—केंद्र सरकार को छः महीने के अंदर कानून बनाने को कहा
—प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विट कर फैसले का स्वागत किया–
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कानून रिव्यू /नई दिल्ली
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सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के मुद्दे पर अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है। साथ ही इस पर छः महीने अंदर सरकार को कानून बनाना के लिए कहा है। इस मामले पर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की। दो जज तीन तलाक के पक्ष में थे वहीं तीन इसके खिलाफ। बहुमत के हिसाब से तीन जजों के फैसले को बेंच का फैसला माना गया। बेंच में जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और एस अब्दुल नजीर शामिल थे। जस्टिस नरीमन, ललित और कुरियन ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया। तीनों ने मिलकर जस्टिस नारीमन और चीफ जस्टिस खेहर की बात पर अपनी असहमति जताई। जस्टिस खेहर ने कहा है कि तीन तलाक की प्रक्रिया पर छह महीने तक रोक रहेगी। इस वक्त में सरकार को नया कानून बनाना होगा। उन्होंने अपने फैसले में अपहोल्ड शब्द का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा है कि तीन तलाक बना रहेगा।
इस केस की सुनवाई 11 मई को शुरु हुई थी। जजों ने इस केस में 18 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पूरे देश कि निगाहें टिकी हुईं थीं। अगर कोर्ट तीन तलाक की प्रथा को बंद करने का फैसला सुनाती है तो इससे देश की कई मुस्लिम महिलाओं को खुशी मिलने वाली है।
यह मुद्दा 16 अक्टूबर, 2015 में शुरु हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा सीजेआई से कहा गया था कि एक बेंच को सेट किया जाए जो कि यह जांच कर सके कि तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के बीच भेदभाव किया जा रहा है। बेंच ने यह बात उस समय कही थी जब वे हिंदू उत्तराधिकार से जुड़े एक केस की सुनवाई कर रहा था। इसके बाद 5 फरवरी, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा था कि वे उन याचिकाओं में अपना सहयोग करें जिनमें तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती दी गई है। इसके बाद इस मामले पर कई सुनवाई हुईं जिनमें तीन तलाक जैसे मुद्दों को लेकर कोर्ट ने भी गंभीरता दिखाई। केंद्र सरकार ने भी ट्रिपल तलाक कड़ा विरोध करते हुए कोर्ट से कहा कि ऐसी प्रथाओं पर एक बार जमीनी स्तर पर विचार करने की आवश्यकता है। 16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों की सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच का गठन किया था।
आज मंगलवार को तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने जब अपना फैसला सुनाया तो याचिकाकर्ता सायरा बानो ने कहा कि मुझे विश्वास था कि फैसला मेरे हक में होगा। समय बदल रहा है और इस मुद्दे पर निश्चित रूप से कानून बनाया जाएगा। मार्च, 2016 में उतराखंड की शायरा बानो नामक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी. बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी है. कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है. वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं. यह भेदभाव और असमानता एक तरफा तीन बार तलाक के तौर पर सामने आती है.। वहीं फैसला आने के बाद दूसरी मुस्लिम महिलाएं काफी खुश थीं। जिन महिलाओं ने इसके खिलाफ याचिका डाली हुई थी उन्होंने फैसला का स्वागत किया। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इस फैसले का स्वागत किया। जब कि शिया मौलवी मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि शिया पर्सनल लॉ बोर्ड 2007 से तीन तलाक के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की टिप्पणी—
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–कुछ संगठनों के मुताबिक तीन तलाक शादी तोड़ने का सबसे खराब तरीका
–जो धर्म के लिहाज से निकृष्ट है, कानून में वैध कैसे?
–जो ईश्वर की नजर में पाप, वो शरीयत में कैसे?
–पाक कुरान में पहले से प्रक्रिया फिर तीन तलाक क्यों?
–तीन तलाक अगर कुरान में नहीं है तो कहां से आया?
–दूसरे देशों ने कानून बनाकर इसे खत्म क्यों किया?
–समुदाय इस पर क्यों कुछ नहीं कर रहा?
—क्या कोई प्रथा संवैधानिक अधिकारों से बढ़ कर हो सकती है?
—अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक रद्द करता है तो क्या सरकार नया कानून लाएगी?
—केंद्र सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार क्यों कर रहा है?
—क्या निकाहनामे के वक्त ही तीन तलाक से इनकार का विकल्प मुमकिन है?
