इतिहासकार इरफान हबीब के एमेरिट्स प्रोफेसर का रुतबा वापस लेने को तूल दिए जाने पर नई बहस शुरू
मौहम्मद इल्यास-’’दनकौरी’’/नई दिल्ली
सीएए, एनआरसी और एनपीआर जैसे मुद्दों पर पैदा हुई मोदी सरकार के लिए मुसीबत कम होने का नाम ले रही है। हलांकि दो सप्ताह पहले उग्र हुआ देशव्यापी प्रदर्शन थोडा सुस्त तो पडने लगा है मगर अब यह विरोध सडकों की बजाय बुद्धिजीवी तबके के अंदर घर करता जा रहा है। यही करण है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंटरनेट सेवा बंद किए जाने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई। खास बात ये है कि हाईकोर्ट ने इंटरनेट सेवा बंद किए जाने के मामले का स्वतः संज्ञान लिया है। कानून के जानकारों द्वारा अब भी विरोध उतना ही किया जा रहा है। देश मंें बार एसोसिएशन इस मुद्दे पर विरोध के लिए आगे रही हैं। हाल में ही मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर जमकर विरोध किया है। उधर भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के खराब स्वास्थ्य को लेकर उनके डाॅक्टर के ट्वीट से एक नई बहस शुरू हो गई है। उन्होंने कहा कि जल्द उचित इलाज नहीं मिलने पर चंद्रशेखर की हृदय गति भी रुक सकती है। इससे चंद्रशेखर को जल्द रिहा किए जाने और सही इलाज का नैतिक दवाब सरकार पर बढ गया है। वहीं देश के नामचीन इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब के अवार्ड वापसी का मामला खासा तूल पकडने लगा है। इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने फैज मुद्दे पर बयान देते हुए यहां तक कह दिया है कि ऋग्वेद में भी कहा गया है कि ईश्वर को नहीं मालूम कि ईश्वर से पहले क्या था? ऋग्वेद भी हिंदुइज्म के खिलाफ है। उस पर भी सरकार को जांच बिठा देनी चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों का सीएए के खिलाफ प्रदर्शन
मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर देश में लाने के प्रस्ताव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में 250 से अधिक अधिवक्ताओं ने भाग लिया, जिसमें उच्च न्यायालय परिसर से मानव श्रृंखला बनाना और संविधान की प्रस्तावना को पढ़ना शामिल था। वरिष्ठ अधिवक्ता नलिनी चिदंबरम, वैगाई, कन्नदासन, रामलिंगम आदि भी विरोध प्रदर्शन का हिस्सा रहे। वकीलों ने तिरंगा झंडा हाथ में लेकर प्रदर्शन किया। इस दौरान उनके हाथों में भारतीय संविधान की रक्षा,आई एम एन इंडियन सिटिजन, ए सोवरेन सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक इत्यादि नारों की तख्तियां थीं। प्रदर्शनकारी वकीलों ने कहा कि सीएए धर्म के आधार पर लोगों को अलग और अपमानित करता है और उस कानून को किसी भी व्यक्ति को हीन नहीं मानना चाहिए। विरोध की आवश्यकता के बारे में टिप्पणी करते हुए मद्रास हाईकोर्ट के अधिवक्ता एलिजाबेथ शेषाद्री ने कहा कि असम एनआरसी प्रक्रिया ने हमें दिखाया है कि कैसे गरीब लोग सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए और उन्हें मौद्रिक नुकसान हुआ। संविधान गरीब आदमी की बीमा पॉलिसी है। इसे संरक्षित किया जाना चाहिए। इस देश में गरीबों के लिए वकील आवाज़ उठाते रहे हैं। दो हफ्ते पहले, मद्रास हाईकोर्ट ने सीएए.एनआरसी के खिलाफ विपक्षी पार्टी द्वारा प्रस्तावित एक रैली को रोकने के लिए मना कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र की रीढ़ है।
