मौहम्मद इल्सास-’’दनकौरी’’/कानून रिव्यू
नई दिल्ली
सीबीआई बनाम पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि यदि पुलिस कमिश्नर के द्वारा सबूत नष्ट किए जाने की बात साबित होती है तो हम ऐसी कार्रवाई करेंगे कि उन्हें यानी कमिश्नर को पछताना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट में दोनों पक्ष आमने.सामने थे। केस की सुनवाई हालांकि कल तक के लिए टल दी गई, लेकिन सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा एक सख्त टिप्पणी की गई है। सीबीआई की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के सामने पेश हुए और कोर्ट के सामने पूरा मामला रखा। वहीं इस केस में पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से अभिषेक मनु सिंघवी केस की पैरवी कर रहे थे। चीफ जस्टिस ने पूछा कि सुबह क्या स्थिति रही और आपकी क्या मांग है? इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता का कहना था कि सारे सबूत नष्ट किए जा सकते हैं। जब इस केस में कमिश्नर द्वारा सबूत मिटाए जाने की बात आई तो चीफ जस्टिस गोगोई ने सीबीआई की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अगर आपने एक भी ऐसा सबूत पेश किया, जिससे कमिश्नर के द्वारा सबूत नष्ट किए जाने की बात साबित होती हो तो हम ऐसी कार्रवाई करेंगे कि उन्हें यानी कमिश्नर को पछताना पड़ेगा। इसके बाद चीफ जस्टिस ने केस की सुनवाई कल तक के लिए टाल दी।
राष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में ऐसे दर्ज हो गई थीं ममता बनर्जी
सीबीआई और केंद्र सरकार के लिए आफत बनी ममता शुरू से ही एक जुझारू और जिद्दी महिला रही हैं। ममता ने भले ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने बंगाल से कांग्रेस को ख़त्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ममता को जब कोई नहीं जानता था और वे बंगाल कांग्रेस की युवा नेता थीं। तभी उन्होंने समाजवादी आंदोलन के मुखिया जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर चढ़कर विरोध किया था और राष्ट्रीय राजनीति के इतिहास में दर्ज हो गई थीं। ममता बनर्जी के राजनीतिक कैरियर पर गौर पर करें तो पता चलता है कि वे अपने स्कूली दिनों से ही राजनीति से जुड़ी हुई हैं। सत्तर के दशक में उन्हें राज्य महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। इस समय में वे कॉलेज में पढ़ ही रही थीं। ममता के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे और जब वह बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मृत्यु हो गई थी। बताया जाता है कि गरीबी से संघर्ष करते हुए उन्हें दूध बेचने का काम भी करना पड़ा। उनके लिए अपने छोटे भाई.बहनों के पालन.पोषण में, अपनी मां की मद्द करने का यही अकेला तरीका था। दक्षिण कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज से ममता बनर्जी ने इतिहास में ऑनर्स की डिग्री हासिल की है। बाद में कलकत्ता विश्वविद्यालय से उन्होंने इस्लामिक इतिहास में मास्टर डिग्री ली। श्रीशिक्षायतन कॉलेज से उन्होंने बीएड की डिग्री ली। जबकि कोलकाता के जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज से उन्होंने कानून की पढ़ाई की। ममता का सक्रिय राजनीतिक सफर साल 1970 में शुरू हुआ। जब वे कांग्रेस पार्टी की कार्यकर्ता बनीं।् 1976 से 1980 तक वे महिला कांग्रेस की महासचिव रहीं। 1984 में ममता ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से हराकर सबको चौंका दिया। सोमनाथ उस दौरान सीपीएम की पहली पंक्ति के नेताओं में से एक थे और इस जीत के साथ ममता देश की सबसे युवा सांसद भी बन गई। सोमनाथ चटर्जी को हारने के बाद ममता बनर्जी को अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया गया, लेकिन 1989 में कांग्रेस विरोधी लहर के कारण जादवपुर लोकसभा सीट पर ममता को मालिनी भट्टाचार्य के खिलाफ वो हार गईं। इसके बाद 1991 के चुनाव में उन्होंने कोलकाता दक्षिण संसदीय सीट से जीत हासिल की। दक्षिणी कलकत्ता कोलकाता लोकसभा सीट से सीपीएम के बिप्लव दासगुप्ता को हराकर वह लगातार 1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में इसी सीट से लोकसभा सदस्य चुनी गईं। साल 1991 में कोलकाता से लोकसभा के लिए चुनी गईं ममता को केंद्रीय मंत्रीमंडल में भी मौका मिला। वह नरसिम्हा राव सरकार में मानव संसाधन विकास युवा मामलों और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री बनीं। वह नरसिम्हा राव सरकार में खेल मंत्री भी बनाई गईं। खेल मंत्री के तौर पर उन्होंने देश में खेलों की दशा सुधारने को लेकर सरकार से मतभेद होने पर इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। इस वजह से 1993 में उन्हें इस मंत्रालय से छुट्टी दे दी गई। अप्रैल 1996.97 में उन्होंने कांग्रेस पर बंगाल में सीपीएम की कठपुतली होने का आरोप लगाया और 1997 में कांग्रेस से अलग हो गईं। इसके अगले ही साल 1 जनवरी 1998 को उन्होंने अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस बनाई। वह पार्टी की अध्यक्ष बनीं। 