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संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बलात्कार पीड़ित के मौलिक अधिकार का उल्लंघनः गुवाहाटी हाईकोर्ट

02.09.2020 By Editor

हाईकोर्ट ने 9 साल से घटाकर 7 साल कर दिया क्योंकि आरोपी के पांच बच्चे हैं और सजा की तारीख 12 जुलाई 2016 से जेल में है

कानून रिव्यू/गुवाहाटी

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बलात्कार पीड़ित के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी बलात्कार के 11 साल पुराने मामले में दोषी की ट्रायल कोर्ट की सजा को कायम रखते हुए की। न्यायमूर्ति रूमी कुमारी फुकन की कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान को अपराध के वास्तविक रूप में स्वीकार किया जा सकता है, जिसे रिकॉर्ड पर अन्य सबूतों का समर्थन है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अदालतें समझती हैं कि बलात्कार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीड़ित के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार पीड़िता को एक घायल गवाह की तुलना में ऊंचे आसन पर रखा जाता है। अभियोजन पक्ष के अनुसार 26 नवंबर 2009 की रात पीड़िता जो निजी अस्पताल से अपना काम खत्म करके अपने घर डिगबोई जा रही थी। इस दौरान आरोपी जबरन उसे एक स्विमिंग पूल के बाथरूम में ले गया जहां उसका बलात्कार किया। इस मामले में पुलिस ने 20 वर्षीय पीड़िता के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया। पुलिस ने आरोपी को घटना के एक दिन बाद गिरफ्तार कर लिया था। आरोपी नासिर उद्दीन अली को एक ट्रायल कोर्ट ने दोषी माना और 9 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। फैसले के खिलाफ आरोपी के वकील ने हाईकोर्ट में अपील दायर करते हुए दलील दी कि पीड़िता ने मुकदमे के दौरान अपना बयान बदला था और पीड़िता की एकमात्र गवाही के आधार पर ट्रायल कोर्ट द्वारा मेरे मुव्वकिल को दोषी ठहराए गया। वहीं राज्य की ओर से अपील करते हुए पीड़िता के वकील ने कहा कि केवल इसलिए कि पीड़िता की चिकित्सा जांच निर्णायक नहीं थी, उसके बयान को सबूत के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता है। यह भी स्थापित किया गया था कि अभियुक्त घटना की जगह पर मौजूद था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लंबी जिरह के दौरान पीड़िता के बयान में थोड़ा सा भी विरोधाभास नहीं दिखा जिससे संदेह हुआ हो। कोर्ट ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों में अभियोजन पक्ष के सबूत किसी भी संदेह के लिए कोई जगह नहीं देते हैं और उसके सबूत वास्तिवक गवाह के समान हैं। हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 376 के तहत ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा, लेकिन जेल की सजा को 9 साल से घटाकर 7 साल कर दिया क्योंकि आरोपी के पांच बच्चे हैं और सजा की तारीख 12 जुलाई 2016 से जेल में है।

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