नागरिकता अधिनियम को चुनौती के लिए एक नई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स द्वारा अपने पदाधिकारियों के साथ नागरिकता संशोधन अधिनियमए 2019 के खिलाफ एक ताजा याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। सीएए को असंवैधानिक करार दिए जाने की प्रार्थना करने के अलावा याचिकाकर्ता नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 3 (1) को भी मनमाना मानते हैं। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने सुप्रीम कोर्ट से इस याचिका के लंबित रहने के दौरान केंद्र सरकार को भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर को तैयार करने से रोकने का निर्देश देने का भी आग्रह किया है। सीएए के संबंध में याचिकाकर्ताओं का दावा है कि नागरिकता का दर्जा पाने के लिए एक आधार के रूप में धर्म भारतीय संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करने वाला और अपने धर्म के साथ.साथ जन्म स्थान के आधार पर मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाला है। याचिकाकर्ता कहते हैं कि सीएए ने धार्मिक उत्पीड़न के बहाने भारत में प्रवेश करने वालों को दो श्रेणियों निर्दिष्ट देशों के प्रवासी और अन्य पड़ोसी देशों से, में वर्गीकृत किया है, लेकिन उन लोगों के लिए जिम्मेदारी नहीं ली है, जो बहिष्कृत देशों से उसके शिकार हो सकते हैं। यह तर्क दिया गया है कि वर्गीकरण में अधिनियम की चित्रित वस्तु के साथ कोई सांठगांठ नहीं है और अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुसलमानों के अल्पसंख्यक संप्रदाय भी उसी उत्पीड़न के शिकार हैं। इस बात को ध्यान में रखे बिना इसे नासमझी और नाटकीय रूप से तैयार किया गया है। अधिनियम की यह भी आलोचना की गई है कि सीमा पार करने वाले व्यक्ति को धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होने का पता लगाने के लिए कोई पैरामीटर प्रदान नहीं किया गया है। हालांकि इन दलीलों के साथ ही 60 याचिकाओं का एक बड़ा समूह सुप्रीम कोर्ट में है जिस पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही केंद्र को नोटिस जारी कर चुका है। इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि नागरिकता अधिनियमए 1955 की धारा 3(1) भी असंवैधानिक है। यह प्रावधान उनकी जन्म तिथि,जन्म के आधार पर नागरिकता के आधार पर भारत की नागरिकता प्रदान करने वाले लोगों के लिए मापदंडों को निर्धारित करता है और उन्हें 3 श्रेणियों में विभाजित करता है। 26 जनवरी 1950 और 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में पैदा हुए बच्चे जिनका जन्म 1 जुलाईए 1987 और 3 दिसंबरए 2004 के बाद हुआ है तथा जिनका जन्म 3 दिसंबर 2004 के बाद हुआ है याचिकाकर्ताओं के अनुसार बच्चों को ऐसी श्रेणियों में वर्गीकृत करना और उनमें से कुछ को अलग.अलग श्रेणियों में अलग.अलग शर्तों को लागू करने के आधार पर राज्यविहीन करना मनमाना है। यह तर्क दिया गया है कि जबकि श्रेणी ए को नागरिकता प्राप्त करने के लिए कोई शर्तों की आवश्यकता नहीं होती है। बी और सी पर लगाई गई शर्तें जन्म तिथि के अनुसार बच्चों को अलग.अलग उपचार के लिए समान आधार पर बच्चों की निश्चित श्रेणी प्रदान करती है और जन्म तिथि के आधार पर वर्गीकरण स्पष्ट रूप से मनमाना है। यह प्रस्तुत किया गया है कि शर्तों को पूरा करने में विफल रहने पर, श्रेणी बी के तहत आने वाले बच्चों को भारतीय नागरिकता नहीं दी जाएगी। लेकिन नागरिकता अधिनियम की धारा 3(2) के तहत अवैध प्रवासी भी नहीं माना जाएगा और इसी तरह श्रेणी सी के तहत शर्तों को पूरा करने में विफल रहने वालों को भी भारतीय नागरिकता नहीं दी जाएगी। इसका उल्लेख करते हुए याचिकाकर्ता द्वारा बच्चे के अधिकार को प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया है कि बहिष्कृत बच्चों के उपचार को सांविधिक के रूप में देखा जाना भी बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन का उल्लंघन है जिस पर 1990 से भारत हस्ताक्षरकर्ता है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि सीएए साथ ही नागरिकता अधिनियम की धारा 3(1) अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अधिकारों, बाल अधिकार 1990 और संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अधिकारों के खिलाफ जाती है। यह भी कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 50(ग) अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों के तहत अपने दायित्वों का सम्मान करने के लिए राज्य पर एक कर्तव्य लगाता है और अनुच्छेद 37 का अनुपालन करने में केंद्र अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा है। अनुच्छेद 51 (सी) के साथ पढ़ने पर यह बताता है कि संविधान के भाग प्ट में निहित सिद्धांत देश के शासन में मौलिक हैं और कानून बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। 1 जुलाई 1987 के बाद भारत में पैदा हुए बच्चों को मनमाने तरीके से राष्ट्रीयता से वंचित करने के लिए 1955 के नागरिकता अधिनियम के लागू प्रावधानों का संचयी प्रभाव है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में इंटरनेट बंद के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में इंटरनेट बंद के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका दर्ज की है। सीएए के विरोध प्रदर्शनों पर धारा 144 सीआरपीसी के तहत जारी राज्यव्यापी प्रतिबंधात्मक आदेशों के बाद यूपी के कई हिस्सों में इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया। मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने 20 दिसंबर को रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह राज्य प्राधिकरणों द्वारा इंटरनेट सेवाओं के बंद होने के संदर्भ के नाम से एक जनहित याचिका दायर करे। मुख्य न्यायाधीश से मुलाकात इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता रवि किरण जैन, अनुराग खन्ना और राकेश पांडे के नेतृत्व में वकीलों के एक समूह ने मुख्य न्यायाधीश के समक्ष इंटरनेट बंद होने के कारण वकीलों के साथ.साथ जनता की समस्याओं का उल्लेख किया था। वकीलों के इस समूह ने मुख्य न्यायाधीश को बताया कि इंटरनेट शट डाउन ने न्यायिक प्रणाली को प्रभावित किया है। वकीलों ने बताया कि केस सूची का प्रकाशन और वितरण आदेशों की अपलोडिंग और डाउनलोड प्रक्रिया और कई अन्य गतिविधियां इंटरनेट सेवाओं पर निर्भर हैं। इंटरनेट बंद होने से न्यायिक प्रणाली ठप्प हो गई है। वकीलों ने आगे बताया कि न्यायिक प्रणाली के अलावा बैंकिंग गतिविधियां, प्रशासनिक गतिविधियां, शैक्षिक गतिविधियां, चिकित्सा गतिविधियां, रेलवे द्वारा आवागमन, एयरवेज इंटरनेट बंद होने के कारण बाधित हो गए। वकीलों ने कहा कि वर्तमान युग में निरंतर इंटरनेट सेवाओं का अधिकार जीने का अधिकार का विस्तार है और इसमें बाधा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इस पर 6 जनवरी को विचार किया जाएगा। इस मामले में यूपी सरकार को नोटिस दिया गया है।
भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर जल्द एम्स में नही भर्ती कराए गए तो जा सकती है जान
भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद के डॉक्टर हरजित सिंह भट्टी ने ट्वीट कर कहा कि आजाद की इस बीमारी का इलाज पिछले एक साल से जारी है, जिसमें उन्हें हर सप्ताह दो बार फ्लेबोटॉमी एक विशेष प्रकार की जांच की जरूरत होती है। दरियागंज में हिंसा के आरोप में जेल में बंद भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हंै। चंद्रशेखर के डॉक्टर हरजित सिंह भट्टी ने ट्वीट करके यह जानकारी दी है। इससे सरकार पर रिहा किए जाने और बेहतर इलाज दिलाए जाने का एक नैतिक दवाब बढ गया है। चंद्रशेखर को दरियागंज में हुई हिंसा मामले में 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेजा गया था। डाॅक्टर भट्टी ने शुक्रवार रात को गृह मंत्री अमित शाह से चंद्रशेखर को एम्स में भर्ती कराने की अनुमति देने की मांग की है। उन्होंने कहा कि जल्द उचित