1998 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 8 सीटों पर कब्जा कर कांग्रेस और सीपीएम के लिए चुनौती पेश की।
कांग्रेस और बीजेपी से ऐसे बनी दूरी
साल 2001 की शुरुआत में बीजेपी के खिलाफ हुए एक स्टिंग के खुलासों के बाद ममता नाराज़ हो गईं और उन्होंने अपनी पार्टी को एनडीए से अलग कर लिया, लेकिन जनवरी 2004 में वे बिना कोई स्पष्ट कारण बताए सरकार में शामिल हो गईं। 20 मई 2004 को आम चुनावों के बाद पार्टी की ओर से केवल वे ही चुनाव जीत सकीं। अब की बार उन्हें कोयला और खान मंत्री बनाया गया। 20 अक्टूबर 2005 को उन्होंने राज्य की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार द्वारा औद्योगिक विकास के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनें हासिल किए जाने का विरोध किया। साल 2005 में ममता को बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। उनकी पार्टी ने कोलकाता नगर निगम पर से नियंत्रण खो दिया और उनकी मेयर ने अपनी पार्टी छोड़ दी। 2006 में विधानसभा चुनावों में भी तृणमूल कांग्रेस के आधे से अधिक विधायक चुनाव हार गए। नवंबर 2006 में ममता को सिंगूर में टाटा मोटर्स की प्रस्तावित कार परियोजना स्थल पर जाने से जबरन रोका गया। इसके विरोध में उनकी पार्टी ने धरना, प्रदर्शन और हड़ताल भी की। साल 2009 के आम चुनावों से पहले ममता ने फिर एक बार यूपीए से नाता जोड़ लिया। इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं। उन्हें दूसरी बार रेल मंत्री बना दिया गया। रेल मंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल लोकलुभावन घोषणाओं और कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है। 2010 के नगरीय चुनावों में तृणमूल ने फिर एक बार कोलकाता नगर निगम पर कब्जा कर लिया। साल 2011 में टीएमसी ने मां माटी, मानुष के नारे के साथ विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत के साथ जीत हासिल की। ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं और 34 वर्षों तक राज्य की सत्ता पर काबिज वामपंथी मोर्चे का सफाया हो गया। ममता की पार्टी ने राज्य विधानसभा की 294 सीटों में से 184 पर कब्जा कियाण् केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर अपनी पैठ जमाने के बाद ममता ने 18 सितंबर 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद नंदीग्राम में हिंसा की घटना हुई। स्पेशल इकोनॉमिक जो विकसित करने के लिए गांव वालों की जमीन ली जानी थी। माओवादियों के समर्थन से गांव वालों ने पुलिस कार्रवाई का प्रतिरोध कियाए लेकिन गांव वालों और पुलिस बलों के हिंसक संघर्ष में 14 लोगों की मौत हो हुई। ममता ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री शिवराज पाटिल से कहा कि बंगाल में सीपीएम समर्थकों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाई जाए। बाद में जब राज्य सरकार ने परियोजना को समाप्त कर दिया, तब हिंसक विरोध भी थम गया।् लेकिन इस दौरान केंद्र और कांग्रेस से उनके मतभेद शुरू हो गए।
जीवनभर कुंवारी रहने का लिया व्रत
एक सवाल बार.बार उठता है कि ममता बनर्जी ने कभी शादी क्यों नहीं की? उम्र भर कुंवारी क्यों रहीं? दरअसल स्वभाव से बागी ममता सामाजिक परंपराओं की विरोधी भी हैं। शादी में एक औरत की स्थिति से उनका इत्तेफाक नहीं था और उन्होंने जीवन भर समाज सेवा का भी वचन लिया था। बाद में समाजसेवा के लिए उन्होंने कभी शादी ना करने का फैसला ले लिया। आपने अकसर नीली कन्नी वाली सफेद साड़ी में ही ममता बनर्जी को देखा होगा। इसके पीछे ये वजह है कि जब 9 साल की उम्र में उनके पिता का देहांत हुआ था तो उस समय वो बहुत गरीब थे। गरीबी में रही ममता को कपड़े खरीदने और इकट्ठा करने का शौक ही नहीं है।