कानून रिव्यू/ नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव चल रहा है और चुनाव की आदर्श आचार संहिता लागू है। सभी राजनीतिक दलों और यहां तक चुनाव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका निभाने वाले लोगों को चुनाव आचार संहिता का पालन किया जाना संवैधानिक दायित्व हैं। किंतु ऐसे लोग जिन पर संविधान का पालन किए जाने की मूल जिम्मेदारी बनती है इस चुनाव में चुनाव आचार संहिता को तार तार करने में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश के सीएम महंत योगी आदित्यनाथ और पूर्व सीएम मायावती को ही लें। इन लोगों ने चुनाव आयोग द्वारा तय की गई आचार संहिता की धज्जिया उडाने में कोई कमी नही छोडी हैं। इनके अलावा उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री व सपा नेता आजम खान भी अपने बिगडे बयानों को लेकर खासे चर्चा में बने हुए हैं। इन नेताओं के अलावा और भी बहुत हैं जिन्हें चुनाव आचार संहिता की कोई परवाह नही। किंतु ऐसे समय माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इन मामलों का स्वतः संज्ञान लिया और एक नया उदाहरण पेश किया है। न्यायपालिका के इस कदम से जनता के मन में एक नई आस जगी है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रचार के दौरान बसपा प्रमुख और पूर्व सीएम मायावती तथा उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के कथित रूप से विद्वेष फैलाने वाले भाषणों यानी स्पीच का संज्ञान लिया और निर्वाचन आयोग से जानना चाहा कि उसने इनके खिलाफ अभी तक क्या कार्रवाई की है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने चुनाव प्रचार के दौरान जाति एवं धर्म को आधार बना कर विद्वेष फैलाने वाले वाले भाषणों से निबटने के लिए आयोग के पास सीमित अधिकार होने के कथन से सहमति जताते हुए निर्वाचन आयोग के एक प्रतिनिधि को भी तलब किया। पीठ ने निर्वाचन आयोग के इस कथन का उल्लेख किया कि वह जाति और धर्म के आधार पर विद्वेष फैलाने वाले भाषण के लिए नोटिस जारी कर सकता है, इसके बाद परामर्श दे सकता है और अंततः ऐसे नेता के खिलाफ आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में शिकायत दर्ज करा सकता है। वहीं पीठ के समक्ष चुनाव आयोग ने कहा कि उनके हाथ में कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि वे पहले नोटिस जारी करेंगे, फिर परामर्श जारी होगा और फिर शिकायत दर्ज की जाएगी। पीठ ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह के विद्वेष फैलाने वाले भाषणों से निबटने के लिए आयोग के अधिकार से संबंधित पहलू पर वह गौर करेगा।