इलाज नहीं मिलने पर चंद्रशेखर की हृदय गति भी रुक सकती है। अपनी ट्वीट में उन्होंने कहा कि आजाद ऐसी बीमारी से पीड़ित हैं, जिसमें एम्स के हेमेटोलॉजी विभाग में सप्ताह में 2 बार फ्लेबोटॉमी की जांच करानी पड़ती है। यहां उनका पिछले एक साल से इलाज जारी है, अगर यह नहीं होता है तो इस परिस्थिति में उनका खून गाढ़ा हो सकता है। जिस कारण उन्हें हृदय गति रुकने या आधात की समस्या हो सकती है। उन्होंने अपने ट्वीट में साथ ही कहा किमुझे बताया गया कि चंद्रशेखर भाई ने तिहाड़ जेल में दिल्ली पुलिस को लगातार अपनी इस समस्या के बारे में बतायाए लेकिन इसके बावजूद पुलिस अधिकारी उन्हें एम्स जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं।
ऋग्वेद पर सरकार को कमीशन बैठा देना चाहिएः प्रोफेसर इरफान हबीब
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर इरफान हबीब ने फैज मुद्दे पर बयान दिया है कि कविता अब कविता भी नहीं लिख सकते, सरकार को चाहिए कि ऋग्वेद पर भी कमीशन बैठा दे। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में प्रोफेसर एमिरेट्स इरफान हबीब ने केरल के कुन्नूर विश्वविद्यालय की घटना सहित हाल के तमाम मुद्दों पर अपनी राय रखी है। इरफान हबीब ने बताया कि हिस्ट्री कांग्रेस कार्यक्रम में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को हमने नहीं बुलाया था। उन्होंने बताया कि कुन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति ने चांसलर होने के नाते इतिहासकारों का वेलकम करने के लिए राज्यपाल को बुलाया था और राज्यपाल महोदय ने अपना अभिभाषण आखिर में रखवाया था। प्रो0 इरफान हबीब ने आरोप लगाया कि हिस्ट्री कांग्रेस के आयोजकों को इस दौरान रोका गया, जो इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस कायदे के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि हिस्ट्री कांग्रेस के आयोजक हम हैं तो कार्यक्रम भी हमारे कायदों से ही होना था। उन्होंने कहा कि गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान को इतिहासकारों का स्वागत करना था लेकिन उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून की चर्चा छेड़ दी और वो महात्मा गांधी, मौलाना आजाद और मुसलमानों के बारे में गलत बयानबाजी करने लगे। हबीब ने कहा कि जब वो ( आरिफ मोहम्मद खान) इसे लेकर बात करने लगे तब मैंने कोशिश की कि इन मुद्दों को छोड़कर इतिहासकारों का स्वागत करें। उन्होंने बताया कि पुलिसवालों ने हमें रोका लेकिन मैं मंच पर गया और कहा कि जो बातें मौलाना आजाद के जरिए कह रहे हैं वो गोडसे को कोट कर के कहें। इस दौरान राज्यपाल के साथ मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने हिस्ट्री कांग्रेस के चार आयोजकों को भी हिरासत में ले लिया था। इस वाकये के बाद से इतिहासकार इरफान हबीब को मिले एमेरिट्स प्रोफेसर का रुतबा वापस लेने की मांग उठ रही है। अलीगढ़ में बीजेपी सांसद सतीश गौतम और हिंदूवादी संगठनों ने केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र लिखा है। इस पर प्रोफेसर इरफान हबीब ने कहा कि वो प्रोफेसर एमिरेट्स ही नहीं पद्मभूषण का भी अवार्ड वापस सकते हैं। उन्होंने कहा कि अगर मैं बहुत ही बुरा लग रहा हूं तो प्रोफेसर एमेरिट्स और पद्मभूषण वापस ले लें। वहीं आईआईटी कानपुर में फैज अहमद फैज की कविता हम देखेंगें को लेकर उठे सवाल पर हबीब ने कहा कि अब कविता भी नहीं लिख सकते। सरकार को चाहिए कि ऋग्वेद पर भी कमीशन बैठा दे। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद में भी कहा गया है कि ईश्वर को नहीं मालूम कि ईश्वर से पहले क्या था? ऋग्वेद भी हिंदुइज्म के खिलाफ है? उस पर भी सरकार को जांच बिठा देनी चाहिए। इरफान हबीब ने कहा कि इस तरह की बेवकूफी का कोई इलाज नहीं है।