
इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आजम खान की जमानत याचिका को खारिज किया


एफ.आई.आर. वर्ष 2018 में 1,300 इंजीनियरों, क्लर्कों और स्टेनोग्राफर की फर्जी भर्ती के संबंध में विशेष जांच दल यूपी लखनऊ द्वारा की गई प्रारंभिक जांच के आधार पर कुछ व्यक्तियों को अनिश्चित काल के लिए अन्यायपूर्ण समर्थन देने, जालसाजी के कारण अपराध के साक्ष्य को गायब करने और सबूत के दस्तावेजों को नष्ट करने के लिए दर्ज की गई थी

कानून रिव्यू/इलाहाबाद
समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान की अग्रिम जमानत याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने आजम खान की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आजम खान पहले से ही जेल में बंद हैं और उनके खिलाफ पहले ही बी.वारंट जारी किया जा चुका है। यह भी स्पष्ट है कि सक्षम न्यायालय द्वारा दिनांक 18-11-2020 को जारी किया गया बी.वारंट जिला जेल सीतपौर के जेल अधिकारियों द्वारा प्राप्त किया जा चुका है, जिन्होंने 19-11-2020 को आवेदक को इसकी सूचना दी थी। कोर्ट के समक्ष मामला आजम खान के खिलाफ 25 अप्रैल 2018 को इस मामले में लखनऊ के एसआईटी थाने में आईपीसी की धारा 409,420,120 बी 201 और आईपीसी एक्ट की धारा 13(1)(डी) के तहत एफआईआर दर्ज किया गया था। गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। कोर्ट ने कहा कि यह एक स्वीकृत तथ्य है कि एफ.आई.आर. वर्ष 2018 में 1,300 इंजीनियरों, क्लर्कों और स्टेनोग्राफर की फर्जी भर्ती के संबंध में विशेष जांच दल यूपी लखनऊ द्वारा की गई प्रारंभिक जांच के आधार पर कुछ व्यक्तियों को अनिश्चित काल के लिए अन्यायपूर्ण समर्थन देने, जालसाजी के कारण अपराध के साक्ष्य को गायब करने और सबूत के दस्तावेजों को नष्ट करने के लिए दर्ज किया गया था। वही ए.जी.ए. ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत वर्तमान जमानत आवेदन को सुनवाई योग्य रखने के संबंध में इस आधार पर आपत्ति उठाई कि जिला पुलिस अधीक्षक, रामपुर की रिपोर्ट के अनुसार आवेदक को एक मामले के संबंध में जिला जेलए सीतापुर में पहले ही कस्टडी में लिया जा चुका है। यह भी तर्क दिया गया कि आवेदक के खिलाफ जारी बी.वारंट जिला जेल, सीतापुर के जेल अधिकारियों को प्राप्त हो चुका है और आवेदक को भी विधिवत सूचित किया गया है। जिसका अर्थ है कि आवेदक वर्तमान मामले में कस्टडी में है। ए.जी.ए. ने आगे प्रस्तुत किया गया कि वर्तमान अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है और अधिक से अधिक आवेदक सीआरपीसी की धारा 439 के तहत आवेदन कर सकता है। वहीं आजम खान के वकील ने तर्क दिया कि केवल बी.वारंट की तामील का मतलब यह नहीं है कि आवेदक को वर्तमान मामले में कस्टडी में ले लिया गया है और इसलिए वर्तमान जमानत आवेदन सुनवाई योग्य है। कोर्ट का आदेश अदालत ने पाया कि वर्तमान एफआईआर के संबंध में सीआरपीसी की धारा 267(1) के प्रावधानों के तहत सक्षम अदालत द्वारा बी.वारंट जारी करने के बाद आवेदक को कस्टडी में माना जाता है। इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उपरोक्त के मद्देनजर ए.जी.ए. द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति सही है। इसलिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत वर्तमान अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।