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क्या है तीन तलाकः-
—————तीन तलाक का साफ मतलब है कि एक ही बार में तीन बार बोल देना कि तलाक, तलाक- तलाक। शौहर यानी पति द्वारा एक बार में इन शब्दों के बोल देने भर से विवाह टूट जाता है और पत्नी का दर्जा एक पल में ही समाप्त हो जाता है। यही नहीं आधुनकि युग में संचार माध्यमों का भी तीन तलाक मामले में जमकर दुरूप्रयोग किया गया। किसी ने फेसबुक के जरिए किसी ने वाट्स अप के जरिए ही तलाक दे डाला। मोबाइल फोन या स्पीड पोस्ट के जारिए तलाक के मामले भी प्रकाश में आए। अब यदि पति को अपनी भूल का अहसास हुआ और अपनी पत्नी को दौबारा अपने घर में रखना चाहे तो मुस्लिम यानी शरीयत कानून आडे आ जाता है। पत्नी को वापस वैवाहिक जीवन में लाने के लिए हलाला करना जरूरी बना दिया गया। हलाला तलाक शुदा महिला पहले किसी दूसरे व्यक्ति से निकाह करे और वह व्यक्ति फिर उस महिला को तलाक दें तब पहले पति से निकाह हो सकता है। माना जाता है कि मजहब के ठेकेदारों द्वारा यह सब एक रिवाज यानी पंरपरा बना ली गई है जिससे महिलाओं का शोषण और उत्पीडन होता रहा है।
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इस्लाम मजहब में तीन तलाक है बडा गुनाहः-
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कुछ आधुनिक शिक्षा से प्रभावित व्यक्तियों का दावा है कि पवित्र कुरान में तलाक को न करने लायक काम का दर्जा दिया गया है। यही वजह है कि इसको खूब कठिन बनाया गया है। तलाक देने की एक विस्तृत प्रक्रिया दर्शाई गई है। परिवार में बातचीत, पति-पत्नी के बीच संवाद और सुलह पर जोर दिया गया है। पवित्र कुरान में कहा गया है कि जहां तक संभव हो, तलाक न दिया जाए और यदि तलाक देना जरूरी और अनिवार्य हो जाए तो कम से कम यह प्रक्रिया न्यायिक होना चाहिए। इसके चलते पवित्र कुरान में एकत रफा या सुलह का प्रयास किए बिना दिए गए तलाक का जिक्र कहीं भी नहीं मिलता। इसी तरह पवित्र कुरान में तलाक प्रक्रिया की समय अवधि भी स्पष्ट रूप से बताई गई है। एक ही क्षण में तलाक का सवाल ही नहीं उठता। खत लिखकर या टेलीफोन पर एक तरफा और जुबानी तलाक की इजाजत इस्लाम कतई नहीं देता। एक बैठक में या एक ही वक्त में तलाक दे देना गैर-इस्लामी है और एक बडा गुनाह भी है जिससे हमेशा बचना चाहिए।
पांच महिलाओं के संघर्ष के जज्बे को सलामः-
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शायरा बानोः-
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उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु-विवाह के प्रचलन को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। शायरा बानों की कहानी त्रासदियों से भरी है। शायरा को उसके पति रिजवान ने तीन तलाक देकर घर से बेदखल कर दिया था। शायरा ने बताया कि उसका छः बार गर्भपात कराया गया। उसके दो बच्चे हैं जिन्हें पति ने अपने पास रख लिया। शायरा का कहना है कि वह अपने बच्चों को साथ रखना चाहती है। शायरा ने मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन कानून,1936 की धारा-दो की संवैधानिकता को चुनौती दी थी।
आफरीन रहमानः-
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जयपुर की रहने वाली आफरीन भी तीन तलाक का शिकार हुई उन महिलाओं में से हैं जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आफरीन ने बताया कि इंदौर में रहने वाले उसके पति ने स्पीड पोस्ट के जरिए उसे तलाक का पत्र भेजा था। आफरीन ने बताया कि मेट्रीमोनियल साइट के जरिए उन लोगों का रिश्ता तय हुआ था। शादी के बाद उसे दहेज के लिए तंग किया जाने लगा। जब ससुराल वालों की मांग पूरी नहीं हुई तो स्पीड पोस्ट पर तलाक भेजकर उससे छुटकारा पा लिया गया।
इशरत जहांः-
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पश्चिम बंगाल के हावड़ा की रहने वाली इशरत को उसके पति ने दुबई से फोन पर तलाक दे दिया था। इतना ही नहीं उसके पति ने चारों बच्चों को उससे छीन लिया। इसके बाद पति ने दूसरी शादी कर ली और उसे यूं ही बेसहारा छोड़ दिया। इशरत ने याचिका दायर कर तीन तलाक को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं के गौरवपूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
आतिया साबरीः-
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उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की रहने वाली आतिया के पति ने साल 2016 में एक कागज पर तीन तलाक लिखकर उससे रिश्ता तोड़ लिया था। साल 2012 में दोनों की शादी हुई थी। उनकी दो बेटियां हैं। आतिया का आरोप है कि दो बेटी होने से उसके पति और ससुर नाराज थे। ससुरालवाले आतिया को घर से निकालना चाहते थे। उसे जहर खिलाकर मारने की भी कोशिश की गई थी।
गुलशन परवीनः-
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उत्तर प्रदेश के रामपुर की रहने वाली गुलशन को उसके पति ने नोएडा से दस रुपये के स्टांप पेपर पर लिखकर तलाकनामा भेज दिया था। पति नोएडा में काम करता था। गुलशन की शादी 2013 में हुई थी। गुलशन का आरोप है कि पति शुरू से ही उसे पसंद नहीं करता था, इसीलिए बिना किसी बात के तीन साल बाद अचानक स्टांप पेपर पर तीन तलाक लिखकर भेज दिया। उसका एक दो साल का बेटा है।
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