सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में फैसला सुनाते हुए साफ किया कि बलात्कार और सहमति से बनाए गए यौन संबंध के बीच स्पष्ट अंतर है। मामला ये था कि महाराष्ट्र की एक नर्स ने अपने एक डॉक्टर मित्र पर शादी के वादे के साथ यौन संबंध बनाने और फिर उस वादे से मुकर जाने का आरोप लगाया था। वे दोनों कुछ समय तक लिव.इन पार्टनर थे और फिर डॉक्टर ने किसी और महिला से विवाह कर लिया। शीर्ष अदालत ने नर्स द्वारा एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए यह बात कही है।
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/कानून रिव्यू
नई दिल्ली
———————————————-लिव.इन रिलेशनशिप में रहीं और फिर पार्टनर को निशाना बना दिया। अक्सर ऐसी बात आए दिन देखने और सुनने के लिए मिलती रहती हैं। कई महिलाएं ऐसी होती हैं जो लिव इन में रहती हैं और जब उन उब जाता है अथवा फिर मनमुटाव हो जाता है तो पार्टनर पर रेप किए जाने की बात कहती हैं। कानूनन रेप के आरोपी के खिलाफ कठोर दंड का प्रावधान है मगर अब कोर्ट इस बात को मानने के लिए तैयार नही है कि लिव इन पार्टनर के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध रेप नही हो सकता। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में फैसला सुनाते हुए साफ कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति ए0के0 सीकरी और न्यायमूर्ति एस0 अब्दुल नजीर की बेंच ने यह साफ किया कि बलात्कार और सहमति से बनाए गए यौन संबंध के बीच स्पष्ट अंतर है। मामला ये था कि महाराष्ट्र की एक नर्स ने अपने एक डॉक्टर मित्र पर शादी के वादे के साथ यौन संबंध बनाने और फिर उस वादे से मुकर जाने का आरोप लगाया था। वे दोनों कुछ समय तक लिव.इन पार्टनर थे और फिर डॉक्टर ने किसी और महिला से विवाह कर लिया। शीर्ष अदालत ने नर्स द्वारा एक डॉक्टर के खिलाफ दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए यह बात कही है। हालांकि न्यायालय ने यह भी कहा कि इस बात पर बारीकी से गौर करना जरूरी है कि पुरुष की मंशा क्या है? क्या वह वास्तव में महिला से शादी करना चाहता था या सिर्फ अपनी यौन इच्छा को पूरा करने के लिए झूठा वादा किया। झूठी मंशा, झूठा वादा, ठगी और धोखाधड़ी है, लेकिन अगर किन्हीं परिस्थितियों के चलते कोई पुरुष लिव.इन के बावजूद महिला से शादी न कर पाए तो ऐसे में लिव.इन के भीतर सहमति से बना शारीरिक संबंध, लिव.इन टूटने पर बलात्कार नहीं हो जाता है। समाज बदल रहा है, रिश्तों का स्वरूप बदल रहा है, सेक्स नैतिकता की जकड़न से आजाद हो रहा है। अब शादी नहीं, नौकरी और अपने पैरों पर खड़े होना ज्यादा बड़ा मकसद है। शादी की उम्र बढ़ रही है और बिना शादी के शारीरिक संबंध कोई हौव्वा नहीं रह गया है। हालांकि इन सारे बदलावों के बीच भी जो एक चीज आज भी नहीं बदली, वो ये कि दुनिया आज भी मर्दों की ही है। संसार की 90 फीसदी से ज्यादा संपत्ति पर उनका कब्जा है, औरतें घरों से निकलकर नौकरी करने और अपने पैसे जरूर कमाने लगी है, लेकिन पितृसत्ता की जमीन को अपनी जगह से एकाध इंच से ज्यादा नहीं खिसका पाई हैं। ऐसे में चाहे शादी हो या लिव.इन, पुरुष के साथ हर संबंध में सबसे आखिरी पायदान पर औरत ही खड़ी है। बीते कुछ सालों में न्यायालय ने कई बार लिव.इन रिश्तों पर टिप्पणियां की हैं। फैसले सुनाए हैं, ये हुआ है क्योंकि लिव.इन से जुड़े मामलों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाना शुरू किया है। ये दरवाजा ज्यादातर औरतें ही खटखटा रही हैं क्योंकि चाहे विवाह हो या लिव.इन, कीमत ज्यादातर औरतें ही चुकाती हैं। हजारों सालों की परवरिश ही कुछ ऐसी है कि औरतें सेक्स के बदले में शादी का वादा चाहती हैं, वो शादी चाहती हैं क्योंकि उसमें सुरक्षा है, गारंटी है, सामाजिक स्वीकृति है, आजीवन निभाने का वादा है, औरतें वादा चाहती हैं। वहीं वादे पूरे हो नहीं रहे है, प्रेम के वादे तो कभी शादी ने भी पूरे नहीं किए,लेकिन शादी कम से कम सामाजिक सुरक्षा का वादा पूरा करती थी। लिव.इन ने उस वादे को भी छीन लिया है, अब पुरुषों के लिए बहुत आसान हो गया है वादा करना और उस वादे से मुकर जाना क्योंकि कोई जिम्मेदारी नहीं है,कोई गारंटी नहीं है। न्यायालय ऐसे रिश्तों को मान्यता देने से लेकर लिव इन में स्त्रियों के अधिकार तक तय कर रहा है,लेकिन उससे समस्या सुलझती दिखाई दे नहीं रही। स्त्री.पुरुष संबंधों के बीच सदियों से चला आ रहा यह असंतुलन सिर्फ एक ही तरीके से टूट सकता है और वो है,उनका ज्यादा से ज्यादा आत्मनिर्भर होना। फिर अगर शादी का वादा करके भी कोई मर्द मुकर जाए तो स्त्री ये नहीं सोचेगी कि उनके बीच बना संबंध बलात्कार था और न्याय के लिए उसे कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए, वो सोचेगी कि मर्द भरोसे के लायक नहीं था। उसने पहचानने में गलती की और जो भरोसे के लायक नहीं, वो शादी के लायक कैसे हो सकता है? स्त्रियां पुरुष से, कोर्ट से, शादी की संस्था से संरक्षण मांग रही हैं, अधिकार मांग रही हैं क्योंकि वो खुद ही खुद को ये सब देने के लायक नहीं हैं। ज़रूरत दरअसल इस बात की है कि किसी और से मांगने के बजाय औरतें ये सारी चीजें खुद से मांगें और खुद को देने के लायक बनें।् मर्द उनके लायक नहीं,औरतें खुद अपने लायक बनें।