–विमल वधावन योगाचार्य, एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट
सरकार के सभी मंत्रालय यदि न्यायप्रियता, मानवतावाद और राष्ट्र के संरक्षण जैसे भावों के साथ संचालित किये जायें तो अदालतों से बहुत बड़ा बोझ कम हो सकता है। उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय का कीमती समय जनहित याचिकाओं पर सुनवाई में लगता है।
सरकार के सभी मंत्रालय यदि न्यायप्रियता, मानवतावाद और राष्ट्र के संरक्षण जैसे भावों के साथ संचालित किये जायें तो अदालतों से बहुत बड़ा बोझ कम हो सकता है। उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय का कीमती समय जनहित याचिकाओं पर सुनवाई में लगता है। अक्सर सर्वोच्च न्यायालय ऐसी जनहित याचिकाओं पर सरकार को चिन्तन के सुझाव देकर ही अपने कत्र्तव्यों की पूर्ति कर लेता है। परन्तु बात फिर वापिस सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों के पास ही पहुँच जाती है कि वे जनहित मामलों में अच्छी और दूरदर्शितापूर्ण नीतियों को तैयार करे और पूरी तन्मयता के साथ उन नीतियों का क्रियान्वयन करवाये।
विद्यालयों के बच्चों में शराब, तम्बाकू तथा नशे के अनेकों पदार्थों के सेवन की घटनाएँ लगातार बढ़ती चली जा रही हैं। इस विषय पर सभी विद्यालयों में लगातार प्रेरणाओं के संचार की आवश्यकता है। जो बच्चे कुसंगतियों के कारण इन बुराईयों का शिकार हो जाते हैं उन्हें विशेष रूप से मनोवैज्ञानिक विचार-विमर्श और मार्गदर्शन की आवश्यकता है। उन बच्चों को कभी-कभी एक अच्छी चिकित्सा की भी आवश्यकता होती है। परन्तु विडम्बना है कि केन्द्र सरकार ने आज तक इस विषय पर भी कोई राष्ट्रीय नीति नहीं बनाई। देश के बच्चे लगातार इस कुचक्र में फंसते चले जा रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री तीरथ सिंह ठाकुर तथा श्री डी.वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने नोबल पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी की एक याचिका पर केन्द्र सरकार को इस विषय पर एक राष्ट्रीय नीति बनाने का निर्देश दिया है। अदालत ने सरकार को एक देशव्यापी सर्वेक्षण करवाने का भी निर्देश दिया है जिससे यह पता लगाया जा सके कि कितने बच्चे नशे के कुचक्र में फंस चुके हैं। ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ नामक गैर सरकारी संगठन की यह याचिका वर्ष 2014 में प्रस्तुत की गई थी। याचिका में कहा गया है कि प्रत्येक जिले में नशामुक्ति के केन्द्र स्थापित किये जायें। शराब, तम्बाकू सहित हर प्रकार के नशों के विरुद्ध विद्यालय के पाठ्यक्रमों में ही जागृति अभियान की सामग्री शामिल की जाये। नशे के व्यापारियों आदि की पहुँच से विद्यालयों को दूर रखने के लिए विशेष पुलिस अभियान चलाये जायें।
इस याचिका में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के हवाले से कहा गया है कि विद्यालयों के लगभग 28 प्रतिशत से अधिक बच्चे तम्बाकू और 15 प्रतिशत से अधिक बच्चे शराब पीने की आदत प्रारम्भ कर देते हैं।
बचपन की अवस्था से ही बच्चों को यदि स्वास्थ्य के प्रति सचेत न किया जाये और इसी गति से उन्हें नशों के कुचक्र में जाने से न रोका गया तो अपराध दर को भी तेज गति से बढ़ने से कोई रोक नहीं सकेगा। भारत को यदि अपराधमुक्त बनाना है तो बच्चों को नशामुक्त बनाना ही होगा। नशों के विरुद्ध यह एक लड़ाई की अभी शुरुआत है।
21 जून को योग दिवस के रूप में घोषित करवाकर नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारतीय संस्कृति के एक सर्वकल्याणकारी सांस्कृतिक पक्ष को अन्तर्राष्ट्रीय जगत के समक्ष मान्यतापूर्वक प्रस्तुत करने में महान सफलता प्राप्त की है। विगत लगभग तीन दशकों से भारत के कई विश्वविद्यालयों में योग की शिक्षा उच्च स्तर पर दी जा रही है। अब तक लाखों लोगों को योग में स्नातक, पूर्व स्नातक और यहाँ तक कि डाक्टरेट की डिग्रियाँ भी दी जा चुकी हैं। परन्तु विडम्बना है कि किसी एक विषय को विधिवत उच्च शिक्षा का विषय बनाने के बावजूद सरकारों ने आज तक कभी यह ध्यान नहीं दिया कि इतनी विशाल संख्या के लिए रोजगार की क्या व्यवस्था है। योग की उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले सभी विद्वान् या तो केवल शिक्षा के ही क्षेत्र में सीमित रोजगार का लाभ उठा सकते हैं या व्यक्तिगत रूप में योग के अभ्यास का कार्य कर सकते हैं।
जब सरकार सारे संसार को यह सफलतापूर्वक समझा चुकी है कि योग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक संतुलन का एक सुन्दर और प्राकृतिक तरीका है तो अपने देश के बच्चों को प्रारम्भ से ही इस तीवन पद्धति के साथ क्यों नहीं जोड़ा जाता।
भाजपा नेता तथा अधिवक्ता श्री अश्विनी उपाध्याय ने एक जनहित याचिका के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय से प्रार्थना की है कि केन्द्र सरकार को विद्यालय स्तर पर योग की शिक्षा लागू करने के लिए निर्देश दिये जायें। याचिका में कहा गया है कि योग का सीधा सम्बन्ध स्वास्थ्य शिक्षा से है। यह एक प्रकार से जीवन जीने के अधिकार से सम्बन्धित है। सरकार का भी यह दायित्व है कि लोगों को स्वस्थ रखने के लिए हर सम्भव प्रयास करे। योग के द्वारा न केवल अनेकों रोगों का उपचार सम्भव है अपितु स्वस्थ अवस्था में योग करने वाले व्यक्ति को रोगों का सामना ही नहीं करना पड़ता।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया है। निकट भविष्य में यदि सरकार किसी राष्ट्रीय योग नीति की घोषणा कर दी तो सम्भव है कि विद्यालयों में योग शिक्षा का समावेश हो जाये जिससे योग विशेषज्ञों के लिए लाखों की संख्या में रोजगार के अवसर पैदा हो सकेंगे।
जब तक योग पर विधिवत एक राष्ट्रीय नीति की घोषणा नहीं होती तब तक निजी विद्यालयों तथा गैर-सरकारी संगठनों को योग के प्रचार में अपने-अपने स्तर पर प्रयास तेज करने चाहिए। आज के बच्चे जितने अधिक स्वस्थ और मानसिक संतुलन वाले होंगे समाज में समस्याएँ, विवाद और अपराध भी उतने ही कम होंगे।