आज संसद से लेकर सड़कों तक निर्भया काण्ड के दोषी का साक्षात्कार चर्चा का विषय बन गया है।दिल्ली पुलिस के कमिश्नर कहते हैं की जिस अधिकारी ने भी इस साक्षात्कार की इज़ाज़त दी वो उसने अपने विवेक से दी इसलिए हम उसको दोषी नहीं मान सकते। ग्रहमंत्री राजनाथ कहते की ये इज़ाज़त २०१३ में दी गयी थी इसलिए उनको इसकी जानकारी नहीं थी। तत्कालीन ग्रहमंत्री शिंदे से जब पूछा गया तो वो मिडिया पर भड़क गए और बोले की मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
कानून ने उस साक्षात्कार के प्रसारण पर रोक लगा दी परन्तु उसके बावजूद बी बी सी ने उसका प्रसारण विदेशों में कर दिया अब चाहे भारत में उसका प्रसारण न हो परन्तु सोशल मीडिया पर तो वो विडिओ उपलब्ध हो ही जायेगा। अब आप बेशक इसको कानून की अवमानना कहें और कानूनी कार्यवाही करते रहें परन्तु वो साक्षात्कार तो प्रसारित हो ही गया।
सवाल ये नहीं की साक्षात्कार का प्रसारण होना चाहिए या नहीं सवाल ये है की आखिर इस साक्षात्कार की आवश्यकता क्यों पड़ी क्या सिर्फ इसलिए क्यूंकि एक विदेशी पत्रकार इतना जघन्य अपराध करने वाले अपराधी की मानसिकता पर शोध करना चाहती थी ,नहीं बल्कि इसलिए भी क्यूंकि पूरी दुनिया में इस मानसिकता का अपराधी उनको सिर्फ भारत में दिखाई दिया और ये कोई आश्चर्य की बात नहीं क्यूंकि जिस देश के चंद सांसद भी ये ब्यान देते हों की महिलायें के कम कपड़ों के कारण और रात को देर तक बाहर घूमने से ऐसे अपराध होतें हैं
तो फिर एक अपराधी की मानसिकता की क्या बात करें। इस साक्षात्कार के प्रसारण पर बेशक लोगो की राय विभिन्न हो सकती है परन्तु इस साक्षात्कार से एक बात तो समझ में आती है की भारत में महिलाओं के प्रति बहुत से लोगो का जो नजरिया और मानसिकता है वो आज भी बहुत निचले स्तर पर है। आज हम महिलाओं की सुरक्षा के लिए चाहे जितने भी कड़े कानून बना ले या संसद में चाहे जितनी बहस करले परन्तु जब तक महिलाओं के प्रति हम लोगो का नजरिया और मानसिकता नहीं बदलेगी ऐसे हादसे होते रहेंगे।
अमित कुमार राणा आड्वोकेट