- कानून रिव्यू/नई दिल्ली
——————————शादी तो किसी के भी साथ की जा सकती है मगर धर्म अपनी पहचान नही खोता है। कोई भी कानून शादी के बाद धर्म परिवर्तन की बात कहता नही है तो फिर क्यों यह सब किया रहा है। यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में की है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून इस अवधारणा को मंजूरी प्रदान नहीं करता कि अंतर.धार्मिक विवाह के बाद किसी महिला का धर्म उसके पति के धर्म में तब्दील हो जाता है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस कानूनी सवाल को देख रही थी कि यदि कोई पारसी महिला किसी दूसरे धर्म के पुरुष से शादी कर लेती है तो क्या उसकी धार्मिक पहचान खत्म हो जाती है। पीठ में न्यायमूर्ति एके सीकरी, एएम खान विलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण भी शामिल थे।
संविधान पीठ ने वलसाड पारसी ट्रस्ट की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम से कहा कि वह निर्देश लें और उसे 14 दिसंबर को अवगत कराएं कि क्या इसके द्वारा हिन्दू व्यक्ति से शादी करने वाली पारसी महिला गुलरोख एम गुप्ता को उसके माता.पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जा सकती है।
गुप्ता ने गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा 2010 में बरकरार रखे गए उस पारंपरिक कानून को चुनौती दी थी कि हिन्दू पुरुष से शादी करने वाली पारसी महिला पारसी समुदाय में अपनी धार्मिक पहचान खो देती है और इसलिए वह अपने पिता की मौत की स्थिति में टॉवर ऑफ साइलेंस जाने का अधिकार खो देती है।
संविधान पीठ ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो यह कहता हो कि महिला किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने के बाद अपनी धार्मिक पहचान खो देती है, इसके अतिरिक्त विशेष विवाह कानून है और अनुमति देता है कि दो व्यक्ति शादी कर सकते हैं तथा अपनी-अपनी धार्मिक पहचान बनाए रख सकते हैं। महिला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने पैरवी की।