फिल्टर होकर जाएगा तो वायु प्रदूषण से संबंधित रोगों से राहत मिलेगी। इससे हरियाली भी बचेगी।