कानून रिव्यू/नई दिल्ली
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सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामलों की एक बडी कानूनी अडचन को समाप्त कर दिया है।. कोर्ट ने कहा है कि अगर परिस्थितियां खास हों तो तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13 B(2) को अनिवार्य मानने से मना कर दिया है।. इस सेक्शन के तहत आपसी सहमति से तलाक के मामलों में भी अंतिम आदेश 6 महीने बाद दिया जाता है. दरअसल सेक्शन 13 B(2) में कहा गया है कि पहले मोशन यानी तलाक की अर्जी फैमिली जज के सामने आने के 6 महीने बाद ही दूसरा मोशन हो सकता है।
कानून में इस अवधि का प्रावधान इसलिए किया गया है, ताकि पति-पत्नी में अगर सुलह मुमकिन हो तो दोनों इस पर प्रयास कर सकें. ये फैसला दिल्ली के एक दंपत्ति के मामले में आया है. 8 साल से अलग रह रहे पति-पत्नी ने आपसी सहमति से तीस हजारी कोर्ट में तलाक का आवेदन दिया. इससे पहले दोनों ने गुजारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी जैसी तमाम बातें भी आपस में तय कर लीं। इसके बावजूद जज ने उन्हें 6 महीने इंतजार करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 6 महीने के इंतजार को खत्म कर दिया है। साथ ही, देश की तमाम फैमिली अदालतों को ये निर्देश दिया है कि अब से वो हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13B(2) को अनिवार्य न मानें. अगर जरूरी लगे तो फौरन तलाक का आदेश दे सकते हैं। इस एक्ट के मुताबिक आपसी सहमति से तलाक के आवेदन को स्वीकार करने के बाद जज दोनों पक्षों को 6 महीने का समय देते हैं। अगर इस अवधि के बाद भी दोनों पक्ष साथ रहने को तैयार नहीं होते तो तलाक का आदेश दिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और यूयू ललित की बेंच ने कहा कि अंतिम आदेश के लिए 6 महीने का वक्त लेना सिविल जज के विवेक पर निर्भर होगा। अगर जज चाहे तो खास परिस्थितियों में तुरंत तलाक का आदेश दे सकते है।. फैसले में कहा गया है कि तलाक की अर्जी लगाने के 1 सप्ताह बाद पति-पत्नी ऊपर बताई गई परिस्थितियों का हवाला देते हुए तुरंत आदेश की मांग कर सकते है, अगर फैमिली जज को उचित लगे तो वो तलाक का आदेश जल्दी दे सकते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने उन खास परिस्थितियों को भी अपने फैसले में भी स्पष्ट किया है जिनमें तलाक का आदेश फौरन दिया जा सकता हैः-
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1-. अगर 13B(2) में कहा गया 6 महीने का वक्त और 13B(1) में कहा गया 1 साल का वक्त पहले ही बीत चुका हो. यानी तलाक की अर्जी लगाने से डेढ़ साल से ज्यादा समय से पति-पत्नी अलग रह रहे हो।.
2-. दोनों में सुलह-सफाई के सारे विकल्प असफल हो चुके हों. आगे भी सुलह की कोई गुंजाईश न हो।.
3-. अगर दोनों पक्ष पत्नी के गुजारे के लिए स्थाई बंदोबस्त, बच्चों की कस्टडी आदि मुद्दों को पुख्ता तौर पर हल कर चुके हों।
4.- अगर 6 महीने का इंतजार दोनों की परेशानी को और बढ़ाने वाला नजर आए।
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खास बातें-
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—परिस्थितियां खास हों तो तलाक के लिए 6 महीने का इंतजार जरूरी नहीं।
—सुलह की गुंजाइश की स्थिति में तलाक की अर्जी वापस लेने के लिए 6 महीने।
—-अर्जी के एक हफ्ते बाद तुरंत तलाक पर आदेश की मांग कर सकते हैं पति-पत्नी।
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